दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मुमकिन नहीं, कैबिनेट की सलाह से काम करें LG: सुप्रीम कोर्ट
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने अहम फैसले में उपराज्यपाल के पर कतरे हैं तो दिल्ली की चुनी हुई सरकार को प्राथमिकता दी है।
By Amit MishraEdited By: Updated: Wed, 04 Jul 2018 03:43 PM (IST)
नई दिल्ली (माला दीक्षित)। चार जुलाई, 2018 का दिन देश की राजधानी दिल्ली के लिए एतिहासिक साबित हुआ, जब दिल्ली के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। बुधवार को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने अहम फैसले में उपराज्यपाल के पर कतरे हैं तो दिल्ली की चुनी हुई सरकार को प्राथमिकता दी है। तीन जजों की ओर से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआइ) दीपक मिश्रा ने फ़ैसले में कहा कि एलजी के पास सीमित अधिकार हैं। दिल्ली का एलजी अन्य राज्यों के राज्यपालों की तरह ही है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एलजी को मंत्रिमंडल की राय का सम्मान करना चाहिए और उसकी राय पर काम करना चाहिए। दोनों के बीच मतभेद होने पर एलजी मामला राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। लेकिन वे ऐसा हर मामले में यांत्रिक ढंग से नहीं कर सकते। ये ज़रूरी होने पर अपवाद के तौर पर हो।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी और दिल्ली सरकार को समन्वय के साथ काम करना चाहिए। काउंसिल ऑफ मिनिस्टर का हर फैसला एलजी को सूचित किया जाएगा, लेकिन उस पर एलजी की सहमति अनिवार्य नहीं होगी। एलजी काउंसिल ऑफ मिनिस्टर की सलाह पर काम करेंगे।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर स्थिति साफ कर दी है कि यह संभव नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल को चुनी हुई सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा। यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि असली शक्ति जनता की चुनी ही सरकार के पास है और जनता के प्रति जवाबदेही भी उनकी ही है।चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर जनता के हित में काम करना चाहिए। पुलिस, भूमि और पब्लिक ऑर्डर के अलावा दिल्ली विधानसभा कोई भी कानून बना सकती है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सख्त टिप्पणी ने कहा है कि दिल्ली में किसी तरह की अराजकता की कोई जगह नहीं है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य के बीच भी रिश्ते बेहद सौहार्दपूर्ण होने चाहिए।वहीं, संविधान पीठ के अन्य जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्र तब फेल हो जाता है, जब देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं बंद हो जाती हैं। हमारे समाज में अलग विचारों के साथ चलना जरूरी है। मतभेदों के बीच भी राजनेताओं और अधिकारियों को मिलजुल कर काम करना चाहिए।
चंद्रचूड ने कहा कि असली शक्ति और जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की ही बनती है। उपराज्यपाल मंत्रिमंडल के फैसलों को लटका कर नहीं रख सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है कि एलजी का काम राष्ट्रहित का ध्यान रखना है, उन्हें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि चुनी हुई सरकार के पास लोगों की सहमति है। पांच जजों की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं।
वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फैसले पर कहा कि यह दिल्ली के साथ लोकतंत्र की भी बड़ी जीत है। इस बाबत उन्होंने ट्वीट भी किया है।
वहीं, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बाकायदा पत्रकार वार्ता कहा कि अब दिल्ली में एलजी की मनमानी नहीं चलेगी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में है।
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक मुखिया घोषित करने के हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अपीलीय याचिका में दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल के अधिकार स्पष्ट करने का आग्रह किया गया था।सुरक्षित रख लिया था फैसला
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एमएम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से पेश दिग्गज वकीलों की चार सप्ताह तक दलीलें सुनने के बाद गत छह दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम, पी. चिदंबरम, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह और शेखर नाफड़े ने बहस की थी। उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने देते
दिल्ली सरकार की दलील थी कि संविधान के तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार है और चुनी हुई सरकार की मंत्रिमंडल को न सिर्फ कानून बनाने बल्कि कार्यकारी आदेश के जरिये उन्हें लागू करने का भी अधिकार है। दिल्ली सरकार का आरोप था कि उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को कोई काम नहीं करने देते और हर एक फाइल व सरकार के प्रत्येक निर्णय को रोक लेते हैं। दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है
हालांकि दूसरी ओर केंद्र सरकार की दलील थी कि भले ही दिल्ली में चुनी हुई सरकार हो लेकिन दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। दिल्ली विशेष अधिकारों के साथ केंद्र शासित प्रदेश है। दिल्ली के बारे में फैसले लेने और कार्यकारी आदेश जारी करने का अधिकार केंद्र सरकार को है। दिल्ली सरकार किसी तरह के विशेष कार्यकारी अधिकार का दावा नहीं कर सकती।मामूली बातों पर मतभेद नहीं होना चाहिए
दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी भी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार के बीच आत्मीय संबंध होने चाहिए। खासतौर पर जब केंद्र और दिल्ली में अलग-अलग पार्टी की सरकार हो। उपराज्यपाल और सीएम के बीच प्रशासन को लेकर सौहार्द्र होना चाहिए।आपसी राय में मतभेद मामूली बातों पर नहीं होना चाहिए। एलजी के अधिकार राज्य सरकार से ज्यादा
बता दें कि उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक प्रमुख बताने वाले, दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ स्पष्ट कर चुकी है कि केजरीवाल सरकार को संविधान के दायरे में रहना होगा, पहली नजर में एलजी के अधिकार राज्य सरकार से ज्यादा हैं। यह भी पढ़ेंः SC के फैसले का पड़ेगा असर, केजरीवाल की कई योजनाओं पर रहेगी नजरयह भी पढ़ें: भाजपा ने सीएम केजरीवाल को बताया प्लान, इस तरह से दूर हो सकती है पानी की किल्लत
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एमएम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से पेश दिग्गज वकीलों की चार सप्ताह तक दलीलें सुनने के बाद गत छह दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम, पी. चिदंबरम, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह और शेखर नाफड़े ने बहस की थी। उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने देते
दिल्ली सरकार की दलील थी कि संविधान के तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार है और चुनी हुई सरकार की मंत्रिमंडल को न सिर्फ कानून बनाने बल्कि कार्यकारी आदेश के जरिये उन्हें लागू करने का भी अधिकार है। दिल्ली सरकार का आरोप था कि उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को कोई काम नहीं करने देते और हर एक फाइल व सरकार के प्रत्येक निर्णय को रोक लेते हैं। दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है
हालांकि दूसरी ओर केंद्र सरकार की दलील थी कि भले ही दिल्ली में चुनी हुई सरकार हो लेकिन दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। दिल्ली विशेष अधिकारों के साथ केंद्र शासित प्रदेश है। दिल्ली के बारे में फैसले लेने और कार्यकारी आदेश जारी करने का अधिकार केंद्र सरकार को है। दिल्ली सरकार किसी तरह के विशेष कार्यकारी अधिकार का दावा नहीं कर सकती।मामूली बातों पर मतभेद नहीं होना चाहिए
दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी भी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार के बीच आत्मीय संबंध होने चाहिए। खासतौर पर जब केंद्र और दिल्ली में अलग-अलग पार्टी की सरकार हो। उपराज्यपाल और सीएम के बीच प्रशासन को लेकर सौहार्द्र होना चाहिए।आपसी राय में मतभेद मामूली बातों पर नहीं होना चाहिए। एलजी के अधिकार राज्य सरकार से ज्यादा
बता दें कि उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक प्रमुख बताने वाले, दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ स्पष्ट कर चुकी है कि केजरीवाल सरकार को संविधान के दायरे में रहना होगा, पहली नजर में एलजी के अधिकार राज्य सरकार से ज्यादा हैं। यह भी पढ़ेंः SC के फैसले का पड़ेगा असर, केजरीवाल की कई योजनाओं पर रहेगी नजरयह भी पढ़ें: भाजपा ने सीएम केजरीवाल को बताया प्लान, इस तरह से दूर हो सकती है पानी की किल्लत