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रेलवे ने उठाया बड़ा कदम, ट्रेन की सफाई को तकनीक का सहारा, यात्री भी रखें ख्याल

उत्तर रेलवे ने इसके लिए विशेष सेंसर तैयार किया है। इसके जरिये शौचालय जाम होते ही कंट्रोल रूम में बैठे अधिकारियों को इसकी जानकारी मिल जाती है।

By Edited By: Published: Fri, 02 Nov 2018 12:58 AM (IST)Updated: Fri, 02 Nov 2018 07:04 PM (IST)
रेलवे ने उठाया बड़ा कदम, ट्रेन की सफाई को तकनीक का सहारा, यात्री भी रखें ख्याल

नई दिल्ली, संतोष कुमार सिंह। कोच व ट्रैक को साफ रखने के लिए ट्रेनों में जैविक शौचालय लगाए जा रहे हैं। इससे ट्रैक पर गंदगी नहीं गिरती है जिससे पर्यावरण स्वच्छ रहता है। हालांकि, इसके जाम हो जाने से यात्रियों की परेशानी बढ़ जाती है। अब इस समस्या का भी समाधान मिल गया है। उत्तर रेलवे ने इसके लिए विशेष सेंसर तैयार किया है। इसके जरिये शौचालय जाम होते ही कंट्रोल रूम में बैठे अधिकारियों को इसकी जानकारी मिल जाती है।

सामने आए सकारात्मक परिणाम 
महामना एक्सप्रेस में इसका ट्रायल भी चल रहा है जिसके परिणाम सकारात्मक आए हैं। जल्द ही अन्य ट्रेनों में भी यह सुविधा उपलब्ध होगी। स्वच्छता मिशन के तहत वर्ष 2020 तक रेलवे स्टेशनों और रेल लाइनों को गंदगी से मुक्त करना है। इस लक्ष्य में सबसे बड़ी बाधा रेलवे ट्रैक पर गिरने वाली शौचालय की गंदगी है। इसलिए ट्रेनों में परंपरागत शौचालयों को जैविक शौचालय में तब्दील किया जा रहा है। इस तकनीक में शौचालय की गंदगी रेलवे ट्रैक पर गिरने के बजाय एक टैंक में जमा होती है जिसे एक खास बैक्टीरिया द्रव्य में तब्दील कर देता है। इससे रेलवे ट्रैक को साफ रखने के साथ ही पर्यावरण को भी स्वच्छ बनाए रखने में सहयोग मिलता है।

खराब हो जाता है ट्रैक 
इससे ट्रैक की लाइफ भी बढ़ेगी। गंदगी गिरने से ट्रैक जल्दी खराब होता है जिसे बदलना पड़ता है। वहीं, गंदगी की वजह से रेलवे लाइन की मरम्मत में कर्मचारियों को भी परेशानी होती है। उत्तर रेलवे को वर्ष 2017-18 में ट्रेनों में चार हजार जैविक शौचालय लगाने का लक्ष्य दिया गया था, जिसके एवज में 4415 शौचालय बदले जा चुके हैं।इस वित्त वर्ष में छह हजार शौचालय बदलने का लक्ष्य पूरा करने के लिए काम किया जा रहा है।

दूर हो सकती है परेशानी 
अधिकारियों का कहना है कि जैविक शौचालय सही तरह से काम करे, इसके लिए जरूरी है इसमें कोई सामान नहीं गिराया जाए। इसके विपरीत सफर के दौरान यात्री शौचालय में पानी का बोतल या उसका ढक्कन, तंबाकू का पैकेट, बीड़ी-सिगरेट आदि फेंक देते हैं जिससे वह जाम हो जाता है। समय रहते सफाई नहीं होने के कारण यात्री इसका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। यदि समय पर सफाई कर्मचारियों को इसकी जानकारी मिल जाए तो यात्रियों की परेशानी दूर की जा सकती है। परेशानी दूर करने के लिए सेंसर विकसित किया गया है जिसे इसमें लगा दिया जाता है।

मिल जाती है सूचना 
शौचालय जाम होते ही एक एसएमएस ओबीएचएस (ऑन बोर्ड हाउस कीपिंग सर्विस) के कर्मचारियों के साथ ही डिपो कंट्रोल ऑफिस एवं मेनटेनेंस इंजीनियर के पास पहुंच जाता है। समस्या हल होने के बाद फिर से इन सभी लोगों को एसएमएस भेजकर इसकी जानकारी दी जाती है। उत्तर रेलवे के 114 ट्रेनों में ओबीएचएस सुविधा उपलब्ध है। इसके कर्मचारी सुबह छह से रात दस बजे तक कोच की सफाई करते हैं।


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