दिल्ली के मुखिया कल तक बाकायदा सूची जारी कर- करके नेताओं को प्रमाण पत्र जारी किया करते
By JagranEdited By: Updated: Sun, 27 May 2018 10:32 PM (IST)
दिल्ली के मुखिया कल तक बाकायदा सूची जारी कर- करके नेताओं को प्रमाण पत्र जारी किया करते थे। ज्यादातर को इन्होंने भ्रष्टाचारी करार दिया। सिर्फ यही नहीं, जनता से उन्हें वोट न देने की अपील भी करते रहे। लेकिन, यह सब तब किया जा रहा था, जब मुखिया जी सत्ता से बाहर थे और सत्ता पाने के लिए प्रयासरत थे। सत्ता मिल गई तो अन्य नेताओं के दाग भी धुल गए। अब कोई भ्रष्टाचारी नहीं रहा। शायद इसीलिए आज मुखिया जी इन सभी के साथ मंच साझा करते हैं। बीते सप्ताह कर्नाटक में मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह हुआ तो वहां भी मुखिया जी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचे। हालांकि एक बात यह भी देखी जा रही है कि मुखिया जी भले भूल गए हों कि किसे कौन सा प्रमाण पत्र जारी किया था, लेकिन जिन्हें किया था, उन्हें सब याद है। संभवतया इसीलिए कनार्टक के मंच पर मुखिया जी होते हुए भी नजर नहीं आए। इन्हें पहली पंक्ति में स्थान देना तक गंवारा नहीं किया गया। सही ही कहा गया है कि जब बोया पेड़ बबूल का तब आम कहां से होए। एक टकराव निपटा नहीं, बनने लगे दूसरे के हालात
मुख्य सचिव के साथ हाथापाई मामले का अभी तक पटाक्षेप नहीं हुआ है। पुलिस पूछताछ भी जारी है और नेताओं एवं अधिकारियों के बीच टकराव भी। ऐसे में अब इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहें अथवा विडंबना कि जाने अनजाने टकराव का दूसरा मसला भी तैयार कर लिया गया है। एक विभाग के अध्यक्ष को सिर्फ इसलिए क्योंकि वह नेताजी की बैठक में नहीं पहुंच पाए, नोटिस जारी कर दिया गया। मामला विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया गया। नेताजी के इस कदम से अधिकारी और भड़क गए हैं। उनका कहना है कि यह तो सीधे तौर पर प्रताड़ित करने जैसा है। इससे हालात और बिगड़ेंगे। अब नेताजी को कौन समझाए कि दिल्ली के हित में क्या है। उनके लिए तो या उनका अहम ज्यादा बड़ा है।
नेताजी का कब कटेगा वनवास कुर्सी पाने की ख्वाहिश हर व्यक्ति की होती है। सियासत में तो यह चाहत कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। जिसे कोई पद नहीं मिला है वह किसी तरह से एक अदद पद हासिल करने की जुगत में लगा रहता है। वहीं, जिसे पद मिल जाता है वह बड़े पद की चाहत में बड़े नेताओं की परिक्रमा करता रहता है। दिल्ली भाजपा में भी यही स्थिति है। कई नेता पदोन्नति की राह तलाश रहे हैं। उन्हें इसके लिए आश्वासन भी मिल रहा है, लेकिन इंतजार की घड़ी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में कई नेताओं ने अपने-अपने आका से अब पूछना शुरू कर दिया है कि उनका वनवास कब कटेगा। सही पूछें तो इसका जवाब तो उनके पास भी नहीं है, लेकिन अपने समर्थकों का मनोबल तो बनाए रखना पड़ेगा। इसलिए वह उन्हें आश्वासन दे रहे हैं कि जल्द ही उनका वनवास खत्म होगा। नेताजी इस आश्वासन से खुश तो हैं, लेकिन उन्हें भी हकीकत मालूम है। इसलिए उनके सामने इंतजार करने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसलिए उन्हें संगठन को मजबूत करने के लिए काम करते रहना चाहिए। एक न एक दिन उन्हें पद भी जरूर मिल जाएगा।
गुटबाजी से तंग आ गए हैं अध्यक्ष दिल्ली भाजपा में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। हमेशा से यहां नेताओं के बीच कुर्सी व नाक की लड़ाई चलती रही है। प्रदेश भाजपा का मुखिया बनने वाले प्रत्येक नेता को इस हकीकत का सामना करना पड़ता है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी भी इन दिनों या यूं कहें कि दिल्ली भाजपा की कुर्सी संभालने के साथ से ही इस मुश्किल का सामना कर रहे हैं। दिल्ली के बड़े नेता संगठन के निर्देश को ठेंगा दिखाकर अपनी राह चल रहे हैं तो प्रदेश के कई पदाधिकारी भी अध्यक्ष को चित करने के फिराक में हैं। कई बार इसका सार्वजनिक प्रदर्शन भी हो चुका है। इससे परेशान व नाराज अध्यक्ष अब पदाधिकारियों की बैठक में गुटबाजी खत्म करने की गुहार लगा रहे हैं। उनकी यह पहल संगठन के हित में भी है, लेकिन इसके लिए जमीन पर भी कुछ प्रयास करने होंगे। कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें बड़े नेताओं के साथ बैठकर संगठन को मजबूत करने की योजना बनाने के साथ ही दरकिनार कर दिए गए पुराने नेताओं को अहमियत देनी चाहिए। जरूरत पड़ने पर गुटबाज नेताओं के खिलाफ सख्ती भी जरूरी है जिससे कि इस तरह के नेताओं व कार्यकर्ताओं के बीच सख्त संदेश जाए। भाई, कार्यकर्ता तो सलाह ही दे सकते हैं इस पर अमल करना तो अध्यक्ष का काम है। अब देखते हैं चुनावी साल में भी नेताओं की गुटबाजी खत्म होती है या नहीं। रिलीज वाले मंत्री
सूबे की सरकार में एक ऐसे मंत्री भी हैं जो केवल रिलीज जारी करने वाले मंत्री ही कहे जाने लगे हैं। काम हो या न हो, अधिकारी मानें या न मानें। मगर वह रिलीज जरूर जारी कर देते हैं। जिस तरह से उनकी रिलीज जारी होती है तो लोगों को लगता है कि इस विभाग में बहुत काम हो रहा होगा। गत दिनों में तो मंत्री जी इस बात की भी रिलीज जारी कर चुके हैं कि अधिकारी हमारी नहीं सुनते हैं। सत्ता के गलियारे में चर्चा है कि जब अधिकारी उनकी सुनते ही नही हैं तो वह मंत्री क्यों बने हुए हैं। जिन्हें कह रहे थे भ्रष्टाचारी उनके शपथ ग्रहण में पहुंचे सरजी सरजी भी कई बार अपने द्वारा कही बातों में ही फंस जाते हैं। कुछ साल पहले सर जी ने नेताओं के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, कई नेताओं के नाम भी जारी किए थे। उन्हें भ्रष्टाचारी कहा था। मगर सरजी गत दिनों एक ऐसा नेता के शपथ ग्रहण में पहुंच गए जिन्हें उन्होंने भ्रष्टाचारी कहा था। उनकी सूची में उन नेता का भी नाम था। सत्ता के गलियारे के लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि अब सरजी बदल गए हैं या उनकी विचारधारा बदल गई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी नजरों में जो कभी भ्रष्टाचारी थे ईमानदार हो गए हैं।
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