पूरी अकीदत से रोजा रख रही कामकाजी महिलाएं
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जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
इस गर्मी में माहे रमजान में रोजा रखना हर किसी के बस की बात नहीं है। कई पुरुष इस कारण रोजा नहीं रख रहे हैं, लेकिन कई कामकाजी महिलाएं और युवतियां घर और घर के बाहर की जिम्मेदारियां संभालते हुए पूरी अकीदत के साथ रोजा रख रहीं हैं। उनके मुताबिक शुरू के दिनों में संतुलन बिठाने में थोड़ी मुश्किलें आईं, लेकिन परिवार और कार्य स्थल पर साथियों के सहयोग से रोजा रखना आसान हो गया है।
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शुरू के दिनों में कई मोर्चे पर संतुलन बिठाने को लेकर कुछ परेशानी आई थी, लेकिन घर और कार्यस्थल पर सहयोगियों की मदद से सब कुछ आसान हो गया है। कई बार ऐसा होता है कि ऑपरेशन जैसे मामलों में इफ्तार का समय निकल जाता है तब वरिष्ठ चिकित्सक तुरंत इसका ख्याल रखते हुए इफ्तार करने का समय देते हैं। इसी तरह कभी घर पहुंचने में देर होती है तो पति भी इफ्तारी की तैयारी कर देते हैं। हालांकि, रमजान माह में दिनचर्या में थोड़ा बदलाव आया है। देर रात उठकर सहरी की तैयारी करनी होती है। फिर नमाज के बाद सो जाते हैं। अब तो यह दिनचर्या का हिस्सा है।
डॉ. नुसरत जहां, गायनेकोलॉजिस्ट
----------------- रमजान भी रख रहे हैं और कोर्ट में वकालत भी कर रहे हैं कोई दिक्कत नहीं आ रही है। बस थोड़ी दिनचर्या बदल गई है। भोर में करीब 2:45 पर उठकर सहरी की तैयारी, फिर सहरी करने, नमाज पढ़ने के बाद सो जाते हैं। फिर सुबह आठ बजे से दिनचर्या शुरू होती है। बच्चों को नाश्ता तैयार करने के साथ खुद कोर्ट जाने की तैयारी। कोर्ट में दोपहर में घर आकर नमाज पढ़ने और बच्चों को लंच कराने के साथ फिर कोर्ट में केस की सुनवाई के लिए जाना होता है। शाम को आने के बाद बच्चों का होमवर्क, इफ्तार की तैयारी, फिर नमाज और वकालत से जुड़े जरूरी कामकाज साथ चलते रहते हैं। यह करते-करते रात के 12 बज जाते हैं। हालांकि, खानपान का विशेष ख्याल रखना होता है। कोशिश होती है कि इफ्तारी और सहरी में दही, फल, पेय पदार्थ ज्यादा से ज्यादा मात्रा में लिया जाए ताकि शरीर में पानी की कमी न रहे।
शबनम शेख, अधिवक्ता, साकेत कोर्ट ------------
घर और समाज में संतुलन बनाते हुए रोजा रखना इस माहे रमजान की खूबसूरती है कि कोई परेशानी महसूस नहीं होती है। विशेष बात कि इस्लाम में परेशान लोगों की मदद करना फर्ज माना गया है। उसमें भी रमजान में विशेष शबाब के साथ सुकून मिलता है। समाजसेवा भी एक धर्म है। वैसे, दिनचर्या में थोड़ा बदलाव आया है। नमाज के लिए समय निकालने के साथ सहरी के लिए रात में जल्दी उठकर तैयारियों में जुट जाते हैं। इसके बाद थोड़े देर आराम के बाद फिर दिनचर्या आरंभ हो जाती है। वैसे, क्षेत्र में लोग इसका विशेष ख्याल रखते हैं और नमाज के लिए समय निकल जाता है। वहीं, इफ्तारी तो अक्सर लोगों के बीच ही हो जाती है।
शबीना खान, समाजसेविका ----------------
कामकाजी महिलाओं के लिए थोड़ी चुनौती तो है, क्योंकि एक माह के लिए ऐसा नहीं है कि कार्यालय या स्कूल बंद हो गए हों। सभी चीजें सामान्य प्रक्रिया में चल रही हैं। फिर भी संतुलन बनाकर रमजान में रोजा रखना आसान हो जाता है। इसके लिए विशेष तौर पर वक्त का ख्याल रखना होता है। खरीदारी व स्मार्टफोन जैसे बाकी चीजों में समय बर्बाद करने की जगह जरूरी है कि समय की बचत करें। मैं, जल्दी सोने और जल्दी जागने पर विश्वास करती हूं। अगर इसमें देर हुई तो समझो सब गड़बड़ हो गया। इसलिए 11 बजे सो जाती हूं और भोर में तीन बजे जाग जाती हूं।
इकरा कुरैशी, व्यक्तित्व विकास प्रशिक्षक