Beating The Retreat: युद्ध से जुड़ा है समारोह का नाता, देश में पहली बार कब मनाई गई बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी?
बिटिंग रिट्रीट सेरेमनी की शुरुआत 1952 में हुई। इस साल ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और उनके पति प्रिंस फिलिप भारत आए थे। भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने सेनाओं के बैंड द्वारा प्रस्तुत के अनूठे समारोह को देश से रूबरू करवाया। यह समारोह गणतंत्र दिवस की समाप्ति का प्रतीक भी माना जाता है। आइए आज जरा जान लें कि आखिर समारोह का क्या इतिहास है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Beating Retreat Ceremony। गणतंत्र दिवस के तीसरे दिन यानी आज शाम 'बीटिंग द रिट्रीट' का आयोजन किया गया। रायसीना हिल्स (विजय चौक) पर देश के सेना, थल सेना, नौसेना और वायु सेना के संगीत बैंड्स ने अपनी धुनों से दर्शकों मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस साल कदम-कदम बढ़ाए जा, ऐ मेरे वतन के लोगों, फौलाद का जिगर, शंखनाद, भागीरथी धुन बजाई गई। सेनाओं ने 29 भारतीय धुन बजाई।
यह समारोह गणतंत्र दिवस की समाप्ति का प्रतीक भी माना जाता है। आइए आज जरा जान लें कि आखिर समारोह का क्या इतिहास है।
क्या है 'बीटिंग द रिट्रीट' समारोह का इतिहास?
केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार बिटिंग रिट्रीट सेरेमनी की शुरुआत 1952 में हुई। इस साल ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और उनके पति प्रिंस फिलिप भारत आए थे। भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने सेनाओं के बैंड द्वारा प्रस्तुत के अनूठे समारोह को देश से रूबरू करवाया।
युद्ध से जुड़ा है समारोह का नाता
दरअसल, इस समारोह का युद्ध से भी नाता है। युद्ध के समय राजाओं के सैनिकों द्वारा सूर्यास्त के बाद जंग बंद कर दी जाती थी। सूरज ढलते ही बिगुल बजता था।
दोनों तरफ की सेनाएं युद्ध के मैदान को छोड़ अपने टेंट या महल में चले जाते थे। समारोह को उस वक्त मारोह को तब 'वॉच सेटिंग' कहा जाता था। शाम को बंदूक से आसमान में एक राउंड फायरिंग भी होती थी।
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