क्या आप भारत की पहली महिला वकील को जानते हैं, जिन्हें महिला होने के कारण नहीं मिल पाई थी स्कॉलरशिप
जिस दौर में महिलाओं को घर से बाहर कदम रखने की भी मनाही थी उस वक्त एक महिला ऐसी भी हुई जिन्होंने भारत में महिलाओं को वकालत का अधिकार दिलाने में मदद की। वे भारत और ब्रिटेन में कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली भारतीय महिला वकील बनीं जिन्हें परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक मिलने के बाद भी सिर्फ महिला होने के कारण स्कॉलरशिप भी नहीं मिल सकी।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। First Female Lawyer of India: भारत में आज हर क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। न्यायपालिका, रक्षा, कला, साहित्य, सामाजिक और राजनीति से जुड़े ऐसे तमाम क्षेत्रों में महिलाओं को देखना आज भले ही कोई बड़ी बात नहीं लगती हो, लेकिन एक वक्त था, जब काला कोट पहने हुए कोर्ट में किसी महिला को खड़े देखना भी मुमकिन नहीं था।
जी हां, तब एक महिला को वकालत करने की इजाजत नहीं थी, लेकिन एक भारतीय महिला ऐसी हुईं, जो कानून की पढ़ाई करके देश की पहली महिला वकील बनीं। देखा जाए, तो चंद शब्दों में उनके संघर्ष को बयान कर पाना आसान काम नहीं है, लेकिन आइए आज आपको बताते हैं कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji) के बारे में, जिन्होंने महिलाओं को दिलाया था वकालत का अधिकार।
कौन थीं भारत की पहली महिला वकील?
कॉर्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवंबर 1866 को नासिक में एक पारसी परिवार में हुआ था, वहीं 6 जुलाई 1954 को लंदन में उनका निधन हो गया। कॉर्नेलिया के पिता मिशनरी से जुड़े हुए थे, और मां सामाजिक कामों के लिए मशहूर थीं। कॉर्नेलिया और उनके पांच भाई-बहनों ने अपना बचपन बेल्जियम में बिताया था।
जिस वक्त में महिलाओं को एक कदम भी घर से बाहर रखने की इजाजत नहीं थी, उस जमाने में न सिर्फ उन्होंने घर से बाहर कदम बढ़ाए, बल्कि देश के बाहर भी अपने पंख पसारे। कॉर्नेलिया बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली पहली महिला होने के साथ-साथ, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला भी बनीं। इसके अलावा वे भारत और ब्रिटेन में लीगल प्रैक्टिस करने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं।
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