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क्या आप भारत की पहली महिला वकील को जानते हैं, जिन्हें महिला होने के कारण नहीं मिल पाई थी स्कॉलरशिप

जिस दौर में महिलाओं को घर से बाहर कदम रखने की भी मनाही थी उस वक्त एक महिला ऐसी भी हुई जिन्होंने भारत में महिलाओं को वकालत का अधिकार दिलाने में मदद की। वे भारत और ब्रिटेन में कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली भारतीय महिला वकील बनीं जिन्हें परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक मिलने के बाद भी सिर्फ महिला होने के कारण स्कॉलरशिप भी नहीं मिल सकी।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Sun, 31 Mar 2024 03:39 PM (IST)
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First Female Lawyer of India: मिलिए भारत की पहली महिला वकील से...
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। First Female Lawyer of India: भारत में आज हर क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। न्यायपालिका, रक्षा, कला, साहित्य, सामाजिक और राजनीति से जुड़े ऐसे तमाम क्षेत्रों में महिलाओं को देखना आज भले ही कोई बड़ी बात नहीं लगती हो, लेकिन एक वक्त था, जब काला कोट पहने हुए कोर्ट में किसी महिला को खड़े देखना भी मुमकिन नहीं था।

जी हां, तब एक महिला को वकालत करने की इजाजत नहीं थी, लेकिन एक भारतीय महिला ऐसी हुईं, जो कानून की पढ़ाई करके देश की पहली महिला वकील बनीं। देखा जाए, तो चंद शब्दों में उनके संघर्ष को बयान कर पाना आसान काम नहीं है, लेकिन आइए आज आपको बताते हैं कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji) के बारे में, जिन्होंने महिलाओं को दिलाया था वकालत का अधिकार।

कौन थीं भारत की पहली महिला वकील?

कॉर्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवंबर 1866 को नासिक में एक पारसी परिवार में हुआ था, वहीं 6 जुलाई 1954 को लंदन में उनका निधन हो गया। कॉर्नेलिया के पिता मिशनरी से जुड़े हुए थे, और मां सामाजिक कामों के लिए मशहूर थीं। कॉर्नेलिया और उनके पांच भाई-बहनों ने अपना बचपन बेल्जियम में बिताया था।

जिस वक्त में महिलाओं को एक कदम भी घर से बाहर रखने की इजाजत नहीं थी, उस जमाने में न सिर्फ उन्होंने घर से बाहर कदम बढ़ाए, बल्कि देश के बाहर भी अपने पंख पसारे। कॉर्नेलिया बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली पहली महिला होने के साथ-साथ, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला भी बनीं। इसके अलावा वे भारत और ब्रिटेन में लीगल प्रैक्टिस करने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं।

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आसान नहीं था ऑक्सफोर्ड तक का सफर

आजादी मिलने से पहले भारत में किसी महिला का उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण होता था, लेकिन बावजूद इसके कॉर्नेलिया अपने आगे आने वाले सभी बंधनों को तोड़ती चली गईं। आलम ये था, कि परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक मिलने के बाद भी सिर्फ एक महिला होने के चलते उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिल सकी। 1892 में कॉर्नेलिया बैचलर ऑफ सिविल लॉ की परीक्षा पास करने वाली पहली महिला बनीं, लेकिन कॉलेज ने उन्हें डिग्री देने से मना कर दिया। बता दें, कि उस वक्त महिलाओं को वकालत के लिए रजिस्टर करने और प्रैक्टिस की अनुमति नहीं थी।  

परिस्थितियों के आगे नहीं टेके घुटने

भारत वापसी के बाद कोर्नेलिया ने 1897 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया। ऐसी तमाम परिस्थितियों के बाद भी कॉर्नेलिया हार मानने वालों में से नहीं थीं। उन्होंने भारत लौटकर महिलाओं को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ी। देश में उन्होंने 600 से ज्यादा महिलाओं और नाबालिग लड़कियों को कानूनी मदद मुहैया करवाई। लंबे परिश्रम के बाद आखिरकार 1922 में लंदन बार ने महिलाओं को कानून का अभ्यास करने की अनुमति दे दी।

ज्यादा वक्त नहीं कर सकीं कानून की प्रैक्टिस

साल 1923 में कार्नेलिया सोराबजी कलकत्ता हाईकोर्ट में बतौर बैरिस्टर कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनीं। हालांकि, वह ज्यादा समय तक प्रैक्टिस नहीं कर सकीं, क्योंकि 1929 में उनकी उम्र 58 साल हो जाने के बाद हाईकोर्ट से रिटायरमेंट दे दी गई। इसके बाद वह लंदन में बस गईं। 'बिटवीन द ट्वाइलाइट्स' नाम से उन्होंने अपने अनुभवों पर एक किताब भी लिखी है, वहीं साल 2012 में सम्मान के तौर पर लंदन के हाई कोर्ट कॉम्प्लेक्स में उनकी कांस्य प्रतिमा का भी अनावरण किया गया।

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