Hearing Aid Invention: 13वीं शताब्दी में हुआ था पहले हियरिंग मशीन का आविष्कार, जानें सैकड़ों साल पुराना इतिहास
Hearing Aid Invention हमारे शरीर में मौजूद 5 सेंस ऑर्गन हमारे लिए काफी अहम होते हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना करना काफी मुश्किल होता है। कान इन्हीं जरूरी अंगों में से एक है जो हमें सुनने में मदद करता है। हालांकि कई लोग कुछ वजहों से सुनने में असमर्थ होते हैं जिनके लिए हियरिंग मशीन किसी वरदान से कम नहीं है। आइए जानते हैं हियरिंग मशीन का इतिहास
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Hearing Aid Invention: हमारे शरीर में मौजूद सभी अंग हमारे लिए काफी अहम होते हैं। खासकर हमारे सेंस ऑर्गन हमारे लिए काफी जरूरी होते हैं। शरीर में 5 तरह के सेंस ऑर्गन होते हैं, जिनमें आंख,नाक,कान,जीभ और त्वचा शामिल हैं। इन सभी के बिना अपने जीवन के कल्पना करना काफी मुश्किल होता है। कान इन्हीं जरूरी अंगों में से एक है, जो हमें सुनने में मदद करता है। हालांकि, कई वजहों से कुछ लोग अपने सुनने की क्षमता खो देते हैं, जिसकी वजह से उन्हें कई परेशानियों सामना करना पड़ता है। ऐसे में हियरिंग मशीन इन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
यह सुनने में असमर्थ और परेशानियों का सामना कर रहे लोगों को सुनने में मदद करता है। यह एक खास तरह डिवाइस होता है, जो लोगों को सुनने में सहायता करता है। वर्तमान में इसका इस्तेमाल कई ऐसे लोगों द्वारा किया जा रहा है, जो सुनने में असमर्थ हैं। ऐसे में आप इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं हियरिंग मशीन के दिलचस्प इतिहास के बारे में-यह भी पड़ें- देश को कैसे मिला 'भारत' नाम, दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र के अलावा और भी हुए हैं भरत
दुनिया का पहला हियरिंग मशीन
हियरिंग मशीन का इतिहास काफी रंगीन रहा है। मौजूदा समय में इस्तेमाल होने वाले इस डिवाइस को बनाने में कई साल लगे। ऐसे में आज इसके इतिहास पर नजर डालेंगे और जानेंगे कि यह डिवाइस आज इस मुकाम पर कैसा पहुंचा। दुनिया के पहले श्रवण यंत्र यानी हियरिंग मशीन का आविष्कार 13वीं शताब्दी में हुआ था।इसे बनाने के लिए गाय और मेढ़े जैसे जानवरों के सींगों को खोखला कर उन्हें सुनने के उपकरणों के रूप में इस्तेमाल किया गया। इनमें एक गोल सिरा होता था, जो इयर कैनल में आराम से फिट हो जाता था और दूसरे छोर पर एक बड़ा छेद होता था, जो आवाज पकड़ने में मदद करता था। यह तकनीक में बहुत उन्नत नहीं था, लेकिन बावजूद इसके हजारों वर्षों से इस्तेमाल किया जाता रहा है।
17वीं सदी में आया इयर ट्रंपेट
इसके बाद 17वीं शताब्दी में तकनीक विकसित होनी शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप कान की तुरही यानी इयर ट्रंपेट का आविष्कार किया गया। 1634 में बने इस ट्रंपेट का आकार इयर कैनल के समान था, जो ध्वनि एकत्र करके और इसे एक संकीर्ण ट्यूब के जरिए कानों तक पहुंचाता था। हालांकि, यह डिवाइस आवाज बढ़ाते नहीं थे, लेकिन ऐसे लोग जिन्हें सुनने में परेशानी होती थी, उन्हें इसकी मदद से आवाज पहचानने में काफी मदद मिलती थी। यह ट्रंपेट लकड़ी और धातु समेत विभिन्न सामग्रियों से विभिन्न आकृतियों और आकारों में बनाए गए थे।