कुछ इस तरह से हुई थी सिनेमाघरों में पॉपकॉर्न बेचने की शुरुआत, अमेरिका की महामंदी का इसमें रहा बड़ा रोल
सिनेमाघरों में आज जो आप तरह- तरह के फ्लेवर्स वाले पॉपकॉर्न खाते हैं ना क्या आप जानते हैं एक समय में इन्हें थिएटर्स में बेचना अपमान समझा जाता था लेकिन अमेरिका में आई महामंदी के दौर ने मूवी और पॉपकॉर्न का कल्चर विकसित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उस दौर में पॉपकॉर्न ही थिएटर्स के मुनाफे का सबसे बड़ा स्त्रोत बनें।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। थिएटर में मूवी देखने का असली मजा तो पॉपकॉर्न की बकेट साथ में लेकर ही आता है, लेकिन क्या आप जानते हैं एक समय ऐसा भी था, जब थिएटर के मालिक सिनेमा घरों के अंदर आपके फेवरेट पॉपकॉर्न बेचने से कतराते थे? उन्हें लगता था कि पॉपकॉर्न जैसी चीज बेचने से थिएटर्स की रूतबा कम हो जाएगा। वे चाहते थे कि मूवी थिएटर्स, नाटकों की तरह ही प्रतिष्ठित बने रहें। लोग वहां सिर्फ फिल्में देखने आएं न कि खाने-पीने के लिए। लेकिन जब अमेरिका में महामंदी का दौर आया, तो फिल्म इंडस्ट्री मुश्किल दौर से गुजरने लगी। लोगों की संख्या कम होने लगी और सिनेमाघरों का मुनाफा तेजी से घटने लगा। ऐसे में एक तरह से पॉपकॉर्न ने ही थिएटर्स को बचाया। इस मुश्किल दौर में यही उनकी आय का स्त्रोत बना।
पॉपकॉर्न तेजी से बिकने वाला हर किसी का पसंदीदा स्नैक बन गया। वही थिएटर मंदी की मार झेल सके, जिनके पास पॉपकॉर्न मशीनें लगाने की जगह थीं। बदलते वक्त के साथ मूवी और पॉपकॉर्न एक-दूसरे के साथी बन गए या यों कहें कि अब थिएटर में ही नहीं, घर में भी देखी जाने वाली मूवी बिना पॉपकॉर्न के मजा नहीं देती।
टेलीविजन के आविष्कार के बाद पॉपकॉर्न की डिमांड और ज्यादा बढ़ गई। पहले ये खुले में मिलता था वहीं डिमांड और लोगों की पसंद के आधार पर यह तरह-तरह के फ्लेवर्स और बंद पैकेट में मिलने लगा। अब तो लोग इसे खुद से घर में ही बनाने लगे हैं। आज तो इतने तरह के फ्लेवर्स वाले पॉपकॉर्न मार्केट में मौजूद हैं, जिन्हें खाकर पेट भले ही भर जाए, दिल नहीं भरता।
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