आंखों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था दुनिया का पहला Contact Lens, दिलचस्प है इसके ईजाद होने की कहानी
आंखें हमारे शरीर का एक बेहद अहम और संवेदनशील अंग हैं जिसके बिना जीवन की कल्पना करना तक मुश्किल है। हालांकि कई वजहों से लोगों की आंखें खराब हो जाती हैं जिसकी वजह से देखना मुश्किल हो जाता है। Contact Lens ऐसे लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। आइए जानते हैं कब और किसे आया था कॉन्टेक्ट लेंस बनाने का आइडिया?
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Contact Lens Invention: हमारे शरीर में मौजूद सभी अंगों का अपना अलग महत्व होता है। सेहतमंद रहने और आसानी से अपना जीवन जीने के लिए इन अंगों का सही तरीके से काम करना बेहद जरूरी होता है। सेंस ऑर्गन इन्हीं अंगों में से एक है, जो हमें चीजें देखने, सुनने और महसूस करने में मदद करते हैं। मानव शरीर में पांच सेंस ऑर्गन होते हैं, जिनमें आंख,नाक,कान,जीभ और त्वचा शामिल हैं। आंखें हमारे शरीर का बेहद अहम और संवेदनशील अंग हैं, जो हमें देखने में मदद करता है। हालांकि, इन दिनों तेजी से बदलती लाइफस्टाइल की वजह से हमारी आंखों पर भी असर पड़ने लगा है।
शरीर में पोषक तत्वों की कमी और लगातार स्क्रीन का इस्तेमाल हमारी आंखों को कमजोर करने लगा है, जिसके वजह से देखने में परेशानी होने लगती है। ऐसे में देखने के लिए आमतौर पर चश्मे का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, कॉन्टेक्ट लेंस एक बड़ा और काम का आविष्कार है, जो कमजोर नजर वाले लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दिनों जिस कॉन्टेक्ट लेंस का आप इस्तेमाल कर रहे हैं, उसका आविष्कार कब,कैसे और किसने किया था। अगर नहीं, तो आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कॉन्टेक्ट लेंस के आविष्कार के बारे में-
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लियोनार्डो दा विंची ने दी प्रेरणा
ऐसा माना जाता है कि कॉन्टेक्ट लेंस के आविष्कार की प्रेरणा लियोनार्डो दा विंची के कुछ चित्रों से मिली थी। दा विंची ने अपने रेखाचित्रों में दिखाया कि कैसे एक ग्लास पानी में आंख खोलने से दृष्टि यानी विजन सही हो सकता है। फिर उन्होंने उस विचार को एक कदम आगे बढ़ाते हुए सुझाव दिया कि पानी से भरा गुंबद, कॉन्टेक्ट लेंस की तरह आंख पर पहना जा सकता है। इसके बाद 1630 के दशक में, फ्रांसीसी वैज्ञानिक और दार्शनिक रेने डेसकार्टेस पानी से भरी एक ग्लास ट्यूब का आइडिया लेकर आए, जिसे अंत में एक लेंस लगाया गया था। हालांकि, उनका यह विचार असल में प्रैक्टिकल साबित नहीं हो सका।
ऐसे बना पहला लेंस
इसके बाद सन 1801 में, एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जॉन यंग ने ग्लास कॉन्टेक्ट लेंस प्रोटोटाइप बनाया, जो पानी से भरा हुआ था। उन्होंने इसे मोम की मदद से अपनी आंख पर चिपका लिया। यंग के प्रोटोटाइप ने दा विंची और डेसकार्टेस दोनों के सिद्धांतों का परीक्षण किया। 1827 में, एक ब्रिटिश खगोलशास्त्री सर जॉन हर्शेल ने फिट में सुधार के लिए इस सिद्धांत को थोड़ा विकसित कर यंग के प्रोटोटाइप में सुधार किया। यह लेंस के आंखों के लिए अधिक फिट साबित हुआ।
आंखों की रक्षा के लिए बना था पहला लेंस
इसके कुछ साल बाद साल 1887 में, ग्लास आईबॉल के जर्मन निर्माता, एफ.ए. मुलर ने एक ग्लास कॉन्टेक्ट लेंस बनाया, जो पूरी आंख को कवर करता था। हालांकि, यह लेंस विजन को सही करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया था। इसका मकसद किसी बीमारी का शिकार हुई आंखों (आंख पर पट्टी की तरह) की रक्षा करना था। इसके एक साल बाद 1888 में, एक जर्मन फिजियोलॉजिस्ट एडॉल्फ यूजेन फिक (ए.ई. फिक) ने मरीजों पर पहला ग्लास कॉन्टेक्ट लेंस लगाया। मुलर के डिजाइन की तरह, लेंस ने पूरी आंख को कवर किया, लेकिन इसने विजन को भी सही किया।
पहला प्लास्टिक लेंस
बाद में उन्होंने लेंस के ऐसे संस्करण बनाए जो स्क्लेरल (आंख की पूरी सतह को कवर करने वाले) के बजाय कॉर्नियल (केवल कॉर्निया को कवर करने वाले) थे। फिक के आविष्कार को असल में विजन के लिए इस्तेमाल करने वाला कॉन्टेक्ट लेंस माना जाता है। इस आविष्कार के बाद साल 1936 में न्यूयॉर्क के ऑप्टोमेट्रिक वैज्ञानिक विलियम फीनब्लूम ने कॉर्निया को कवर करने वाले कांच के हिस्से को प्लास्टिक का इस्तेमाल कर बनाया। प्लास्टिक का यह लेंस को ऑल-ग्लास लेंस की तुलना में अधिक आरामदायक और फिट था।
पहला प्लास्टिक कॉर्नियल कॉन्टेक्ट लेंस
साल 1938 में ओब्रिग और मुलेन ने एक नई और एक ज्यादा बेहतर सामग्री पॉलीमेथाइलमेथैक्रिलेट (पीएमएमए) का इस्तेमाल करके पहला ऑल-प्लास्टिक स्क्लेरल लेंस विकसित किया। 1948 में कैलिफोर्निया के ऑप्टोमेट्रिस्ट केविन टुही ने पहले कॉर्नियल कॉन्टेक्ट लेंस का पेटेंट कराया। आंख की पूरी सतह के बजाय सिर्फ कॉर्निया पर पहने जाने वाले, ये कठोर प्लास्टिक-पीएमएमए मटेरियल से बने यह कठोर कॉन्टेक्ट लेंस थे।
पहला सॉफ्ट कॉन्टेक्ट लेंस
साल 1950 के दशक में केमिस्ट ओटो विचटरले ने हाइड्रोजेल, एक नरम प्लास्टिक का इस्तेमाल कर पहले सॉफ्ट कॉन्टेक्ट लेंस विकसित किए। ये लेंस पहले बनाए गए लैंस की तुलना में लचीले, पानी सोखने वाले और ज्यादा आरामदायक लेंस थे। साथ ही यह सूखी आंखों और आंखों की थकान के लिए भी बेहतर साबित हुए। इस आविष्कार के बाद साल 1970 के दशक में, लोगों के लिए दो मप्रकार के सॉफ्ट कॉन्टेक्ट लेंस टोरिक कॉन्टेक्ट और एक्सटेंडेड-वियर कॉन्टेक्ट बनाए गए।
टोरिक कॉन्टेक्ट लेंस
साल 1978 में, फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने उपभोक्ता बाजार के लिए टोरिक कॉन्टेक्ट लेंस को मंजूरी दे दी। इस तरह के लेंस की खास बात यह थी कि इन्हें इस तरह से आकार दिया गया था कि एस्टिग्मेटिज्म के साथ-साथ यह मायोपिया (पास की नजर) और हाइपरोपिया (दूर की नजर) को भी ठीक किया जा सके।
एक्सटेंडेड-वियर कॉन्टेक्ट लेंस
साल 1979 में कूपरविजन ने पहला एक्सटेंडेड-वियर कॉन्टेक्ट लेंस पेश किया। इससे लोगों के लिए नियमित कॉन्टेक्ट लेंस की तुलना में अधिक समय तक लेंस पहनना संभव हो गया।
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