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MP Orchha History: दोस्ती, मोहब्बत और धोखे की कहानी सुनाती ओरछा के राजा महल की दीवारें… जितनी खूबसूरत, उतनी ही वीरान

देश की धरोहर में आज हम आपको एक ऐसे महल की कहानी बताने जा रहे हैं मुगल और राजपूतों की कहानी का गवाह था। जिस किले में कभी एक रात के लिए जहांगीर रुका था। मगर अब यह महल वीरान है। मध्य प्रदेश के ओरछा में बना राज महल आज भी अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए लोगों को आकर्षित करता है।

By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Sat, 31 Aug 2024 09:00 AM (IST)
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ओरछा का महल वीरान तो हुआ है, लेकिन बर्बाद नहीं हुआ है।
शशांक शेखर बाजपेई। बुंदेलखंड में बुंदेलों का राज करीब 200 साल रहा है। मध्य प्रदेश में बसी मध्यकालीन नगरी ओरछा जितनी खूबसूरत है, उतनी ही अकेली, उतनी ही वीरान है। यह आज भी वैसी ही है, जैसी तब थी जब सारे लोग उसे छोड़कर यहां से चले गए थे। मगर, तब ऐसा क्या हुआ था? ये लोग यहां से इतना भव्य और शाही महल छोड़कर क्यों चले गए थे?

क्या इस महल के वीरान होने के पीछे आपसी रंजिश थी या ये किसी तांत्रिक के श्राप की कहानी थी। या मुगलों और मराठों के बीच ओरछा के राजा के संबंध खराब होने का यह नतीजा था? या फिर राजमहल के आपसी क्लेश की वजह से ओरछा वीरान हो गया… पढ़िए दैनिक जागरण की ये खास रिपोर्ट।

वीराने का नाम सुनकर खंडहरों की तस्वीर सामने आती हैं। मगर, ओरछा में ऐसा नहीं है। यह जगह वीरान तो हुई, लेकिन बर्बाद नहीं हुई। दोस्ती, मोहब्बत, धोखा, बदिलान की कहानी राजा महल की दीवारें और यहां रहने वाले लोग सुनाते हैं। ये सारी बातें यहां कई बार हुई हैं।

ओरछा शहर की स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई। इसके बाद यहां कई सारे महल और मंदिरों का निर्माण हुआ। बुंदेला महाराजा रुद्र प्रताप सिंह ने ओरछा शहर की नींव 1501 में रखी थी। इस शहर के नामकरण की कहानी भी बहुत रोचक है।

संत ने दिया था नाम, अपभ्रंश होकर बना ओरछा

स्थानीय लोग बताते हैं कि राजा रुद्र प्रताप तुंगारण में शिकार करने गए। वहां तुंगुऋषि नाम के एक महात्मा रहा करते थे। जब राजा को प्यास लगी, तो वह ऋषि के पास गए और उनसे पीने के लिए पानी मांगा। मगर, कुटिया में ऋषि के पास जल नहीं था। वह बिटवा नदी के किनारे जल लेने चल गए।

जब वह एक नाले को लांघ रहे थे, तो उनके मुंह से शब्द निकल पड़ा ओइछा। उनके वापस आने पर राजा ने उनसे कहा कि वह तुंगारण में एक सुंदर नगर बसाना चाहते हैं। इसके लिए वह नाम पूछने आए थे। जल लाते वक्त ऋषि के मुंह से जो नाम निकला उससे उन्हें नाम मिल गया ओइछा। कालांतर में अंग्रेजी भाषा के मिश्रण के बाद इसका अप्रभंश हो गया और यह ओरछा कहलाने लगा।

ओरछा में सबसे पहले रुद्र प्रताप सिंह आए और उनके वंशज बुंदेला कहलाए। बुंदेला राजवंश पूर्वी भारत से उत्तरी भारत से आए थे। वे लोग तुगलग लोगों से हारकर आए थे। इस राजवंश के सारे राजा 1501 से लेकर 1948 तक अपने को बुंदेला कहते आए हैं। -रवींद्र कुमार जैन, जेएनयू में एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर

1531 में पूरा बना था राजा महल

राजा महल महाराजा रुद्र प्रताप सिंह ने बनवाना शुरू किया था। मगर, उनके जीवन काल में यह बनकर पूरा नहीं हो पाया था। उनके बेटे भारतीचंद ने उस राजा महल को पूरा करवाने की कोशिश की। मगर, वह सिर्फ उसका बाहरी हिस्सा ही बनवा पाए। फिर उनके बेटे मधुकर शाह ने महल को साल 1531 में पूरा करवाया।

महल के अंदर बुंदेली चित्रकारी के नायाब नमूने देखने को मिलते हैं। अंदर रामायण की चित्रकारी की गई है। कहीं राम की मूछें दिखाई गई हैं, तो कहीं विशिष्ट चित्रकारी की गई है। यह देखने में वास्तविक और सजीव लगती है। इसके साथ ही ओरछा में संगीत और नृत्य को भी ओरछा में बहुत बढ़ावा मिला।

राय प्रवीण के सम्मान में बनावाया महल

कहते हैं राजा इंद्रसेन ने अपने समय की मशहूर नृत्यांगना राय प्रवीण के सम्मान में एक महल बनवाया, जिसे राय प्रवीण महल के नाम से जाना जाता है। यहां नृत्य मुद्राएं दर्शाती तस्वीरें बनाई गई हैं। कहते हैं राजा महल में अपने समय के बेहतरीन कलाकारों ने कभी अपनी कला का प्रदर्शन किया था।

यह भी कहते हैं कि राय प्रवीण के बारे में जब अकबर को पता चला, तो उन्होंने राय परवीन और उनके गुरु केशवदास को दिल्ली बुलाया। वहां राय प्रवीण ने पूछा कि आपने हमें जबरदस्ती ओरछा से क्यों बुलाया। कविता के जरिये राय प्रवीण ने अकबर से सवाल किया।

पूछा- ‘विनति राय प्रवीण की, सुनिए शाह सुजान, जूठी पातर भकत हैं, बारी, ब्यास, हंस।’ यानी राय प्रवीण अपने महान स्वामी से प्रार्थना करती है कि जूठी भोजन की थाली बारी यानी हिंदू समाज में निम्न जाति के व्यक्ति, ब्यास यानी नाई और हंस यानी कुत्ते को दी जाए।

इस तरह सांकेतिक रूप से राय प्रवीण ने अकबर को बता दिया कि मैं किसी और की प्रिय हूं। लिहाजा, मेरा उपयोग करना आपकी गरिमा और स्थिति के लिए ठीक नहीं होगा। आप किस श्रेणी के राजा है, आपने हमें जबरदस्ती ओरछा से क्यों बुलवाया है। तब अकबर ने उन्हें उचित सम्मान देकर ओरछा वापस भिजवा दिया।

जहांगीर ने महल में बिताई थी एक रात 

मुगल काल का यहां ओरछा के इतिहास पर काफी असर है। कहते हैं कि यहां 1605 से लेकर 1627 तक बीरसिंह यहां के राजा था। उनकी मुगल बादशाह जहांगीर के साथ दोस्ती थी। उन्होंने खास दोस्त जहांगीर के लिए यह महल बनवाया। कहते हैं कि एक समय जहांगीर ने अपने पिता से बगावत कर ली थी।

तब बीरसिंह ने जहांगीर का साथ दिया था। जहांगीर के कहने पर अकबर के दोस्त और मंत्री अबु फजल का कत्ल किया। इसके बाद अकबर ने बीर सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का फरमान जारी किया। 1605 में अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर राजा बना। तब उसने बीरसिंह को अपना हितैषी मानकर ओरछा की गद्दी पर बिठा दिया।

तब बीर सिंह ने जहांगीर को ओरछा आने का निमंत्रण दिया। इसके बाद बीरसिंह ने जहांगीर के लिए एक महल बनवाया, जिसमें वह सिर्फ एक दिन के लिए रहे थे। इसकी कलाकारी और भव्यता देखते ही बनती है। मगर, फिर भी यह जगह वीरान हो गई।

फिर मुगल और बुंदेलों की दोस्ती में पड़ी दरार

बीरसिंह के बेटे जुझार सिंह और जहांगीर के बेटे शाहजहां के बीच दरार पड़ गई थी। शाहजहां ने जुझार सिंह और उनके छोटे भाई लाला हरदौल सिंह के बीच दरार डालने की कोशिश की। इसमें वह सफल भी हो गए। जब जुझार सिंह शाहजहां के दरबार गए, तो वहां उन्हें शाहजहां ने एक अफवाह बताई।

कहा कि उनके छोटे भाई हरदौल का उनकी पत्नी के साथ संबंध है। यह सुनकर जुझार सिंह बहुत नाराज हुआ। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि वह हरदौल को जहर दे दे। इस पर रानी ने खीर बनाकर उसमें जहर डाला और उसे अपने देवर को दे दिया। मरते समय उन्होंने रानी को बताया कि वह जानते थे कि खीर में जहर था।

लाला हरदौल बन गए स्थानीय लोगों के भगवान

जुझार सिंह की बहन की दतिया में शादी हो चुकी थी। वह अपनी बेटी रत्ना की शादी का निमंत्रण देने ओरछा पहुंची। उन्हें उम्मीद थी कि हरदौल उनकी मदद करने जरूर आएंगे। हुआ भी ऐसा ही। जब शादी में खाना कम पड़ गया, तो लोग बताते हैं कि उन्होंने लाला हरदौर को बारातियों और वर-वधू को खाना खिलाते देखा।

शादी से पहले युवक-युवतियों की शादी का निमंत्रण लाला हरदौल को देने जरूर आते हैं। उन्हें यहां के स्थानीय देवता होने का सम्मान मिला है। उन्हें भात देने का प्रावधान है। युवक-युवतियां उनके मंदिर में आकर अपने हाथों से हल्दी चढ़ाते हैं।

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फिर कैसे हुआ ओरछा शहर का पतन

स्थानीय लोग मानते हैं कि ओरछा का पतन आपसी मुठभेड़ों की वजह से हुआ। कुछ लोग कहते हैं कि किले के सुरक्षित न होने के कारण यह किला वीरान हो गया। वहीं, मुगलों और मराठों ने स्थानीय लोगों से कर लेने की कहानी भी कुछ लोग बताते हैं, जिससे लोगों यहां से चले गए।

ओरछा के घने जंगल यहां के राजाओं की सुरक्षा का काम करते थे। एक समय ऐसा आ गया कि उनके इतने दुश्मन हो गए कि वही जंगर राजाओं के लिए खतरा बन गए। जगल उनको बचा सकते थे, तो जंगल ही उनके दुश्मनों को छिपा भी सकते थे। राजपरिवार ओरछा को छोड़कर टीकमगढ़ जा बसा क्योंकि वह जगह यहां से ज्यादा सुरक्षित थी। - माया राणा, राज परिवार की वंशज

वहीं प्रोफेसर रवींद्र कुमार जैन का कहना है कि धीरे-धीरे वंशजों में आपस में झगड़े होने लगे। इसकी वजह से प्रजा की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। प्रजा वहां से हटकर दूसरी जगह जाने लगी। प्राकृतिक कारण भी ऐसे हुए कि वहां पानी की कमी हुई और वहां सूखा पड़ा।

मुगलों और मराठों ने भी वहां से कर लेने में बड़ा हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इसकी वजह से लोग आतंकित हो गए और गरीब होते चले गए। लिहाजा, वे लोग वहां से किसी दूसरी सुरक्षित जगह पर चले गए।

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तांत्रिक के श्राप की भी है एक कहानी

स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार राजा यहां से गुजर रहे थे, तो नीम के पेड़ की डाल उनके सिर पर लग गई। उन्होंने पेड़ को कटवाने का आदेश दिया। तभी एक तांत्रिक ने कहा कि पेड़ यहां से नहीं कटेगा। मगर, राजा ने अपनी जिद में पेड़ को कटवा दिया।

कहते हैं कि उस तांत्रिक ने ओरछा को तीन बार बर्बाद होने का श्राप दिया था। इसके बाद से अब तक दो बार ओरछा बर्बाद हो चुका है। स्थानीय लोगों को डर है कि तीसरी बार भी यह शहर कभी भी वीरान हो सकता है।

डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और मध्य प्रदेश की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी ली गई है।