यहां से पावागढ़ की दूरी करीब 6 किलोमीटर है। राजपूत शासकों ने 15 वीं शताब्दी में पावागढ़ किला बनाया था। इस किले को चंपानेर में खिची चौहान राजपूतों ने बनाया। बाद में मुगलों ने इस पर कब्जा किया और तबाह कर दिया था।
यहां 8वीं से 14वीं शताब्दी तक के ऐतिहासिक अवशेषों में किला, महल, धार्मिक स्थान शामिल हैं। इसके साथ 16वीं शताब्दी में गुजरात राज्य की राजधानी होने के अवशेष आज भी मौजूद हैं। आइए सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं क्या था इस शहर के बनने का कारण।
पौराणिक कहानी यह है
गुजरात में वडोदरा से 45 किमी दूर बसा है पावागढ़, जिसकी कहानी हजारों साल से भी पुरानी है। कहते हैं कि जब दक्ष प्रजापति ने यहां एक यज्ञ किया, तो उसमें ब्रह्मांड के सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया था। मगर, भगवान शिव के को न्योता नहीं दिया था।
तब माता सती ने भोलेनाथ का अपमान होते देख हवन कुंड में अपनी आहूति देकर प्राण त्याग दिए थे। इसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गए। वह माता सती का जला हुआ शरीर लेकर तांडव करने लगे, इससे ब्रह्मांड में उथलपुथल मच गया। इस दौरान सभी देवी-देवता डरते हुए भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे।
भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। उनके शरीर का जो हिस्सा जहां गिरा, वहां एक शक्तिपीठ बन गया। कहते हैं कि पावागढ़ में माता सती के दाहिने पैर का अंगूठा जहां गिरा था, वहीं पावागढ़ पर्वत बन गया। इसीलिए इस जगह का नाम पावागढ़ पड़ा।
चोटी पर बना है कालिका माता मंदिर
कहते हैं कि 900 से 1000 ईस्वी के बीच पावागढ़ पहाड़ी की चोटी पर शक्ति की देवी कालिका माता का दो मंजिला मंदिर बना था। शारदीय और चैत्र नवरात्र के दौरान साल में दो बार कालिका माता की विशेष पूजा होती है। मंदिर के भूतल पर देवी मां के कई चित्र और मूर्तियां हैं।
पावागढ़ पहाड़ी पर बने मंदिर तक पहुंचने के लिए दो तरीके हैं। पहला, जंगल के रास्ते से करीब पांच किलोमीटर की चढ़ाई करना। ट्रैकिंग के शौकीन लोगों को यह बहुत अच्छा लगेगा। अगर आप ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहते हैं, तो केबल कार से भी यहां आसानी से जा सकते हैं।
ये है चंपानेर के बनने की मध्यकालीन कहानी
अब बात करते हैं पावागढ़ के पास बसे चंपानेर की। यह जगह मध्यकालीन समय में गुजरात की राजधानी हुआ करती थी। यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस के शो एकांत के अनुसार, चंपानेर के बनने की कहानी को तीन भागों में बांटा है।
पहला है, इसके बनने की शुरुआत। 8वीं सदी के शासक वनराज ने पावागढ़ पहाड़ पर चंपानेर शहर को बसाया था। इस जगह को उनके सेनापति चंपा ने बनाया था, जिनके नाम पर इस जगह का नाम चंपानेर पड़ा। हालांकि, अब यहां इसके कुछ टूटे-बिखरे मंदिरों के अवशेष ही बचे हैं। खासतौर पर लकुलीश शिव मंदिर।
फिर राजपूतों ने 200 साल किया शासन
इसके करीब 500-600 साल बाद कहानी का दूसरा भाग शुरू होता है, जब यहां राजपूतों का शासन आता है। पावागढ़ के किले में बसा चंपानेर उस वक्त मुख्य राज्य के रूप में स्थापित हुए। पृथ्वीराज चौहान के वंशज खींंची चौहान बहुत पराक्रमी थे, उन्होंने करीब 200 साल तक यहां शासन किया।यहां कई सारी इमारतें बनाईं। यहां के प्राकृतिक पठारों का इस्तेमाल करके उन्होंने 7 लेयर में किले की दीवारें बनवाईं। कहते हैं कि उस समय पहाड़ों को देखकर लगता था कि कोई शेषनाग लेटा हुआ है। राजपूतों ने पहाड़ों पर किलों की हार-माला बनवा दी। इसके साथ ही पानी के लिए कुंड भी बनवाए।
खींची चौहान के 9वें और आखिरी राजा पटाई रावल का महल एक पहाड़ी पर बनाया गया था। कहते हैं कि पावागढ़ में नवरात्रि के समय मां काली आज भी गरबा करने आती हैं। ऐसे ही एक सुंदर महिला वहां गरबा करने पहुंची, तो पटाई राजा ने देखा कि ऐसी सुंदर स्त्री पहले तो कभी नहीं देखी।उन्होंने उस स्त्री से कहा कि हमारी रानी बन जाओ। उसने चालू गरबे में माता का पल्लू पकड़ लिया। तो माता ने अपना स्वरूप दिखाते हुए श्राप दिया कि तेरा राज-पुत्र आदि सब नष्ट हो जाएगा। इसके कुछ समय बाद एक बड़ी सेना ने चंपानेर पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दिया।
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फिर पहाड़ों पर बसे चंपानेर का हुआ अंत
चंपानेर के पश्चिम में अहमदाबाद का मुस्लिम शासक और पूर्व में मांडू का मुस्लिम शासक था। बीच में था यह बफर स्टेट। सुल्तान मेहमूद बेगड़ा ने हमला कर पटाई राजा को बंदी बना लिया। उसने पटाई राजा से कहा कि यदि वह मुस्लिम धर्म अपना ले, तो उसे छोड़ दिया जाएगा।मगर, पटाई राजा ने इससे साफ इनकार कर दिया। उसने कहा कि हम पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं, हम ऐसा नहीं करेंगे। इस पर मेहमूद बेगड़ा ने पटाई राजा की हत्या कर दी। फिर उसने चंपानेर को पूरी तरह से तबाह कर दिया। इसके बाद उसने पहाड़ी के नीचे 1484 में नई नगरी मोहम्मदाबाद बसाई।
यह गुजरात की पहली प्लान्ड सिटी थी, जो पहाड़ों पर बसे चंपानेर से ज्यादा बड़ा, ज्यादा खूबसूरत था। उसने इस शहर में 242 विशाल खंभों वाली जामी मस्जिद बनवाई थी। इसका निर्माण उसी 20 महीनों के दौरान हुआ था, जब सुल्तान की लड़ाई खींचियों से चल रही थी। आगे चलकर उनकी राजधानी बने मोहम्मदाबाद की यह पहली इमारत बनी।मेहमूद बेगड़ा चाहता था कि वह इस जगह को भारत का मक्का बनाए। इसके लिए उसने मोहम्मदाबाद में एक से बढ़कर एक खूबसूरत और भव्य इमारतों का निर्माण कराया। इन मस्जिदों के पास बड़े-बड़े बगीचे हुआ करते थे, जिनकी देखरेख के लिए पर्शिया (फारस अब ईरान) से माली बुलाए गए थे।
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इतिहास ने भी 400 साल तक भुला दी ये जगह
सुल्तान बेगड़ा की मौत के बाद उनकी तीसरी पीढ़ी के राजा बने बहादुर शाह ने 1530 में शासन संभाला। उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। वहां की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी के साथ एक चिट्ठी भेजी। इसमें लिखा कि वह उसे अपना भाई मानती है और उसे हुमांयू की मदद चाहिए।हुमांयू अपने साले को पनाह देने के लिए सुल्तान बहादुर शाह से पहले से नाराज थे। इस बीच रानी कर्णावती के खत से उन्हें बहादुर शाह से लड़ने के लिए बहाना मिल गया। हुमायूं दिल्ली से सेना लेकर निकला और पावागढ़ से बहादुर शाह अपनी सेना लेकर निकला। दोनों का काफिला मध्य प्रदेश के मंदसोर पहुंचा, जहां दोनों के बीच युद्ध हुआ।सुल्तान बहादुर के तोपची ने दगा दे दिया। हार के डर से बहादुर शाह युद्ध छोड़कर मांडू भाग गया। हुमायूं उसका पीछा करते हुए मांडू गया, तो बहादुर शाह वहां से चंपानेर भाग आया। यहां से उसने अपना खजाना मक्का रवाना कर दिया और खंबात में जाकर छिप गया।जब हुमायूं चंपानेर पहुंचा, तो पता चला कि सुल्तान खंबात में छिपा है। इससे खीजकर हुमायूं ने मोहम्मदाबाद को जलाकर तहस-नहस कर दिया। हालांकि, मस्जिदों को छोड़ दिया, क्योंकि वह भी मुस्लिम शासक था। इसके बाद यह जगह इतिहास में भुला दी गई थी। वडोदरा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मेहता ने 1969 में इस जगह की दोबारा खोज की और इस जगह का आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराया।
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चंपानेर कैसे पहुंचें
वडोदरा से करीब 50 किमी दूर बसे चंपानेर जाने के लिए गुजरात राज्य परिवहन की बसों में सफर किया जा सकता है। इसके अलावा आप टैक्सी या अपने वाहन से भी यहां पहुंच सकते हैं। अहमदाबाद से चंपानेर करीब 150 किमी दूर है।चंपानेर के पास सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन वडोदरा जंक्शन है। निकटतम हवाई अड्डा भी वडोदरा में है। रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे से चंपानेर पहुंचने के लिए टैक्सी से लेकर बस तक कई साधन मिलते हैं।
डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और गुजरात सरकार की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी और फोटो ली गई है।