Roha Fort History: खिलजी का हमला, राजकुमारियों का जौहर… इतिहास ने भी भुला दिया कच्छ का यह किला
Gujarat roha fort history गुजरात के भुज जिले में बना है रोहा का किला। इस किले की कहानी को आज भले ही इतिहास ने भुला दिया है। मगर किसी जमाने की इसकी समृद्धि की चर्चा दूर-दूर तक होती थी। अंग्रेजों की तरफ से भी यहां के ठाकुर को कानूनी कार्रवाई करने और जेलखाना रखने की भी छूट थी। उन्हें फांसी के अलावा हर चीज का अधिकार मिला हुआ था ।
शशांक शेखर बाजपेई, नई दिल्ली। Gujarat roha fort history गुजरात के भुज जिले से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर बना है रोहा किला। यह किला कच्छ के नखतराना तालुका में रोहा गांव की सीमा पर करीब 16 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। जमीन से 500 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर बना यह किला आज जर्जर होने के बाद भी कच्छ का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
रोहा एक समय कच्छ की सबसे बड़ी जागीरों में से एक हुआ करती थी। किसी जमाने में इस जगह की अलग ही शान हुआ करती थी। किले के तहत करीब 52 गांव आते थे। मगर, हैरानी की बात है कि इतिहास में इस जगह को कोई खास तवज्जो नहीं मिली। 16वीं शताब्दी में बसी ये जगह 1965 में पूरी तरह से बर्बाद हो गई।
रही-सही कसर साल 2001 में गुजरात में आए भयंकर भूकंप ने पूरी कर दी। अब किले की दीवारें और घरों के खंडहर ही बचे हैं, जिसे देखने के लिए कई सैलानी पहुंचते हैं। चलिए जानते हैं रोहा के बनने और फिर बर्बाद होने की कहानी…
1550 में बनना शुरू हुआ था किला
किले का इतिहास साल 1550 से शुरू होता है। कच्छ के राव खेंगरजी जडेजा ने भुज से करीब 50 किमी दूर नखत्राणा प्रांत में रोहा शहर की स्थापना की थी। ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस के शो एकांत में रोहा जागीर के वंशज ठाकुर पुष्पेंद्र ने इसकी पूरी कहानी बताई।
वो बताते हैं कि राव खेंगरजी के भाई साहेबजी के पोते देवाजी ने किले को बनाने की शुरुआत की थी। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी जियाजी ने वहां दो विशाल तालाब बनवाए थे। कहा जाता है कि वे सोने और चांदी से भरे हुए हैं। उस समय रोहा को कच्छ के सबसे समृद्ध प्रांतों में से एक माना जाता था। उस समय रोहा के अधीन 52 गांव आते थे। मगर, इस किले का पूरा निर्माण 8वीं या 9वीं पीढ़ी में ठाकुर नोगंजी ने 18वीं शताब्दी में 1730 के करीब में कराया था। किले को देखकर भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका निर्माण अलग-अलग समय में अलग-अलग वंशजों ने कराया था।