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Father of Plastic Surgery: महर्षि सुश्रुत ने की थी दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी, जानिए इससे जुड़ी खास बातें

मेडिकल साइंस में तरक्की के चलते आज तरह-तरह की सर्जरी डॉक्टर्स के लिए मामूली बात बन गई है। आज इस आर्टिकल में हम आपको प्लास्टिक सर्जरी के बारे में बताएंगे चूंकि काफी कम लोग ही जानते हैं कि इसकी शुरुआत भारत से ही हुई थी। जी हां पहली बार इसे अंजाम दिया था महर्षि सुश्रुत ने जिन्हें आधार बनाकर पूरे विश्व ने इस सर्जरी को सीखा। आइए जानें।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Sat, 30 Mar 2024 10:05 PM (IST)
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प्राचीन भारत से कैसे हुई थी प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत, जानिए इसके बारे में
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Father of Plastic Surgery: सर्जरी के पितामह महर्षि सुश्रुत प्राचीन भारत के जाने माने सर्जन थे। उनके द्वारा लिखी गई सुश्रुत संहिता में नाक की प्लास्टिक सर्जरी का जिक्र देखने को मिलता है। इसके पीछे की वजह भी बेहद दिलचस्प है, जिसे जानकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे। आइए इस आर्टिकल में आपको बताते हैं, कि कैसे हुई थी प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत, और प्राचीन भारत में इसे कैसे दिया जाता था अंजाम।

भारत से हुई थी प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत

क्या आप भी अब तक यही मानते आए हैं, कि प्लास्टिक सर्जरी विदेशी जमीन की देन है, तो आज हम आपको कुछ ऐसा बताएंगे, जिसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। बता दें, आज से लगभग 3 हजार साल पहले प्राचीन भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने पहली बार नाक की सर्जरी की थी। उन्होंने अपनी किताब में भी इससे जुड़ी प्रक्रिया का उल्लेख किया है, कि स्किन ग्राफ्टिंग क्या होती है, और इसे कैसे किया जाता है।

वजह भी है बेहद दिलचस्प

प्राचीन भारत में गंभीर अपराधों के लिए नाक और कान काट दिए जाते थे। सजा के इस प्रावधान के चलते बाद में अपराधी चिकित्सा विज्ञान की मदद से इन अंगों को वापस लाने की कोशिश करते थे। ऐसे में महर्षि सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत महसूस हुई थी, और वे नाक वापस जोड़ने की सर्जरी सफलतापूर्वक करने भी लगे थे।

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सुश्रुत संहिता में है 300 तरह की सर्जरी का उल्लेख

सुश्रुत संहिता में लगभग 300 तरह की सर्जिकल प्रक्रियाओं की जानकारी मौजूद है। इसमें ब्लैडर स्टोन निकालना, कैटरेक्ट, हर्निया और यहां तक कि सर्जरी के जरिए प्रसव करवाए जाने का भी जिक्र दिया हुआ है।

सर्जरी के बाद इन्फेक्शन से बचाव का तरीका

सुश्रुत संहिता में उल्लेख मिलता है, कि प्राचीन भारत में सुश्रुत नाक की सर्जरी के दौरान व्यक्ति के गाल या माथे की त्वचा को लेकर सर्जरी के दौरान उसका इस्तेमाल करते थे। यही नहीं, सुश्रुत के पास सर्जरी के बाद भी तरह-तरह के इन्फेक्शन से बचाव के लिए कई प्रकार की औषधियां मौजूद थीं, जिन्हें रूई की सहायता से अंग पर लपेटकर ढक दिया जाता था।

पश्चिमी देशों तक पहुंची सुश्रुत संहिता

8वीं सदी में अरबी भाषा में सुश्रुत संहिता का अनुवाद होने के बाद यह पश्चिमी देशों तक भी पहुंच गई। यहीं नहीं, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अपने भारत प्रवास के दौरान 1793 में दो अंग्रेज सर्जनों ने भी नाक की सर्जरी को अपनी आंखों से देखा। लंदन की जेंटलमैन मैगजीन में भी इसका जिक्र देखने को मिलता है। जानकारी के मुताबिक, एक ब्रिटिश सर्जन जोसेफ कॉन्स्टेंटिन ने इस प्रक्रिया को जानने-समझने के बाद करीब 20 सालों तक लाशों के साथ इसका अभ्यास किया, और इसके बाद 1814 में उनके द्वारा किया गया ऑपरेशन भी सफल रहा।

सुश्रुत संहिता में 1100 बीमारियों का जिक्र

सुश्रुत संहिता में सर्जरी के ग्यारह सौ बीमारियों का भी जिक्र किया गया है, और उनके इलाज के लिए 650 तरह की दवाओं का भी उल्लेख है। चाहे फिर, चोट लगने पर खून के बहाव को रोकने की बात हो, या टूटी हड्डियां को जोड़ने का विषय। बता दें, प्रचीन भारत में कटे हुए पार्ट की सिलाई करने के लिए टांकों की जगह चींटियों के इस्तेमाल का भी उल्लेख मिलता है, उनके जबड़े घाव को क्लिप करने का काम करते थे।

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Picture Courtesy: ncsm.gov.in