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History of Talakad: तलक्कड़, मालंगी और मैसूर में आज भी लगे हुए हैं तीन श्राप, जानिए किस रानी ने दिया था और क्यों…

तलक्कड़ रेत में दफन हो जाए मालंगी कावेरी में डूब जाए और मैसूर के राजाओं को कोई संतान न होगी। ये श्राप श्रीरंगपट्टम के तिरुमाला राजा की पत्नी अलमेलम्मा ने वोडेयार राजा को दिया था। कहते हैं कि इसी की वजह से पिछले 400 साल में 19 पीढ़ियों में एक भी राजा को संतान नहीं हो रही है। देश की धरोहर में पढ़िए ये खास कहानी...

By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Sat, 19 Oct 2024 09:00 AM (IST)
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दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की एक ऐसी कहानी, जो पढ़कर आप हो जाएंगे हैरान।

शशांक शेखर बाजपेई। दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में कावेरी नदी के तीव्र मोड़ पर बसा है तलाकाडु, जिसे तलक्कड़ के नाम से भी जानते हैं। मैसूर से 45 किमी और बेंगलुरु से 185 किमी दूर इस जगह का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है। यहां आने पर आपको रेत के विशाल फैलाव के साथ एक सुंदर नजारा देखने को भी मिलेगा।

मगर, साथ ही आश्चर्य भी होगा कि समुद्र से काफी दूर होने के बावजूद भी यहां इतनी रेत कहां से आई? फिर जब यहीं आप थोड़ा-सा आगे चलेंगे, तो पता लगेगा कि मालंगी गांव धीरे-धीरे कावेरी नदी में समाता चला जा रहा है। उससे भी ज्यादा हैरत यह जानकर होगी कि पछले 400 साल में मैसूर के राजा की कोई संतान नहीं होती है।

जानना चाहेंगे इन सारे सवालों के जवाब

आखिर यहां ऐसा क्या हुआ था, कब हुआ था? ये सब कैसे हुआ, क्यों हुआ और किसने किया? अगर आप भी इन सवालों का जवाब जानना चाहते हैं, तो हमारे साथ कहानी की इस धार में बह चलिए, जिसमें आपको एक राजा के षड्यंत्र, एक रानी के श्राप की रोंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी पता चलेगी…

कई शासकों ने किया यहां राज

कर्नाटक सरकार की वेबसाइट mysore.nic.in में दी गई जानकारी के अनुसार, शक्तिशाली पश्चिमी गंगों ने 350 से 1050 ईस्वी तक यहां शासन किया। इसके बाद 11वीं शताब्दी में चोल शासकों ने उन्हें उखाड़ फेंका। फिर 12वीं शताब्दी में तलक्कड़ होयसल साम्राज्य के अधीन आ गया।

होयसल शासकों ने बेलूर में प्रभावशाली विजयनारायण चेन्नाकेशव मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य के शासकों और मैसूर के महाराजाओं ने इस स्थान पर शासन किया। मगर, तलक्कड़ का इतिहास इससे भी पुराना है।

दो भाइयों ने नाम पर पड़ा यहां का नाम

कहा जाता है कि लंका में रावण के विरुद्ध युद्ध करने जाने के दौरान भगवान राम कुछ समय के लिए यहां रुके थे। वहीं, एक कहानी के अनुसार, इस जगह का नाम दो भाइयों ताला और काडु के नाम पर तालाकाडु पड़ा, जो बाद में तलक्कड़ कहा जाने लगा।

दोनों भाई जंगल में एक पेड़ काट रहे थे। उन्होंने देखा कि कुछ जंगली हाथी उसी पेड़ की पूजा कर रहे हैं। दोनों भाइयों ने देखा कि पेड़ में शिवलिंग की आकृति बनी हुई है। उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी छोड़ दी और पेड़ की पूजा करने लगे।

तभी उन्होंने देखा कि वो हाथी ऋषि में बदल गए और पेड़ फिर से अपनी पुरानी स्थिति में आ गया। उस चमत्कारी जगह पर मौजूद हर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो गया। अब वीरभद्र स्वामी मंदिर के सामने जुड़वां भाइयों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो पत्थर रखे गए हैं।

एक राजा के षड्यंत्र और लालच की कहानी

ये तो हुई तलक्कड़ के बनने की कहानी। मगर, सवाल ये है कि ये जगह बर्बाद क्यों हो गया। ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस के शो एकांत के अनुसार, 14वीं शताब्दी से मैसूर में वोडेयार राजाओं का शासन था। उस समय मैसूर छोटा राज्य था और विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा था।

पास का श्रीरंगापट्टनम राज्य मैसूर से बड़ा था। 1565 में विजयनगर साम्राज्य के टूटने से बड़ी राजनीतिक हलचल हुई। तक मैसूर के राजा वोडेयार और श्रीरंगापट्टनम के राजा तिरुमल राय थे। तिरुमल राय को डर था कि आस-पास के राजा उन पर हमला करेंगे।

इसलिए उन्होंने नवरात्र पूजा के बहाने श्रीरंगापट्टनम बुलाकर उनकी हत्या की साजिश रची। राजा वोडेयार को इसका पता चला और वह बच निकले। इसके बाद उन्होंने श्रीरंगापट्टनम पर हमला कर इसे जीत लिया, जबकि युद्ध में राजा तिरुमल की मृत्यु हो गई।

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मालंगी में जाकर रहने लगीं रानी अलमेलम्मा

इस घटना के बाद उनकी पत्नी अलमेलम्मा पास के मालंगी में जाकर रहने लगीं। वह भगवान रंगनाथ की पत्नी श्रीरंगनायकी की बड़ी भक्त थीं। इनका आदिरंग मंदिर श्रीरंगापट्टनम का प्रमुख तीर्थस्थल है। हर मंगलवार और शुक्रवार को बड़ी आरती होती थी। श्रीरंगनायकी की मूर्ति को गहनों से सजाया जाता था।

आरती के बाद ये गहने अलमेलम्मा के पास रख दिए जाते थे। जह अलमेलम्मा मालंगी चली गईं, तो वे ये गहने भी अपने साथ ले गईं। युद्ध के कुछ समय बाद पुजारी राजा वोडेयार के पास गए और गहनों को वापस लाने की विनती की।

गहनों को कावेरी नदी में फेंककर दे दी जान

राजा वोडेयार ने अपने सैनिकों को गहने जब्त करने के लिए भेजा। तब उन्होंने सिर्फ एक नथनी देकर सैनिकों को वापस भेज दिया। अपने आदेश की अवहेलना होते देख राजा वोडेयार ने सैनिकों को अलमेलम्मा के पास से पूरे गहने लाने के लिए दोबारा भेजा।

जब सैनिक दोबारा अलमेलम्मा के पास पहुंचे, तो उस वक्त वह तलक्कड़ में थी। वह वोडेयार राजा को गहने नहीं देना चाहती थीं। लिहाजा, उन्होंने सारे गहने कावेरी नदी में फेंक दिए और खुद भी नदी में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी।

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मरने से पहले रानी ने दिए थे तीन श्राप

हालांकि, रानी अलमेलम्मा ने अपनी जान देने से पहले तीन शाप दिए थे। उन्होंने कहा था कि तलक्कड़ रेत में दफन हो जाएगा। आज इस जगह पर रेत के अंबार देखकर कोई भी कह सकता है कि यह निश्चित ही उस श्राप के कारण हुआ है। वर्ना वहां जो मंदिर बने हैं, वो बिना ठोस जमीन के आधार के बनना नामुमकिन थे।

दूसरा श्राप कि मालंगी गांव कावेरी नदी में डूब जाएगा। यह भी कमोबेश सच होता ही दिख रहा है। कहते हैं कि यह गांव ऐसी जगह स्थित है, जहां कावेरी नदी तीव्र मोड़ ले रही है और उसकी वजह से गांव की मिट्टी का कटान लगातार होता चला जा रहा है। इसकी वजह से गांव धीरे-धीरे कावेरी में समाता चला जा रहा है।

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तीसरे श्राप को विज्ञान भी नहीं समझ सका

तीसरा और आखिरी श्राप कि मैसूर के राजाओं को कोई संतान नहीं होगी। पिछले 400 साल से ऐसा ही हो रहा है। हर बार राजा किसी बालक को गोद लेता है और उसे राजा बनाता है। चूंकि, वह बालक पहले से राजा नहीं होता है, तो उस पर श्राप हावी नहीं होता है।

मगर, जब उसकी संतान होती है, तो वह जन्म से ही राजकुमार होती है, जो आगे चलकर राजा बनती है। बस यहीं से रानी का वह श्राप उस पर लग जाता है और उसे संतान नहीं होती है। फिर वह भी किसी बच्चे को गोद लेता है और उसे राजा बनाता है। यह सिलसिला पिछले 400 सालों से चल रहा है।

पहले के दो श्राप को तो विज्ञान के जानकार अपनी-अपनी तरह से समझा लेते हैं। जैसे कावेरी नदी के रास्ता बदलने या मालंगी के तीव्र मोड़ के किनारे बसे होने के कारण वह डूब रही है। मगर, रानी के तीसरे श्राप का रहस्य तो विज्ञान भी नहीं सुलझा सका है।

डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और कर्नाटक सरकार की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी ली गई है।