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Asahyog Andolan: आज ही के दिन महात्मा गांधी ने शुरू किया था असहयोग आंदोलन, हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत की नींव

असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस आंदोलन को 1 अगस्त 1920 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया गया था। असहयोग आंदोलन में देश के कोने-कोने से हरेक तबके के लोग कूद पड़े। साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद यह पहला मौका था जब किसी आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की नींव को हिला कर रख दिया हो।

By Sonu GuptaEdited By: Sonu GuptaUpdated: Tue, 01 Aug 2023 02:20 AM (IST)
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आज ही के दिन महात्मा गांधी ने शुरू किया था असहयोग आंदोलन। फाइल फोटो।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारत के इतिहास में अगस्त का महीना वैसे तो कई कारणों से याद किया जाता है। हालांकि, 1 अगस्त 1920 का दिन इन सब तिथियों में सबसे खास है। इसी दिन अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी। असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय साबित हुआ।

पूरे देश में फैली राष्ट्रवादी भावनाएं

असहयोग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीय जनता को एकजुट करना था। इस आंदोलन के साथ राष्ट्रवादी भावनाएं देश के कोने-कोने में पहुंच गई और इस आंदोलन से देश के हरेक वर्ग के लोग जैसे कारीगर, किसान, छात्र, शहरी गरीब, महिलाएं, व्यापारी आदि शामिल हो गए। इस आंदोलन के तहत शिक्षा का सबसे अधिक बहिष्कार बंगाल में किया गया। हालांकि, बंगाल में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में शिक्षा संबंधी बहिष्कार का नेतृत्व किया था।

आंदोलन से हिल गई थी ब्रिटिश सरकार की नींव

असहयोग आंदोलन ने भारतीय जनता को जगाने का काम किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी। साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद यह पहला मौका था जब किसी आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की नींव को हिला कर रख दिया हो। इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार ने कई भारतीय नेताओं और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में भेज दिया।

आंदोलन में कई महत्वपूर्ण व्यक्ति हुए शामिल

मालूम हो कि जिस दिन असहयोग आंदोलन को महात्मा गांधी ने शुरू किया, उस दिन संयोगवश लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु भी हो गई। हालांकि, फिर भी इस आंदोलन में कई महत्वपूर्ण लोग बढ़ चढ़ कर शामिल हुए। वल्लभभाई पटेल, गोपबंधु दास, अज़मल खान, सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू, सी राजगोपालाचारी जैसे महत्वपूर्ण और प्रख्यात लोगों ने इस आंदोलन में भाग लिया। चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू जैसे कई लोगों ने अपने कानून के पेशे को छोड़कर इस आंदोलन में कूद पड़े।

जलियांवाला बाग बना असहयोग आंदोलन का प्रमुख कारण

अमृतसर के जलियांवाला बाग में भारी संख्या में लोगों की भीड़ अंग्रेजों के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रही थी। इसी दौरान अंग्रेजों ने निहत्थी भीड़ पर अंधाधुंध गोली चलाकर एक जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया, जिसके विरोध में पूरे भारत में तिखी प्रतिक्रिया के साथ विरोध दर्ज की गई। इस घटना ने समूचे भारत को आक्रोशित कर दिया और भारत का एक बड़ा वर्ग अंग्रेजों के खिलाफ हो गया, जिसके बाद महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस आंदोलन की शुरुआत हुई।  

महात्मा गांधी ने जब आंदोलन को लिया वापस

सत्य और अहिंसा के पुरोध महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को उस समय वापस लेने का ऐलान कर दिया, जब उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में भीड़ और थाने के पुलिसकर्मियों के बीच हिंसक झड़प हो गई, जिसमें  22 पुलिसकर्मियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। 5 फरवरी 1922 में हुई इस घटना ने राष्ट्रपिता को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। इस आंदोलन में बढ़ती हिंसा से नाखुश होकर उन्होंने आंदोलन वापसी की घोषणा कर दी।

महात्मा गांधी की सुनाई गई छह साल की सजा

हालांकि, सुभाष बोस, जवाहरलाल नेहरू, सी.आर. दास, मोतीलाल नेहरू जैसे कई प्रमुख नेताओं ने आंदोलन वापसी पर नाराजगी और अपनी असहमति जताई। इस बीच महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया और उनको छह साल की जेल की सजा सुनाई गई।