450 साल पहले शाही रसीद हुआ करता था पासपोर्ट, जानें कब और कैसे हुई इसके मॉर्डन रूप की शुरुआत
विदेश की यात्रा करना हर किसी का ख्वाब होता है। ऐसे में किसी दूसरे देश जाने के लिए सबसे पहले अगर किसी चीज की जरूरत होती है तो वह पासपोर्ट है। इसके बिना विदेश जाना लगभग नामुमकिन होता है। वर्तमान में अलग-अलग देशों की यात्रा करने के लिए पासपोर्ट का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। विदेश घूमना हम में से कई लोगों का सपना होता है। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए लोगों को कई सारी चीजें करनी पड़ती हैं। इन सभी चीजों में सबसे ज्यादा जरूरी पासपोर्ट है, जिसके बिना दूसरे देश जाना लगभग नामुमकिम होता है। यह विदेशों में हमारी पहचान होता है। पासपोर्ट के बिना दूसरे देश में हमारी कोई पहचान नहीं है। यही वजह है कि इन दिनों लगभग हर व्यक्ति के पास पासपोर्ट है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इस पासपोर्ट की शुरुआत कब और कैसे हुई।
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पासपोर्ट का मतलब क्या है?
पासपोर्ट एक फ्रेंच शब्द है, जिसका मतलब किसी पोर्ट से गुजरने या पास होने के लिए अनुमति देना होता है। सन 1464 में इस शब्द की बड़े स्तर पर व्याख्या की गई और तब इसका मतलब होता था, सुरक्षा प्रदान करने वाला एक ऐसा दस्तावेज, जो किसी भी व्यक्ति को बिना किसी रोकटोक के सीमाओं को पार करने और आने-जाने की आधाकारिक अनुमति देता है। पुराने समय में पासपोर्ट राजा-महाराजाओं के दौर से लेकर प्रथम विश्वयुद्ध तक बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाला एक शाही अनुमति पत्र हुआ करता था।450 साल पहले मिलता है जिक्र
पासपोर्ट के इतिहास की बात करें तो इसका जिक्र ईसा से करीब साढ़े चार सौ साल पहले हिब्रू साहित्य में मिलता है। इस साहित्य के मुताबिक जब फारस के राजा ने नेहेमियाह नाम के एक अधिकारी को जूडिया भेजा, तो उसे एक रसीद दी थी। इस रसीद में अलग-अलग देशों के सरदारों से अनुरोध किया गया था कि नेहेमियाह की यात्रा में मदद करें।
दरअसल, उस दौरान हवाई यात्रा का कोई साधन नहीं होता था, तो गंतव्य तक पहुंचने के लिए विभिन्न देशों से होकर गुजरना पड़ता था, जहां हर देश की सीमा पर पहरेदार होते थे। ऐसे में यह रसीद पासपोर्ट की तरह काम करती थी। इस रसीद को ही पासपोर्ट का शुरुआती प्रारूप माना जाता है। इसके अलावा मध्य युग में इस्लामी खिलाफत में सिर्फ उन्हीं लोगों को देश के अलग-अलग हिस्सों में यात्रा करने की अनुमति थी, जिनके पास जका और जिज्वा की रसीद होती थी। यह भी एक तरह का पासपोर्ट ही हुआ करता था।