हाव-भाव की नकल से कहीं बढ़कर है मिमिक्री का मतलब, जानें कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत
क्या आपको भी दूसरों की आवाज निकालना या फिर उनकी बॉडी लैंग्वेज की नकल उतारना अच्छा लगता है? बता दें अगर मिमिक्री करने वाला हाव-भाव और स्टाइल को सही ढंग से कॉपी करना जानता हो तो देखने या सुनने वाला अपनी हंसी रोक नहीं सकता है। आइए जानते हैं कि पहली बार कब हुआ था इस शब्द का इस्तेमाल (Mimicry Origin) और क्या है इसका इतिहास।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Mimicry Origin: मिमिक्री को आम तौर पर मनोरंजन का एक रूप माना जाता है, जिसका मकसद किसी को नीचा दिखाना या फिर शर्मिंदा करना नहीं, बल्कि लोगों को बेहतर तरीके से हंसाने का होता है। कलाकार इसका गलत इस्तेमाल करता है या फिर उसमें सूझबूझ की कमी है तो अक्सर विवाद भी खड़े हो जाते हैं। बावजूद इसके आज यह कला तेजी से एक करियर ऑप्शन बनकर उभर रही है जिससे युवा पीढ़ी बड़े पैमाने पर प्रभावित भी हो रही है। क्या आप जानते हैं कि बॉडी लैंग्वेज से जुड़ी यह अनोखी कला कितनी पुरानी है और पहली बार कब इस शब्द का इस्तेमाल किया गया था? अगर नहीं, तो चलिए आज आपको इससे जुड़ी रोचक जानकारी (Mimicry History) से रूबरू कराते हैं।
क्या है होती है मिमिक्री?
मिमिक्री में न सिर्फ किसी की आवाज, हाव-भाव या स्टाइल की नकल की जाती है बल्कि इसे एक हास्यपूर्ण अंदाज में पेश भी किया जाता है जिससे श्रोता हंसी के ठहाके लगाने पर मजबूर हो जाता है।कहां से आया मिमिक्री शब्द?
मिमिक्री शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है और इसे पहली बार साल 1667 में रिकॉर्ड किया गया था। इसका शाब्दिक अर्थ है 'नकल करना'।
क्या है मिमिक्री का सही तरीका?
मिमिक्री करने वाला व्यक्ति किसी प्रसिद्ध हस्ती, राजनेता या किसी अन्य व्यक्ति की विशेषताओं को इस तरह से उभारता है कि दर्शक उस व्यक्ति की पहचान आसानी से कर सकें। मिमिक्री में न सिर्फ आवाज की नकल की जाती है बल्कि बॉडी लैंग्वेज, चेहरे के हाव-भाव और यहां तक कि उस व्यक्ति के उठने-बैठने या चलने-फिरने के तरीके को भी हूबहू दोहराया जाता है। इस बीच कुछ अतिरिक्त हास्यपूर्ण तत्वों को भी जोड़ा जाता है जैसा कि आप भी अक्सर अपने दोस्तों के बीच हंसी का माहौल बनाने के लिए किसी तीसरे दोस्त की खिंचाई के लिए करते होंगे। हालांकि, मिमिक्री इससे काफी बढ़कर है। इसमें एक बाउंड्री का होना भी बेहद जरूरी होता है, जिससे सामने बैठा शख्स शर्मिंदा भी न हो और बिना उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाए दर्शकों का भी मनोरंजन हो जाए।यह भी पढ़ें- कुछ इस तरह से हुई थी सिनेमाघरों में पॉपकॉर्न बेचने की शुरुआत, अमेरिका की महामंदी का इसमें रहा बड़ा रोल
मिमिक्री का इतिहास
मिमिक्री शब्द सुनते ही आपके मन में किसी की नकल करने का ख्याल आता होगा। क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत प्राचीन काल से ही हो चुकी थी। प्राचीन ग्रीस और रोम में लोग एक-दूसरे की नकल करके मनोरंजन करते थे। मध्य युग में भी मिमिक्री का चलन था, लेकिन इसे अक्सर राजाओं और धर्मगुरुओं का मजाक उड़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। देखा जाए, तो इंसान ने हमेशा से अपने आसपास के लोगों, जानवरों और वस्तुओं की नकल करने की कोशिश की है। गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र, शिकार करने के तरीके, भाषा का विकास, ये सभी मिमिक्री के प्रारंभिक उदाहरण हैं। आदि मानव ने गुफाओं की दीवारों पर जानवरों और शिकार के दृश्यों को चित्रित करके अपनी जिंदगी और आसपास के वातावरण को समझने की कोशिश की। शिकार करने के लिए इंसान जानवरों के बरताव और आवाजों की नकल करके उन्हें फंसाया करते थे। बता दें, भाषा का विकास भी मिमिक्री का ही एक रूप है। हमने अपने आसपास की आवाजों और ध्वनियों को सुनकर उनकी नकल करने की कोशिश की, जिसका धीरे-धीरे भाषा के साथ विकास होता गया।कितने तरह की होती है मिमिक्री?
- आवाज की नकल: इसमें किसी व्यक्ति की आवाज की हूबहू नकल की जाती है।
- शारीरिक हाव-भाव की नकल: इसमें किसी व्यक्ति की बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के एक्सप्रेशन की नकल की जाती है।
- शैली की नकल: इसमें किसी व्यक्ति की बातचीत के तरीके या उसके बिहेवियर की नकल की जाती है।
मिमिक्री के फायदे
- मनोरंजन: मिमिक्री दर्शकों को हंसाती है और मनोरंजन की वजह बनती है।
- स्ट्रेस में कमी: मिमिक्री तनाव कम करने में मददगार साबित हो सकती है।
- सोशल अवेयरनेस: मिमिक्री का इस्तेमाल कई बार सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए भी किया जाता है।