स्वच्छ भारत अभियान न केवल भौतिक गंदगी की सफाई करेगा, बल्कि लोगों की मानसिकता पर भी इसका असर पड़ेगा। प
By Edited By: Updated: Thu, 30 Oct 2014 04:42 AM (IST)
स्वच्छ भारत अभियान न केवल भौतिक गंदगी की सफाई करेगा, बल्कि लोगों की मानसिकता पर भी इसका असर पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य रखा है। यह एक कठिन लक्ष्य है, लेकिन असंभव नहीं। हमें भौतिक संसाधन जुटाने के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर भी प्रयास करने होंगे। तभी जाकर स्वच्छ भारत का लक्ष्य पूरा हो सकेगा। दुनिया के दूसरे देशों में जब कभी हम जाते हैं तो इतनी ग्लानि होती है कि काश हमारा भी देश ऐसा ही साफ-सुथरा होता। इस लक्ष्य के मद्देनजर सरकार द्वारा अपनाए गए तौर-तरीके भी बहुत प्रभावशाली हैं जैसे कि सभी प्रमुख लोगों अथवा हस्तियों को नौ प्रभावशाली लोगों की टीम में खड़ा करने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना। ये वे लोग हैं जो स्वच्छ भारत देखने की लालसा रखते हैं, लेकिन इसके लिए शायद ही कभी ठोस पहल करते हैं। अब इन लोगों का भी इस काम में शामिल होना एक बड़ी पहल है जिससे वास्तविक धरातल पर बड़ा असर पड़ेगा।
स्वच्छ भारत अभियान को लेकर तमाम तरह की बातें की जा रही हैं और इस पर भी बात हो रही है कि इसे वास्तव में किसने शुरू किया और कब शुरू हुआ। मेरे विचार से इन बातों पर चर्चा करना बुद्धिमानी नहीं होगी, लेकिन सच्चाई यही है कि इस कार्य को एक विशेष जाति के लोग पुश्तैनी कार्य के रूप में कर रहे हैं। अन्य जातियों ने सोचा कि गंदगी करना उनका कार्य है, क्योंकि साफ करने वाली जाति समाज में आज भी मौजूद है अथवा बनी हुई है। यह प्रवृत्तिशहरों में ज्यादा देखने की मिलती है। यह सही है कि गांवों में गंदगी को साफ कराने का बहुत इंतजार नहीं होता और प्राय: लोग यह काम खुद करना पसंद करते हैं, बावजूद इसके स्वच्छता वहां भी नहीं है। मोदी सरकार की घोषणा से देश की कोई भी गली नहीं बची होगी जहां इसकी चर्चा नहीं हो रही हो। यह बात अलग है कि वहां सफाई अभियान को लेकर अभी भी कोई विशेष प्रयास नजर नहीं आ रहा है। फिर भी एक बात तो साफ है कि इससे निश्चित तौर पर लोगों के मन-मस्तिष्क में बदलाव आ रहा है और इसी के साथ यह नारा देना भी सर्वथा उचित होगा कि क्लीन मेंटेलिटी एंड क्लीन लोकेलिटी। इसका आशय यह है कि मानसिकता में परिवर्तन लाओ और गंदगी को दूर भगाओ। इससे जो सांस्कृतिक परिवर्तन अथवा बदलाव होगा वह चिरस्थायी होगा और धीरे-धीरे हमारी जीवनशैली का अभिन्न अंग बन जाएगा। जिस तरह से हम अपने शरीर और घर की साफ-सफाई करते हैं उसी तरह से अन्य जगहों की सफाई रखना भी हमारी मानसिकता बन जाएगी।
इस अभियान को सफल बनाने के लिए जागरूकता फैलाने का कार्य करना होगा। इस संबंध में देश के विभिन्न शहरों और स्थानों पर चर्चाओं का भी आयोजन किया जाना चाहिए। अधिकारी, नेता, व्यक्ति, व्यावसायिक प्रतिष्ठान अथवा बाकी अन्य लोगों और संस्थाओं को भी स्वच्छता के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कर्मचारियों-अधिकारियों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके सीआर अथवा कांफिडेंशियल रिपोर्ट में इसके लिए अलग से अंक देने का प्रावधान होना चाहिए। किसी भी चुनाव में भाग लेने वाले जनप्रतिनिधि के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि उसने इस क्षेत्र में कार्य किया हो और उसके आस-पास का वातावरण स्वच्छ हो। इसके अलावा सरकार द्वारा जो भी सहायता दी जाए चाहे कोटा परमिट हो अथवा राशन कार्ड आदि के लिए स्वच्छता की शर्त को अनिवार्य रूप से जोड़ा जाना चाहिए। यह भी देखें कि हम जिस तरह से अपने सगे-संबंधियों के तमाम हितों की देखभाल करना अपना कर्तव्य समझते हैं उसी तरह यह भी देखें कि वे लोग स्वच्छता पर ध्यान दे रहे हैं अथवा नहीं। यदि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है तो हम इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करें और इसके महत्व के बारे में बताएं। भारत को स्वच्छता से इतने लाभ होंगे कि इनकी गिनती करना मुश्किल होगा। इस समय भारत की आर्थिक विकास के लिए जो बात सबसे अधिक जरूरी है वह यह कि विदेशी निवेश को आकर्षित किया जाए, लेकिन इसके लिए स्वच्छता जरूरी है। विदेशी भारत की गंदगी से बहुत ही कतराते हैं और भले ही मुंह पर न बोलें, लेकिन पीठ पीछे इसकी चर्चा अवश्य करते हैं। प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर को कहा कि यदि भारत स्वच्छ होता है तो डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति व्यक्ति वर्ष में साढ़े छह हजार रुपये की बचत कर सकेगा, क्योंकि स्वच्छता के कारण बीमारियों पर होने वाला खर्च कम हो जाएगा। सभी को वित्ताीय रूप से इसका कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिलेगा। भारत का गौरवपूर्ण इतिहास है और इसकी संस्कृति काफी पुरानी है। इसे देखने-समझने के लिए बड़ी तादाद में विदेशी पर्यटक भारत आना चाहते हैं, यहां लेकिन गंदगी की वजह से वे यहां आने से कतराते हैं। सिंगापुर, थाइलैंड जैसे देशों की अर्थव्यवस्था उनके पर्यटन के वजह से चल रही हैं, लेकिन हमारे यहां दिन-प्रतिदिन पर्यटक कम होते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री इस कार्यक्रम से श्रम की महत्ता पर भी जोर दे रहे हैं और जो जबानखर्ची लंबे अर्से से बनी हुई थी उसे वह धरातल पर उतारने का काम कर रहे हैं।
सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों द्वारा लोगों में यह भावना जरूर पैदा की जानी चाहिए और जागरूकता लाई जानी चाहिए कि सफाई बेहद महत्वपूर्ण काम है। अभी तक लोगों की अवधारणा यही थी कि सफाई न करना सम्मान का प्रतीक है, लेकिन अब विचार का यह पहिया उल्टा घूम जाना चाहिए। कोई भी व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों न हो अगर वह किसी तरह की गंदगी करता है तो उसको समाज में नीचा दर्जा मिलना चाहिए। इसके लिए प्रोत्साहन के साथ सामाजिक प्रताड़ना भी जरूरी है। जहां पर साफ-सफाई नहीं है वहां विकास इत्यादि से भी हाथ खींचने जैसे प्रावधान हों ताकि लोग स्वच्छता की दिशा में सक्रिय रहें। इसके लिए प्रोत्साहन एवं प्रताड़ना के अनगिनत तरीके हैं। हमें संकल्प लेना चाहिए कि हर हाल में इस अभियान को कामयाब बनाकर ही दम लेंगे। [लेखक डॉ. उदित राज, लोकसभा के सदस्य हैं]