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परम पुरुष

ईश्वर का भजन करके, ईश्वर का सान्निध्य पाकर मनुष्य क्या करेगा? उस समय वह कोई काम करेगा या सेवा करेगा।

By Edited By: Updated: Thu, 23 Jul 2015 12:40 AM (IST)
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ईश्वर का भजन करके, ईश्वर का सान्निध्य पाकर मनुष्य क्या करेगा? उस समय वह कोई काम करेगा या सेवा करेगा। भगवान की सेवा, परम पुरुष की सेवा। सेवा क्या है? आप जानते हैं कि दो मनुष्यों का संपर्क यदि लेन-देन के आधार पर हो यानी किसी ने एक रुपया दिया, उससे एक रुपये की वस्तु खरीदी, तो उसे व्यवसाय कहेंगे। यह भक्ति नहीं है। भक्ति होती है एकतरफा। यानी आप चाहते हो, मैं जो भी कर सकूं, भगवान के लिए करूं और उसके विनिमय में कुछ न लूं। अब भगवान मनुष्य के पास से क्या चाहते हैं? वे कुछ भी नहीं चाहते। क्यों नहीं चाहते? कारण यह कि उनके पास कोई भी अभाव नहीं है, तो वे क्या मांगेगे? कुछ भी नहीं। इसलिए इस विचार से देखने पर भगवान को मनुष्य कुछ भी नहीं दे सकता है। जबकि मनुष्य भगवान से बहुत कुछ मांग सकता है- नाम, यश, संपदा। जैसे- किसी व्यक्ति को मैंने 100 रुपये दान में दिए और फिर दानदाताओं की सूची में अपना नाम तलाशना शुरू कर दूं। यह दान एकतरफा नहीं रहा। आपने दान दिया और विनिमय में यश पाने की चेष्टा की। इसलिए यह आपकी सेवा ही नहीं हुई, दान भी नहीं हुआ। आपने तो सीधे-सीधे व्यवसाय किया है, रुपया दिया है और खरीदा है नाम, यश। इसलिए यह सेवा नहीं हुई। तो भगवान की सेवा किस प्रकार करेंगे। हां, भगवान की सेवा दो पद्धतियों से की जा सकती है। एक पद्धति यह है कि परमपुरुष द्वारा सृष्ट यह जगत है। इस जगत का प्रत्येक जीव जब परम पुरुष द्वारा सृष्ट है, तब प्रत्येक जीव परमपुरुष का अत्यंत प्रिय होगा।

असल में बात यह है कि सभी परम पुरुष के प्रिय हैं, किंतु जो लोग सत्पथ पर हैं, परमपुरुष उनका कम तिरस्कार करते हैं, उन्हें कम डांटते हैं और जो दुष्ट हैं उन्हें डांटते हैं, थोड़ी-बहुत सजा भी देते हैं, किंतु घृणा नहीं कर सकते, प्यार का पात्र वह भी है। इसलिए उस पर कुछ शासन, तिरस्कार करके उसे अच्छा बना देना चाहते हैं। कैसे? जैसे कोई रास्ते से जा रहा है और उसकी पोशाक साफ-सुथरी है, बच्चे की मां उसी अवस्था में उसे गोद में उठा लेती है और जो लड़का रास्ते में गिर पड़ा था और उसके कपड़े धूल से सन गए थे, मां उसके कपड़े झाड़कर उसे गोद में ले लेती है। आशय यह है कि मां को दोनों प्रिय हैं।

[श्रीश्री आनंदमूर्ति]