समय की शक्ति
समय जीवन की आत्मा है। मौन रहकर अपना कार्य करते रहना इसका स्वभाव है। समय आंधी तूफान नहीं है। यह अपने चाहने से नहीं आता। समय तो सही समय पर ही आता है। इसे सहेजने-संवारने वाले एक न एक दिन आकाश चूमते ही हैं। समय नष्ट करना आलस्य है। समय के आगे कभी किसी की नहीं चलती। अत: समय ईश्वर है। श्रेष्ठ साहित्य प्रतिकूल समय में लिखा जाता है। प्रतिकूल समय में अच्छे लोगों के लिए स्थान सीमित और अयोग्य के लिए सर्वत्र स्थान रहता है। मां के गर्भ में आते ही एक-एक पल का समय कम होने लगता है। दुख के समय मनुष्य के प्रत्येक अंग में आंख हो जाती है। दुखों की उपस्थिति मानव के अस्तित्व का श्रेष्ठतम प्रमाण है। अपने समय के साथ मुठभेड़ करने वाले नाम कमाते हैं। भावनाओं में घटनाओं का समावेश रहता है। आत्मा की घटनाएं समय पाकर उपजती हैं। लकड़ी तौलने वाली तराजू पर हीरे को नहीं तौला जाता। हीरा तौलने, जांचने, परखने का काम जौहरी करता है। केवल स्वाति नक्षत्र का जल पीने वाला ही चातक है। जब तक कठोर परिश्रम से सफलता का घट सम्यक भर नहीं जाता तब तक उसका फल पाने का समय नहीं आता। बिना परिश्रम कुछ पाने को भाग्य कहते हैं, परिश्रम के बाद भी कुछ न पाने को अन्याय। योग्यता बिना अवसर का समय पाए कुछ भी दिखाने में असमर्थ रहती है। समय समर्थ की ही परीक्षा लेने में तपाता है, जैसे हरिश्चंद्र। स्वयं के चाहने से जो होता है वह तो अच्छा रहता है पर जो अपने चाहने पर नहीं होता या विलंब से होता है वह और अच्छा रहता है। यही ईश्वर इच्छा है। ईश्वर कुछ और बड़ा फल देने के लिए देर करता है। जीवन को गीत समझकर गुनगुनाना पड़ता है। समय कभी मूक कर देता है तो कभी वाचाल। समय ही उदय, अस्त करता है। यही भूप और क्रूर बनाता है। कालचक्र के सुख-दुख के पहिये से संसार गतिशील है। सुंदर चीजों की आयु कम रहती है। समय नेकी व सच्चाई का संरक्षण करता है।
[डा. हरिप्रसाद दुबे]