चीन के बढ़ते रक्षा बजट से भारत को सतर्क रहने की आवश्यकता
यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष के कारण एक बार फिर वैश्विक परिदृश्य पूरी तरह से बदलता हुआ दिख रहा है। चीन द्वारा अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी करने से विश्व में यह संदेश गया है कि सुरक्षा के मामले में चीन किसी से समझौता नहीं करेगा।
डा. लक्ष्मी शंकर यादव । चीन का रक्षा बजट पिछले वर्ष 209 अरब डालर था। पांच मार्च को प्रस्तुत इस वर्ष के रक्षा बजट को बढ़ाते हुए 230 अरब डालर कर दिया है। इस 21 अरब डालर को मामूली बढ़ोतरी नहीं कहा जा सकता है। चीन का रक्षा बजट अब भारत के मुकाबले तीन गुना से ज्यादा हो गया है। उल्लेखनीय है कि भारत के साथ चीन का तनाव पिछले काफी दिनों से चल रहा है। भारत के साथ लगती सीमा पर तनातनी और अमेरिका के साथ चल रहे तनाव के बीच चीन ने अपना रक्षा बजट प्रस्तुत किया जिसमें उसने भारी वृद्धि की है।
चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग द्वारा वहां की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस यानी एनपीसी में प्रस्तुत मसौदा बजट के हवाले से जानकारी दी कि चीन की सरकार ने वित्त वर्ष 2022 के लिए 230 अरब डालर के रक्षा बजट का प्रस्ताव किया है। देखा जाए तो चीन द्वारा रक्षा बजट में वृद्धि का प्रस्ताव हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके द्वारा शक्ति प्रदर्शन की बढ़ती घटनाओं के बीच आया है। ली केकियांग ने संसद में प्रस्तुत कार्य रिपोर्ट में पीएलए की युद्ध संबंधी तैयारियों को वृहद तरीके से मजबूत करने पर विषेश जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि देश की संप्रभुता, सुरक्षा विकास हितों की रक्षा के लिए चीन की सेना को मजबूत और ठोस तरीके से सैनिक तैयारियों को अंजाम देने की आवश्यकता है।
चीन का नया रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट की तुलना में तीन गुना से भी ज्यादा हो गया है। यहां जानने वाली एक बात और है कि चीन का आंतरिक सुरक्षा बजट इससे अलग है जो हमेशा रक्षा बजट से अधिक ही होता है। राष्ट्रपति शी चिनफिंग के वर्ष 2012 में सत्ता में आने के बाद चीन का रक्षा खर्च लगातार बढ़ा है। चीन द्वारा विगत वर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा और सशस्त्र बलों के विकास की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की गई थी। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो अमेरिका का रक्षा बजट सबसे ज्यादा 770 अरब डालर है। इसके बाद चीन और भारत का नंबर है। इसके बाद रूस का 61.7 अरब डालर, ब्रिटेन का 59.2 अरब डालर, सउदी अरब का 57.5 अरब डालर, जर्मनी का 52.8 अरब डालर, फ्रांस का 52.7 अरब डालर और जापान का 49.1 अरब डालर है।
चीन द्वारा उसके रक्षा खर्चों में यह बढ़ोतरी ऐसे समय की गई है जब लद्दाख और अरुणाचल सीमा पर पिछले लगभग दो साल से चल रहा तनाव कम नहीं हुआ है। तनाव कम करने के लिए 15वें दौर की वार्ता में भी कुछ हल निकल सका है। वहीं दूसरी तरफ चीन का अमेरिका के साथ सैन्य एवं राजनीतिक तनाव बढ़ता ही जा रहा है। चीन के खिलाफ बने क्वाड गठजोड़ ने भी चीन की चिंताओं को अधिक बढ़ाया है। इन सबके अलावा चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से पीछे हटने वाला नहीं है। शायद इसीलिए चीन अपने रक्षा बजट में लगातार बढ़ोतरी कर रहा है। विदित हो कि यह लगातार सातवां ऐसा वर्ष है जब चीन के रक्षा बजट में बढ़ोतरी का प्रतिशत इकाई अंक तक ही सीमित रखा, लेकिन भारत की तुलना में उसका रक्षा बजट काफी अधिक है।
यहां गौरतलब यह भी है कि रक्षा बजट के मामले में चीन अभी भी अमेरिका से काफी पीछे है। इस घोषणा के बाद चीन अमेरिका के बाद रक्षा पर सबसे अधिक खर्च करने वाला दूसरा देश बन गया है। अमेरिका का रक्षा बजट चीन के मुकाबले लगभग चार गुना ज्यादा होता था जो अब साढ़े तीन गुना ही ज्यादा है।
हाल के वर्षों में चीन ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए कई बड़े सैन्य सुधार किए हैं। इन सुधारों के तहत उसने दूसरे देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए नौसेना और वायु सेना को प्राथमिकता देते हुए उनका विस्तार किया। अब चीन नई रोबोट आर्मी तैयार कर रहा है और इसकी तैनाती भी भारतीय सीमा के नजदीक करनी शुरू कर दी है। उसने भारतीय सीमा के नजदीक सैन्य गांव भी बसा दिए हैं। जबकि उसने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों की संख्या में तीन लाख तक की कटौती भी की है। इसके बावजूद 20 लाख की सैन्य संख्या बल के साथ पीएलए अब भी दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। चीन अपनी इसी रक्षा नीति पर चलते हुए अमेरिका को पीछे छोड़ता हुआ दुनिया की सबसे बड़ी नौसैन्य ताकत बन रहा है। विगत दो वर्षों में चीनी नौसेना में जितने युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल की गई हैं उतने शायद अमेरिका की नौसेना में न हों। इतने हथियारों की बढ़ोतरी के बाद भी उसकी भूख कम नहीं हुई है।
विदित हो कि कुछ समय पहले चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपनी नौसेना को संसार की सबसे बड़ी नौसैन्य ताकत बनाने का जो संकल्प लिया था उसे चीन पूरा करने में लगा हुआ है। वर्ष 2020 तक चीन ने 360 से ज्यादा युद्धपोतों की तैनाती की है। चीन की यह विस्तारवादी नीति आने वाले समय में विश्व को नए युद्ध में धकेलने में देर नहीं लगाएगी।
चीन अपनी सामरिक क्षमता बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहता है। चीन ने रक्षा बजट में वृद्धि को उचित ठहराते हुए यह भी कहा कि अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है। खासकर दक्षिण चीन सागर को लेकर खींचतान सबसे ज्यादा है। चीन के नीति नियंताओं के मुताबिक सेना को अत्याधुनिक बनाए जाने के फोकस को देखते हुए रक्षा बजट बढ़ाया गया है। चीन का ध्यान स्टील्थ लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, सेटेलाइट रोधी मिसाइल समेत नई सैन्य क्षमता विकसित करने पर है। चीन अपना दबदबा बढ़ाने के लिए नौसेना की पहुंच को समुद्री क्षेत्रों में फैला रहा है। इस साल के रक्षा बजट का मुख्य जोर नौसेना के विकास पर रहेगा, क्योंकि दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर पर उसके दावे तथा समुद्री आवागमन के लिहाज से इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा हुआ है। इसके अलावा, एशिया प्रशांत क्षेत्र में अस्थिर सुरक्षा स्थिति को देखते हुए उसके जवाब के तौर पर तैयार होना है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन सैन्य क्षेत्र में दुनिया के शक्तिशाली देशों की तुलना में सबसे ऊपर रहना चाहता है। ऐसी स्थिति में भारत को चीन की रक्षा बजट में बढ़ोतरी से सजग रहने की आवश्यकता होगी।
( लेखक सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक रहे हैं )