डा. सुरजीत सिंह। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भारत के शेयर बाजार ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। सरकार की दूरगामी आर्थिक नीतियों और सकारात्मकता का ही परिणाम है कि भारत की मध्यम और छोटी कंपनियां बड़ी कंपनियों की तुलना में अधिक बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। उभरते बाजारों में भारत निवेशकों का पसंदीदा देश बन रहा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जापान के बाद भारत निवेशकों का दूसरा सबसे पसंदीदा देश बन गया है। एक सितंबर से 13 सितंबर तक कुल 13 दिनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के द्वारा 53 हजार करोड़ का निवेश भारत में हुआ, जिसमें से 28 हजार करोड़ का निवेश शेयर बाजार में हुआ। भारतीय शेयर बाजार में आई तेजी ने न सिर्फ विदेशी, बल्कि घरेलू निवेशकों को भी आकर्षित किया है। पिछले चार वर्षों में भारतीय निवेशकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। शेयर बाजार में मिलने वाले अच्छे रिटर्न ने निवेशकों के आत्मविश्वास को बढ़ाया है। परंपरागत क्षेत्रों जैसे सोना और प्रापर्टी में निवेश के अलावा लोगों की शेयर बाजार में भी दिलचस्पी बढ़ी है। अकेले उत्तर भारत के निवेशकों की संख्या लगभग चार गुना बढ़ गई है। इंटरनेट और मोबाइल के प्रसार ने लोगों में शेयर बाजार की जानकारी और निवेश को लेकर जागरूकता बढ़ाई है।

आनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म और मोबाइल एप की सुगमता ने शेयर बाजार को बहुत आसान बना दिया है। वित्तीय साक्षरता में होने वाली वृद्धि ने भी लोगों को इसमें निवेश करने के लिए प्रेरित किया है। यही कारण है कि इन्वेस्टमेंट रिसर्च फर्म मार्गन स्टैनली कैपिटल इंटरनेशनल के नवीनतम सूचकांक में भारत ने चीन को पछाड़ते हुए पहला स्थान प्राप्त किया है। यह फर्म विभिन्न देशों के आधार पर, क्षेत्रों के आधार पर, उभरते बाजारों आदि के आधार पर अनेकों प्रकार के सूचकांक जारी करता है। इसमें दो सूचकांक सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। पहला, उभरते बाजार का निवेश योग्य बाजार सूचकांक और दूसरा, उभरते बाजार का मानक सूचकांक। उभरते बाजार के निवेश योग्य बाजार सूचकांक में चीन के 21.58 प्रतिशत वेटेज की तुलना में भारत का वेटेज 22.27 प्रतिशत हो गया है।

मार्गन स्टैनली द्वारा बड़ी, मध्यम और छोटी कंपनियों के 3,355 शेयरों के आधार पर 24 उभरते बाजारों का निवेश योग्य बाजार सूचकांक तैयार किया जाता है। उभरते बाजार के मानक सूचकांक में भी भारत ने अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है। इस सूचकांक में बड़ी और मध्यम कंपनियों के शेयर शामिल होते हैं। माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक उभरते बाजार के मानक सूचकांक में भी भारत चीन को पीछे छोड़ देगा, क्योंकि पिछले दिनों चीन के खराब प्रदर्शन करने वाले लगभग 60 स्टाक को इसमें से हटा दिया गया, जबकि भारत के अच्छा प्रदर्शन करने वाले सात स्टाक को इसमें जोड़ा गया। इसके बाद भारत का वेटेज जहां 84 प्रतिशत बढ़ा है, वहीं चीन के वेटेज में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। वर्तमान में चीन का वेटेज 23.7 प्रतिशत है और भारत का प्रतिशत 20.6 प्रतिशत है। 2021 की शुरुआत में भारत का वेटेज 9.2 प्रतिशत था, जो चीन के 38.7 प्रतिशत वेटेज के एक-चौथाई से भी कम था। यह पुनर्संतुलन व्यापक बाजार रुझानों को दर्शाता है।

जहां चीन आर्थिक चुनौतियों और विनियामक कार्रवाइयों से जूझ रहा है, वहीं अनुकूल आर्थिक स्थितियों से भारत को काफी लाभ हुआ है। इस समय चीन का कुल बाजार पूंजीकरण 8.14 लाख करोड़ डालर है, जो भारत के 5.03 लाख करोड़ डालर से 60 प्रतिशत अधिक है। मार्गन स्टैनली के दोनों सूचकांकों में भारत के वेटेज का बढ़ना यह सिद्ध करता है कि वैश्विक मंच पर भारत की साख बढ़ रही है। सरकार की अनुकूल नीतियों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत हो रही है और भारतीय कंपनियां प्रभावशाली प्रदर्शन कर रही हैं। इन सबके कारण इक्विटी बाजार लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। देश न सिर्फ निरंतर आर्थिक प्रगति कर रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक समुदाय को भी लुभा रहा है। भारत के मैक्रो अर्थशास्त्र के विभिन्न पक्ष जैसे मौद्रिक और राजकोषीय घाटा आदि पहलुओं पर भी अनुकूल स्थितियां हैं। साल 2024 की शुरुआत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में 47 प्रतिशत की वृद्धि, कच्चे तेल की कीमतों में कमी, भारतीय ऋण बाजारों में पर्याप्त विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआइ) आदि ऐसे सकारात्मक रुझान प्रमुख कारक रहे हैं। इस सकारात्मकता के कारण ही घरेलू निवेशकों द्वारा भी तुलनात्मक रूप से अधिक पैसा शेयर बाजार में निवेश किया जा रहा है।

भारत का वेटेज चीन से ज्यादा होने से एवं अमेरिका में मंदी आने की आहट से विदेशी निवेशकों का आज भारतीय कंपनियों पर भरोसा तेजी से बढ़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार मार्गन स्टैनली के सूचकांकों में होने वाले इस बदलाव से भारतीय इक्विटी बाजार में 35 हजार करोड़ से 40 हजार करोड़ तक की पूंजी आ सकती है, जिससे आर्थिक वृद्धि को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा। आने वाले समय में छोटी और मध्यम कंपनियों के शेयर बड़ी कंपनियों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ने की संभावना है। भारतीय बाजारों के बढ़ते महत्व को बनाए रखने के लिए और देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए घरेलू और विदेशी, दोनों प्रकार की पूंजी पर विशेष बल देना होगा। 2047 तक भारत को विकसित देशों में शामिल करने के लिए एक अपेक्षित निवेश की गति को बनाए रखना होगा। निवेशकों की निरंतरता एवं वैश्विक बाजार में भारत के भरोसे को बनाए रखने के लिए सकारात्मक दीर्घकालिक प्रवृत्ति के ढांचे को विकसित करना होगा। इसके लिए उदार निवेश नियमों के द्वारा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को एक अनुकूल आर्थिकी प्रदान करनी होगी।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)