पेरिस समझौते के आगे की राह, भारत जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में बनना चाहता है दुनिया का एक जिम्मेदार देश
भारत स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति बन गया है और कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करने वाले स्रोतों से निकल कर अक्षय और गैर-जीवाश्म ईंधन वाले स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने में अग्रणी देश है।
[हर्षवर्धन शृंगला]। पेरिस समझौते के पांच वर्षों के बाद भारत उन कुछेक विकासशील देशों में से एक है, जो न केवल अपने ‘पर्यावरण संरक्षण’ संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि जलवायु संबंधी साध्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए और अधिक प्रयास कर रहे हैं। हाल में जलवायु आकांक्षाओं से जुड़े शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय दृष्टिकोण को सबके सामने रखा। उन्होंने कहा कि हमें अतीत के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए ‘और बड़े लक्ष्यों’ को दृष्टि में रखना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करेगा। 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु संरक्षण शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में किया गया थोड़ा-सा भी काम ढेरों उपदेशों से कहीं अच्छा होता है। हम जलवायु संरक्षण से संबंधित अभियान और आकांक्षाओं के क्षेत्र में अग्रणी बनने के लिए ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, कृषि और हरित क्षेत्रों की सुरक्षा सहित सभी क्षेत्रों में अपने पूरे समाज की इस यात्रा में व्यावहारिक कदम उठा रहे हैं।
भारत का यह मानना है कि जलवायु परिवर्तन से अलग-अलग बंटे हुए रह कर नहीं लड़ा जा सकता है। इसके लिए एकजुटता के साथ, व्यापक और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके लिए नवाचारों तथा नई और स्थायी प्रौद्योगिकियों को अपनाने की जरूरत है। भारत इन अनिवार्यताओं के प्रति सचेत है और इसीलिए भारत ने अपनी राष्ट्रीय विकासात्मक और औद्योगिक रणनीतियों में जलवायु को शामिल किया है।
अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर
ऊर्जा जलवायु संबंधी सभी रणनीतियों का केंद्रीय बिंदु है। हमारा मानना है कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति बन गया है और कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करने वाले स्रोतों से निकल कर अक्षय और गैर-जीवाश्म ईंधन वाले स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने में अग्रणी देश है। हमारा उद्देश्य भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता का उपयोग करते रहना है। अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में हम दुनिया में चौथे स्थान पर हैं। अक्षय ऊर्जा के इस क्षेत्र में जिस प्रकार का क्षमता विस्तार किया जा रहा है, वह भी दुनिया में सबसे बड़े प्रयासों में से एक है। इसका सबसे बड़ा भाग सूर्य से प्राप्त होगा, जो ऊर्जा का सबसे स्वच्छ स्रोत है। हम इस दिशा में पहले ही प्रगति पर हैं। शुरू में हम वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध थे। हम इससे भी आगे बढ़ गए हैं और हमें विश्वास है कि हम अगले दो वर्षों में 220 गीगावाट क्षमता प्राप्त कर लेंगे। हमारा 2030 तक 450 गीगावाट क्षमता संस्थापित करने का और भी बड़ा महत्वाकांक्षी लक्ष्य है।
उज्ज्वला योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वच्छ ऊर्जा पहल में से एक
हम वर्ष 2030 तक भारत में 40 प्रतिशत बिजली गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं। स्वच्छ ऊर्जा का यह अभियान वर्ष 2030 तक हमारी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन की तीव्रता को 33-35 प्रतिशत (2005 के स्तर की तुलना में) तक कम करने के प्रयासों के साथ-साथ चलता रहेगा। उजाला योजना एलईडी लैंप उपयोग करने का एक राष्ट्रीय अभियान प्रति वर्ष कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को 3.85 करोड़ टन कम कर रही है। उज्ज्वला योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वच्छ ऊर्जा पहल में से एक है, जिसके तहत आठ करोड़ से अधिक परिवारों को स्वच्छ रसोई गैस की सुविधा प्रदान की गई है। कई क्षेत्रों में चलाई जा रही सरकारी योजनाओं में जलवायु संबंधी अभियान और इसके स्थायित्व को शामिल किया जा रहा है।
जल जीवन मिशन पर दिया जा रहा जोर
हमारा स्मार्ट सिटी मिशन सौ शहरों में चल रहा है, ताकि वे जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के समक्ष अधिक स्थायी और नई परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तनीय बन सकें। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का लक्ष्य अगले चार वर्षों में वायु प्रदूषण (पीएम 2.5 और पीएम 10) को 20-30 प्रतिशत तक कम करना है। जल जीवन मिशन में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि घरों में हमेशा जल उपलब्ध रहे, जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत के सभी घरों में 2024 तक नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है। कार्बन को अवशोषित करने के लिए और अधिक पेड़ लगाए जा रहे हैं और बंजर भूमि को पुन: उपजाऊ बनाया जा रहा है, जो 2.5-3 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर सकते हैं।
ग्रीन ट्रांसपोर्ट नेटवर्क का निर्माण करने की दिशा में तेजी से हो रहा काम
हम विशेष रूप से अपने बड़े शहरों में प्रदूषण उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी सेक्टर के प्रभाव को कम से कम करने के लिए ग्रीन ट्रांसपोर्ट नेटवर्क का निर्माण करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। भारत मॉस ट्रांजिट सिस्टम, ग्रीन हाईवे और जलमार्गों जैसे अगली पीढ़ी के बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है। नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्लान एक ई-मोबिलिटी अवसंरचना तैयार कर रहा है, जिसका उद्देश्य यह है कि भारत के कुल वाहनों में से 30 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक हों। ये पहल हमारी भलाई के लिए ही हैं, क्योंकि भारत उन देशों में से एक है, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित है। हम यह जानते हैं कि हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन हमारे इन प्रयासों से लाभ मिलना आरंभ हो गया है। वर्ष 2005-2014 की अवधि के दौरान भारत की उत्सर्जन मात्रा में 21 प्रतिशत की कमी आई है। अगले दशक तक हम इसमें और भी अधिक कमी की उम्मीद कर रहे हैं।
80 से अधिक देश अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में हुए शामिल
भारत जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में दुनिया का एक जिम्मेदार देश बनना चाहता है। हम न केवल पेरिस समझौते की अपनी प्रतिबद्धताओं से भी अधिक कार्य कर रहे हैं, बल्कि हम जलवायु परिवर्तन के बारे में की जाने वाली कार्रवाई के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए नए परिवर्तनकारी साधन अपना रहे हैं। हमने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे कई अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाए हैं, जो वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने से संबंधित समाधान तैयार करने की दिशा में काम कर रहे हैं। 80 से अधिक देश अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल हो गए हैं, जिससे यह तेजी से विस्तार पाने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक बन गया है। राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जिम्मेदार देश होने के कारण भारत विकासशील देशों में अद्वितीय बन गया है। इससे भारत जलवायु परिवर्तन पर अपनी सोच रखने और यथोचित कार्रवाई करने में अग्रणी भूमिका निभाने की अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने की राह पर अग्रसर हो रहा है।
(लेखक भारत के विदेश सचिव हैं)
[लेखक के निजी विचार हैं]