लाइव पर व्यंग्य: मैं ऐसे विषय के साथ लाइव आना चाहता हूं जिसके साथ अभी तक कोई भी लाइव नहीं आया हो
वैसे तो तमाम विवादास्पद मुद्दे हैं लेकिन मुझे सर्वसम्मति वाला कोई विषय दिख नहीं रहा है।
मुझे भी खुद को दिखाना है
मेरे मित्र मुझे बता रहे हैं-समझा रहे हैं कि लाइफ में लाइव नहीं आया तो सोशल मीडिया की दुनिया में रहना ही निरर्थक है
[ मोहनलाल मौर्य ]: कई दिनों से सोच रहा हूं कि सोशल मीडिया पर लाइव आऊं, लेकिन यही सोचकर रह जाता हूं कि अपनी शक्ल-सूरत शायद लाइव होने लायक नहीं। सुना है कि जिनकी सूरत खूबसूरत होती है, सिर्फ वही लाइव आते हैं। उन्हें ही ज्यादा लाइक और कमेंट का प्रसाद मिलता है। भले ही वे यूं ही लाइव हुए हों। यह भी सुना है कि लाइव के लिए शक्ल-वक्ल मायने नहीं रखती। बस लाइव आने के पीछे कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होना चाहिए। हां, लाइव पर लाइक नहीं मिले तो लाइव आना ही बेकार है। इससे मेरी दुविधा और बढ़ गई। फिलहाल मैं इसी उधेड़बुन में हूं कि लाइव आने का आखिर मकसद क्या हो और बिना उद्देश्य न हो क्या करूं-क्या कहूं? ऐसा क्या करूं कि सोशल मीडिया में अपना चेहरा दिखाऊं?
लाइव बोले तो जिंदा
लाइव बोले तो जिंदा। विमर्श यह कि मुद्दा सामयिक हो या असामयिक। सामाजिक हो या राजनीतिक। ऐतिहासिक हो या साहित्यिक। आर्थिक हो या धार्मिक। सहिष्णु हो या असहिष्णु। एलोपैथिक हो या आयुर्वेदिक। या फिर इनसे अलग ही हो। अलग क्या हो? अलग हो तो ऐसा हो, जो कि अलख जगा दे। बिना वायरस के पहली लाइव में ही लाइफ बना दे। किसी वायरस की वजह से लाइव हुए तो क्या हुए। लाइफ बेवजह खतरे में डालकर चर्चित हुए तो यह भी कोई वायरल होना हुआ।
इस आभासी दुनिया में लाइव से ही पहचान बनती है
मेरे मित्र मुझे बता रहे हैं-समझा रहे हैं कि लाइफ में लाइव नहीं आया, दुनिया को अपना चेहरा नहीं दिखाया तो सोशल मीडिया की दुनिया में रहना ही निरर्थक है। ज्यादा नहीं तो एक लाइव तो बनता है। इस आभासी दुनिया में लाइव से ही पहचान बनती है। लाइव से ही वाइफ खुश रहती है। वाइफ खुश तो सारा जहां खुश। लाइव से फेसबुक फ्रेंड का बैकग्राउंड दिख जाता है। बगैर लाइव के फ्रेंड के बारे में कुछ भी पता नहीं लगता। वह कैसा दिखता है? किस टाइप का है? लाइव से उसका रूपरंग, हाव-भाव से परिचित हो जाते हैं। फैन बन जाते हैं।
लाइव वह मिसाइल है, जिसके जरिये व्यक्ति चांद तक पहुंच सकता है
मित्र ने तो यहां तक कहा है कि आजकल लाइव ही वह मिसाइल है, जिसके जरिये व्यक्ति चांद तक पहुंच सकता है। मैं हूं कि गली के नुक्कड़ तक नहीं पहुंच पा रहा हूं। चांद तक न सही, आसमान छूने की तमन्ना तो मेरी भी है, लेकिन मैं हूं कि लाइव आने- चेहरा दिखाने में हिचकिचा रहा हूं। समझ में नहीं आ रहा है कि लाइव आने के लिए ऐसा क्या करूं जिससे कि मेरी हिचक दूर हो जाए और मैं लाइव आ जाऊं।
कविता सुनने वाले श्रोता कम और कवि लाइव ज्यादा
मन कह रहा है कि तू साहित्यकार है न, तो क्यों न उसे ही आजमाए? कविता, गीत, गजल, व्यंग्य या कहानी में से किसी एक को लेकर लाइव आ और सुर्खियों में छाजा। लाइव आने को मोबाइल हाथ में लेता हूं, तो एक मन कहानी के लिए और और दूसरा मन व्यंग्य के लिए। मुझे गीत गजल तो आती नहीं। कविता लेकर इसलिए नहीं आना चाहता, क्योंकि अभी कविता सुनने वाले श्रोता कम और कवि लाइव ज्यादा आ रहे हैं। ऐसे में मुझ र्अंकचन की कविता के लाइव को देखना-सुनना तो दूर एक लाइक तक नहीं मिलेगा। कहानी और व्यंग्य में कहानी मुझे कहनी नहीं आती और व्यंग्य हर किसी के समझ में नहीं आता। यह सोच कर लाइव नहीं आ पा रहा हूं।
लाइफ में पहला लाइव ऐसा हो कि कोई वाह किए बगैर न रहे
हालांकि राजनीति की समझ नहीं है। अन्यथा राजनीति को लेकर बिना किसी हिचकिचाहट के लाइव आ जाऊं। और बेतुके बयान देकर सुर्खियों में छा जाऊं। सोच रहा हूं कि किसी न किसी सामाजिक विषय को लेकर लाइव आऊं, लेकिन सामाजिक विषय तो तमाम हैं। उनमें चयन नहीं कर पा रहा हूं कि किस विषय को लेकर लाइव का प्रयास करूं, क्योंकि मैं ऐसे विषय के साथ लाइव आना चाहता हूं जिसके साथ अभी तक कोई भी लाइव नहीं आया हो। लाइफ में पहला लाइव ऐसा हो कि कोई वाह किए बगैर न रहे। वैसे तो तमाम विवादास्पद मुद्दे हैं, लेकिन मुझे सर्वसम्मति वाला कोई विषय दिख नहीं रहा है। अगर आपको दिख रहा है तो मुझे अवश्य बताइएगा, ताकि मैं अविलंब लाइव आ जाऊं।
[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]