इंटरनेट मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए दिशा-निर्देश जारी कर सरकार ने मनमानी पर लगाई लगाम
भले ही विभिन्न प्लेटफॉर्म यह दावा करते हों कि वे फर्जी खबरों के खिलाफ सक्रिय रहते हैं लेकिन हकीकत इसके उलट है। उनका यह दावा भी फर्जी ही है कि वे झूठ फैलाने और बैर बढ़ाने वाले तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं।
केंद्र सरकार की ओर से इंटरनेट मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किए गए, वे कायदे से बहुत पहले बन जाने चाहिए थे। आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने के बाद अब सरकार को यह देखना होगा कि उनका सही तरह पालन हो। इस मामले में सजग रहने की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि तकनीक में बदलाव होते रहते हैं और कई बार वे पुराने नियम-कानूनों को निष्प्रभावी साबित कर देते हैं। स्पष्ट है कि समय के साथ दिशा-निर्देशों में संशोधन-परिवर्तन भी अपेक्षित है। इस अपेक्षा को पूरा करने के साथ सरकार को इसे लेकर भी सतर्क रहना होगा कि ओटीटी समेत हर तरह के डिजिटल प्लेटफॉर्म सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देशों की न तो मनमानी व्याख्या करने पाएं और न ही उनसे बच निकलने के छिद्र तलाशने पाएं।
यह मानने का कोई कारण नहीं कि ये प्लेटफॉर्म नियम-कानूनों के दायरे में रहकर काम करने के लिए आसानी से तैयार हों जाएंगे। आम तौर पर ऐसे प्लेटफॉर्म अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देकर अपनी ही चलाते हैं, लेकिन पहली बात तो यह कि अभिव्यक्ति की आजादी असीम नहीं और दूसरे, इसे तय करने का अधिकार उन्हें नहीं दिया जा सकता, जो खुले तौर पर दोहरे मानदंड अपनाते हैं। आज यदि फर्जी खबरों की बाढ़ सी आई हुई है तो इंटरनेट मीडिया के कारण ही। वह इन खबरों का गढ़ भी है और स्रोत भी।
भले ही विभिन्न प्लेटफॉर्म यह दावा करते हों कि वे फर्जी खबरों के खिलाफ सक्रिय रहते हैं, लेकिन हकीकत इसके उलट है। उनका यह दावा भी फर्जी ही है कि वे झूठ फैलाने और बैर बढ़ाने वाले तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। सच यह है कि वे ऐसे तत्वों को संरक्षण देते हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि कई बार वे ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने से इन्कार भी कर देते हैं।
अभी हाल में ट्विटर ने सरकार के निर्देश के बाद भी उनके खिलाफ कुछ नहीं किया, जो आपत्तिजनक हैशटैग का सहारा लेकर बेशर्मी के साथ लोगों को भड़काने में लगे हुए थे। इसके लिए अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ ली गई।
स्पष्ट है कि उन्हें इससे मतलब नहीं कि यह आजादी जिम्मेदारी की भी मांग करती है। ऐसे बेलगाम प्लेटफॉर्म नियम-कानूनों के दायरे में लाए ही जाने चाहिए। झूठ और अफवाह फैलाने का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता। जिम्मेदारी का निर्वाह करने की व्यवस्था बनाने का यह मतलब भी नहीं कि अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाया जा रहा है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि जैसे कदम भारत में उठाए जा रहे हैं, वैसे ही दुनिया के अन्य देशों में भी उठाए जा रहे हैं।