कांग्रेस की कठिनाई, भाजपा विरोधी सीटों पर क्षेत्रीय दल ही लगाते हैं पार्टी के वोट बैंक में सेंध
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं वैसे-वैसे कांग्रेस भी विपक्षी एकता के लिए सक्रिय है और अनेक क्षेत्रीय दल भी। कुछ क्षेत्रीय दल तो कांग्रेस से भी अधिक सक्रिय दिख रहे हैं लेकिन वे यह चाहते हैं कि कांग्रेस उसकी शर्तों पर आगे बढ़े।
विपक्षी दलों की एकता आसान नहीं, इसका ताजा प्रमाण है दिल्ली सरकार को लेकर आए अध्यादेश पर कांग्रेस का आम आदमी पार्टी को समर्थन देने से हिचकना। आम आदमी पार्टी यह चाह रही है कि कांग्रेस इस अध्यादेश का विरोध करने के लिए उसी तरह तैयार हो, जैसे कुछ क्षेत्रीय दल तैयार हो गए हैं, लेकिन वह इस बारे में कोई फैसला नहीं ले पा रही है, क्योंकि दिल्ली और पंजाब कांग्रेस के नेता ऐसा नहीं चाहते। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि इन दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी ने उसकी राजनीतिक जमीन पर ही कब्जा कर उसे कमजोर करने का काम किया है।
आम आदमी पार्टी ने कुछ हद यही काम गुजरात में भी किया। उसने जिस तरह दिल्ली, पंजाब और गुजरात में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई, उसी तरह अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी अपने-अपने राज्यों में उसके ही वोट बैंक को हड़पने का काम किया। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस उन अनेक राज्यों में अपनी राजनीतिक जमीन गंवा बैठी, जो कभी उसके गढ़ हुआ करते थे। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और बंगाल आदि हैं।
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस भी विपक्षी एकता के लिए सक्रिय है और अनेक क्षेत्रीय दल भी। कुछ क्षेत्रीय दल तो कांग्रेस से भी अधिक सक्रिय दिख रहे हैं, लेकिन वे यह चाहते हैं कि कांग्रेस उसकी शर्तों पर आगे बढ़े। इनमें एक शर्त यह है कि कांग्रेस 250 सीटों पर ही लोकसभा चुनाव लड़े। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ तौर पर कहा है कि जो क्षेत्रीय राजनीतिक दल जहां मजबूत है, वहां कांग्रेस उसे ही समर्थन दे। इसका अर्थ केवल यह नहीं है कि कांग्रेस बंगाल में सक्रिय होने की कोशिश न करे, बल्कि यह भी है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि भी क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ दे।
यदि कांग्रेस ऐसे किसी फार्मूले पर तैयार होती है तो शायद उसे ढाई सौ सीटें भी लड़ने को न मिलें। कांग्रेस के लिए ऐसे किसी फार्मूले को स्वीकार करने का मतलब होगा, अपनी राजनीतिक जमीन को और कमजोर करना। वह इसकी अनदेखी नही कर सकती कि पिछला लोकसभा चुनाव वह 421 सीटों पर लड़ी थी और केवल 52 सीटें ही जीत सकी थी।
पता नहीं कांग्रेस क्या करेगी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उसके क्षेत्रीय दल के रूप में सिमट जाने का खतरा पैदा हो गया है। यदि कांग्रेस को अपने राष्ट्रीय स्वरूप को बनाए रखना है तो उसे विपक्षी एकता के नाम पर अपनी राजनीतिक जमीन क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ने के सिलसिले पर विराम लगाना होगा। उसे इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि भाजपा विरोधी वोटों पर क्षेत्रीय दल उसके साथ ही हिस्सेदारी करते हैं और इस क्रम में उसके ही वोट बैंक में सेंध लगाने का काम करते हैं।