जागरण संपादकीय: मेक इन इंडिया अभियान, अधिक सफल हो सकती है ये पहल
भारत नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में अब दुनिया में चौथे नंबर पर है और देश का ईवी उद्योग अब तीन अरब डालर तक पहुंच गया है। रक्षा क्षेत्र भी मेक इन इंडिया की सफलता की कहानी कहता है। देश का रक्षा निर्यात 21 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है और अगले पांच वर्षों में इसे बढ़ाकर 50000 करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा गया है।
मेक इन इंडिया अभियान के दस वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री ने उसकी सफलता का जो उल्लेख किया, उससे असहमत तो नहीं हुआ जा सकता, लेकिन यह आभास किया जाए तो बेहतर कि इस पहल को और अधिक सफल बनाया जा सकता था। इस अभियान ने कई उल्लेखनीय सफलताएं हासिल की हैं, जैसे दस वर्ष पहले देश में मोबाइल फोन बनाने वाली केवल दो कंपनियां थीं। आज उनकी संख्या बढ़कर दो सौ के करीब हो गई है। इसके चलते भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता देश बन गया है।
पहले केवल 1,556 करोड़ रुपये के मोबाइल फोन निर्यात होते थे। अब 1.2 लाख करोड़ रुपये के मोबाइल निर्यात हो रहे हैं और देश में प्रयोग होने वाले 99 प्रतिशत मोबाइल मेक इन इंडिया हैं। इसी तरह फिनिश्ड स्टील के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। खिलौनों के निर्माण में भी भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है और अब उनका आयात घटकर आधा रह गया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि देश में सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिए जिस तरह डेढ़ लाख करोड़ का निवेश हुआ है, उससे पांच प्लांट लगने जा रहे हैं, जो प्रतिदिन सात करोड़ चिप बनाएंगे। भारत नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में अब दुनिया में चौथे नंबर पर है और देश का ईवी उद्योग अब तीन अरब डालर तक पहुंच गया है। रक्षा क्षेत्र भी मेक इन इंडिया की सफलता की कहानी कहता है। देश का रक्षा निर्यात 21 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है और अगले पांच वर्षों में इसे बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा गया है। आज भारत कई देशों को रक्षा सामग्री का निर्यात कर रहा है।
यह कहा जा सकता है कि मेक इन इंडिया अभियान ने रक्षा क्षेत्र की तस्वीर बदलने का काम किया है। ऐसी ही तस्वीर अन्य क्षेत्रों में भी बदलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। यह एक तथ्य है कि तमाम प्रयासों के बाद भी चीन से होने वाला आयात कम नहीं हो रहा है। तमाम ऐसी वस्तुएं चीन से मंगाई जा रही हैं जिनका निर्माण भारत में किया जा सकता है। एक समस्या यह भी है कि चीन से तमाम कल-पुर्जे मंगाकर उन्हें देश में असेंबल कर कई तरह के उपकरण बनाए जा रहे हैं। समझना कठिन है कि भारतीय उद्योगपति वह सब देश में क्यों नहीं बना सकते, जिसके निर्माण की संभावनाएं देश में हैं। इनमें से कुछ वस्तुएं तो ऐसी हैं, जो पहले भारत में बनती भी थीं। एक ओर जहां देश के उद्योगपतियों को कमर कसनी होगी, वहीं दूसरी ओर सरकार को भी यह देखना होगा कि हमारे उद्योगपति चीनी कारोबारियों का मुकाबला करने में क्यों हिचक रहे हैं और उनकी क्या समस्याएं हैं? कुल मिलाकर मेक इन इंडिया अभियान कुछ हद तो सफल है, लेकिन अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना है।