जैसे इसमें संशय नहीं कि कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री के पिता को लेकर बेहूदी टिप्पणी करके हद पार की, वैसे ही इसमें भी नहीं कि असम पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके अनावश्यक काम किया। यह ऐसा मामला नहीं था, जिसमें गिरफ्तारी की आवश्यकता थी। असम पुलिस को यह पता होना चाहिए था कि उसकी कार्रवाई का न केवल विरोध होगा, बल्कि उसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की भी कोशिश होगी। अंततः ऐसा ही हुआ। इसके पहले तब भी ऐसा हुआ था, जब असम पुलिस ने गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार किया था। कुछ इसी तरह से गुजरात पुलिस ने तृणमूल कांग्रेस के नेता साकेत गोखले को भी गिरफ्तार किया था। जिग्नेश की तरह साकेत पर भी आपत्तिजनक ट्वीट करने का आरोप था।

इसमें संदेह नहीं कि नेता अक्सर अनाप-शनाप वक्तव्य देते रहते हैं और कई बार मर्यादा की सीमा भी लांघ जाते हैं, लेकिन उनकी गिरफ्तारी करके उन्हें हतोत्साहित नहीं किया जा सकता। आम तौर पर उन्हें उनके अभद्र बयानों के लिए सजा दिलाना भी संभव नहीं होता, क्योंकि वे प्रायः या तो क्षमा मांग लेते हैं या फिर यह कहकर चलते बनते हैं कि उनके कहने का वह अर्थ नहीं था, जो समझा गया। यही काम कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी किया, जबकि यह स्पष्ट है कि उन्होंने जानबूझकर प्रधानमंत्री के पिता को लेकर अनुचित टिप्पणी की।

कांग्रेस समेत अन्य विरोधी दलों के नेताओं की ओर से प्रधानमंत्री या उनके माता-पिता को लेकर बेतुकी-बेहूदा टिप्पणियां किया जाना कोई नई बात नहीं। हाल में समाप्त हुई भारत जोड़ो यात्रा के दैरान राहुल गांधी ने कहा था कि वह नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलना चाहते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर उनके और अन्य कांग्रेसी नेताओं की टिप्पणियों से ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता। प्रधानमंत्री को निशाने पर लेने के लिए उनके पिता को लेकर पवन खेड़ा ने जो आपत्तिजनक टिप्पणी की, वह कुल मिलाकर एक नफरती बयान ही था।

यद्यपि यह किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस के नेता जब-जब प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के लिए अवांछित-अनुचित टिप्पणियां करते हैं, तब-तब उन्हें राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन वह इसे समझने के लिए तैयार नहीं। इसका कारण यही है कि स्वयं राहुल गांधी समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री पर अनुचित टिप्पणियां करते रहते हैं। चूंकि शीर्ष नेता ऐसा करते हैं, इसलिए निचले स्तर के नेता और भी बेलगाम-बदजुबान हो जाते हैं। पता नहीं यह सिलसिला कब और कैसे थमेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि इसमें पुलिस की तब तक कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए, जब तक किसी के अपशब्द वैमनस्य फैलाने के साथ कानून एवं व्यवस्था के लिए खतरा नहीं बन जाते। यह अच्छा हुआ कि पवन खेड़ा को सुप्रीम कोर्ट से तत्काल राहत मिल गई, लेकिन आखिर ऐसी राहत सबको क्यों नहीं मिलती?