NawadaAssemblyElectionNews: जब एक सीट पर हुआ मां-बेटे का आमना-सामना, असमंजस में पड़ गए मतदाता
बिहार विधानसभा चुनाव में एक सीट ऐसी थी जहां मां-बेटे एक-दूसरे के आमने-सामने थे। दो बड़े दलों ने उन्हें सिंबल भी दे दिया था। ऐसै में मतदाताओं के लिए असमंजस की घड़ी थी। परिणाम आया तो बेटे को मां के आगे नतमस्तक होना पड़ा।
By Akshay PandeyEdited By: Updated: Fri, 09 Oct 2020 03:57 PM (IST)
वरुणेंद्र कुमार, नवादा। बात वर्ष 2000 की है। विधानसभा चुनाव में एक सीट ऐसी थी जहां मां-बेटे एक-दूसरे के आमने-सामने थे। दो बड़े दलों ने उन्हें सिंबल दे दिया था। मतदाताओं के लिए असमंजस की घड़ी थी। परिणाम आया तो बेटे को मां के आगे नतमस्तक होना पड़ा।
बात हो रही है नवादा जिले के गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र की। तब इस सीट से राजद ने चार बार विधायक रह चुकीं गायत्री देवी को उम्मीदवार बनाया था, वहीं कांग्रेस ने उनके खिलाफ बेटे कौशल यादव को मैदान में उतार दिया था। तीसरे प्रत्याशी थे समता पार्टी के मोहन सिंह। त्रिकोणीय महामुकाबले ने इस सीट को चर्चित कर दिया। इसमें राजद को जीत मिली थी। समता पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। कौशल यादव को भी 30 हजार से ज्यादा वोट मिल गए थे। कभी एक पार्टी में ही थे दोनों
दरअसल, मां-बेटे गायत्री देवी व कौशल यादव दोनों कांग्रेस से ही लंबे समय से जुड़े थे। इस चुनाव के पूर्व गायत्री देवी यहां से चार बार जीत दर्ज कर चुकी थीं। जब कौशल यादव राजनीति में सक्रिय हुए तो उन्होंने भी कांग्रेस का ही हाथ थामा। 1995 के चुनाव में गायत्री देवी कांग्रेस के टिकट पर गोविंदपुर से और कौशल यादव नवादा सीट से उम्मीदवार थे लेकिन दोनों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद गायत्री देवी ने राजद की ओर रूख किया लेकिन बेटे कांग्रेस के सिपाही के तौर पर गोविंदपुर की राजनीति में दखल देने लगे। ऐसे में 2000 के चुनाव में मां-बेटे दोनों एक ही सीट से दो अलग-अलग दलों के उम्मीदवार बन गए।
अगले चुनाव में बेटे ने बराबर किया हिसाब
2000 के चुनाव में मां से मात खाने के बाद भी कौशल यादव गोविंदपुर में सक्रिय रहे। हालांकि बाद में वे भी राजद से जुड़ गए। 2005 के चुनाव में कौशल यादव को उम्मीद थी कि इस बार राजद उन्हें टिकट देगा। कौशल यादव राजद के जिलाध्यक्ष बन चुके थे। लेकिन ऐन मौके पर राजद ने फिर मां यानी गायत्री देवी को ही टिकट दे दिया। इसके बाद कौशल यादव ने बगावत कर दी। उन्होंने गोविंदपुर से खुद और पत्नी पूर्णिमा यादव को नवादा से निर्दलीय मैदान में उतार दिया। परिणाम काफी चौकाने वाला आया। पति-पत्नी दोनों चुनाव जीत गए थे। फिलवक्त सीटों की अदला-बदली में कौशल यादव नवादा से और पूर्णिमा यादव गोविंदपुर से एमएलए हैं। फिलवक्त दोनों जदयू के प्रत्याशी भी हैं। बेटे को हमेशा दिया आशीर्वाद : गायत्री
गायत्री देवी अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। वे संन्यास ले चुकी हैं। कहती हैं कि एक मां के तौर पर बेटे को हमेशा आशीर्वाद देती रही हूं। राजनीति व चुनाव में विचारधारा महत्वपूर्ण होती है। विचारधारा के आधार पर ही किसी पार्टी से किसी का ताल्लुक होता है। आज राजनीति के मायने बदल गए हैं। धनबल-बाहुबल का दौर है। कहती हैं कि पति स्व. युगल किशोर सिंह यादव के असामयिक निधन के बाद वे राजनीतिक उत्तराधिकारी बनीं थीं। 1970 में बतौर निर्दलीय गोविंदपुर से जीतीं। 1972 में कांग्रेस के टिकट पर नवादा से चुनाव जीतीं। इसके बाद 80, 85, 90, 2000 में गोविंदपुर का प्रतिनिधित्व किया। तब की राजनीति सेवा की थी।
2000 के चुनाव में मां से मात खाने के बाद भी कौशल यादव गोविंदपुर में सक्रिय रहे। हालांकि बाद में वे भी राजद से जुड़ गए। 2005 के चुनाव में कौशल यादव को उम्मीद थी कि इस बार राजद उन्हें टिकट देगा। कौशल यादव राजद के जिलाध्यक्ष बन चुके थे। लेकिन ऐन मौके पर राजद ने फिर मां यानी गायत्री देवी को ही टिकट दे दिया। इसके बाद कौशल यादव ने बगावत कर दी। उन्होंने गोविंदपुर से खुद और पत्नी पूर्णिमा यादव को नवादा से निर्दलीय मैदान में उतार दिया। परिणाम काफी चौकाने वाला आया। पति-पत्नी दोनों चुनाव जीत गए थे। फिलवक्त सीटों की अदला-बदली में कौशल यादव नवादा से और पूर्णिमा यादव गोविंदपुर से एमएलए हैं। फिलवक्त दोनों जदयू के प्रत्याशी भी हैं। बेटे को हमेशा दिया आशीर्वाद : गायत्री
गायत्री देवी अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। वे संन्यास ले चुकी हैं। कहती हैं कि एक मां के तौर पर बेटे को हमेशा आशीर्वाद देती रही हूं। राजनीति व चुनाव में विचारधारा महत्वपूर्ण होती है। विचारधारा के आधार पर ही किसी पार्टी से किसी का ताल्लुक होता है। आज राजनीति के मायने बदल गए हैं। धनबल-बाहुबल का दौर है। कहती हैं कि पति स्व. युगल किशोर सिंह यादव के असामयिक निधन के बाद वे राजनीतिक उत्तराधिकारी बनीं थीं। 1970 में बतौर निर्दलीय गोविंदपुर से जीतीं। 1972 में कांग्रेस के टिकट पर नवादा से चुनाव जीतीं। इसके बाद 80, 85, 90, 2000 में गोविंदपुर का प्रतिनिधित्व किया। तब की राजनीति सेवा की थी।