Chhattisgarh Election 2023: लोकतंत्र का विरोध करने वालों की सुरक्षा में होंगे छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव
छत्तीसगढ़ के नक्सल बहुल क्षेत्र बस्तर में इस बार का विधानसभा चुनाव नई कहानी लिखने जा रहा है। दरअसल इस बार यहां नक्सलियों से सुरक्षा के लिए मोर्चे पर तैनात जवानों में लगभग 150 आत्मसमर्पित नक्सली होंगे जो डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) बस्तर फाइटर्स और दंतेश्वरी फाइटर्स के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Fri, 27 Oct 2023 10:47 PM (IST)
अनिमेष पाल, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल बहुल क्षेत्र बस्तर में इस बार का विधानसभा चुनाव नई कहानी लिखने जा रहा है। दरअसल, इस बार यहां नक्सलियों से सुरक्षा के लिए मोर्चे पर तैनात जवानों में लगभग 150 आत्मसमर्पित नक्सली होंगे, जो डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG), बस्तर फाइटर्स और दंतेश्वरी फाइटर्स के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
नारी सशक्तिकरण का अनूठा संदेश
एक खास बात और कि बस्तर फाइटर्स और दंतेश्वरी फाइटर्स महिलाओं का दस्ता है। यानी यह चुनाव नारी सशक्तिकरण का भी अनूठा संदेश देने जा रहा है। इससे खूबसूरत और गौरवशाली बात यह होगी कि जो लोग कभी लोकतंत्र का विरोध करते थे, वह यहां लोकतंत्र के प्रहरी की भूमिका निभाने जा रहे हैं। बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों पर सात नवंबर को मतदान होना है।
चार सालों में कितने नक्सलियों ने किया सरेंडर?
लोकतंत्र का यह महायज्ञ शांतिपूर्ण तरीके से और शत-प्रतिशत मतदान के साथ संपन्न हो, इसके लिए चौतरफा प्रयास किए जा रहे हैं। आत्मसमर्पित नक्सली इसमें बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं। यहां की पुलिस की नीतियों से प्रभावित होकर पिछले चार सालों में लगभग 2,000 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इनमें 500 से ज्यादा महिलाएं हैं। इनमें से ही छांटकर डीआरजी, बस्तर फाइटर्स और दंतेश्वरी फाइटर्स का दस्ता तैयार किया गया है। चूंकि ये क्षेत्र के भूगोल से अच्छी तरह से परिचित होते हैं। जंगल-पहाड़ों के बीच रहने के आदी होते हैं। नक्सलियों की युद्ध नीति से परिचित होते हैं। स्थानीय बोली-भाषा का भी इन्हें पूरा ज्ञान होता है। यही वजह है कि नक्सल मोर्चे पर ये ज्यादा सफल होते हैं।यह भी पढ़ें: कांग्रेस को इन सीटों पर है जीत का इंतजार, 2008 के बाद कभी नहीं मिली सफलता
चार सालों में मारे गए 250 से अधिक नक्सली
नक्सलियों से होने वाली ज्यादातर मुठभेड़ों में छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स (CAF), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), कोबरा आदि की टीमों के सामने डीआरजी के जवान ही चलते हैं। मुठभेड़ में सफलता की ज्यादातर कहानी डीआरजी की बदौलत ही लिखी जाती है। बीते चार वर्षों में 500 से अधिक मुठभेड़ों में 250 से अधिक नक्सली मारे गए हैं। यही कारण है कि चुनावी मोर्चे पर भी इन्हें बड़ी भूमिका दी गई है।यह भी पढ़ें: इन नौ सीटों पर BJP ने कभी नहीं चखा जीत का स्वाद, इस बार छह नए चेहरों पर लगाया दांव
झीरम घाटी नक्सली हमले का नेतृत्व करने वाले नक्सल कमांडर हिड़मा के साथ काम कर चुकीं सुमित्रा चापा अभी बस्तर फाइटर्स की कमांडो हैं। चुनाव जैसे मौके पर जिम्मेदारी मिलने से वे उत्साहित हैं। तीन साल पहले आत्मसमर्पण करने वाली सुमित्रा बताती हैं कि अब जाकर समझ में आया कि देश के प्रति हमारा कर्तव्य क्या है। आज इस बात की खुशी होती है कि समाज की मुख्यधारा से जुड़कर अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।