Karuna Shukla: सर्वश्रेष्ठ विधायक का अवार्ड, रमन सिंह से बगावत... ऐसा रहा 'अटल' की भतीजी का सियासी सफर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला छत्तीसगढ़ की राजधानी का चर्चित चेहरा थीं। उन्होंने बलौदाबाजार को एक नई पहचान दिलाई। वे 32 साल तक भाजपा में रहीं लेकिन इसके बाद उन्होंने पार्टी से बगावत कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। करुणा ने कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी करने में भी मदद की थी। पढ़ें MLA से लेकर MP तक उनका सियासी सफर कैसा रहा...
By Jagran NewsEdited By: Achyut KumarUpdated: Tue, 29 Aug 2023 01:08 PM (IST)
रायपुर, जागरण डिजिटल डेस्क। Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। यह राज्य पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला (Karuna Shukla) की कर्मभूमि रही है। करुणा यहीं से विधायक बनी थीं। हालांकि, अब वह इस दुनिया में नहीं हैं। 26 जुलाई 2021 की देर रात उनका निधन हो गया।
करुणा शुक्ला ने भाजपा क्यों छोड़ा?
करुणा शुक्ला ने भाजपा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष से लेकर कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। हालांकि, बाद में रमन सिंह से मतभेद होने के बाद करुणा ने पार्टी छोड़ दी थी। रमन सिंह मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
कांग्रेस को दिलाई सत्ता में वापसी
करुणा शुक्ला के द्वारा कार्यकर्ताओं को बूथ मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाने के बाद कांग्रेस ने 2018 में छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी की और भूपेश पटेल मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस की कोशिश इस बार सत्ता बरकरार रखने की है।करुणा शुक्ला का जीवन परिचय
करुणा शुक्ला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के बड़े भाई अवध बिहारी वाजपेयी की बेटी थीं। उनका जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में एक अगस्त 1950 को हुआ था। उनकी पढ़ाई भोपाल में हुई। भोपाल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा।
पहली बार कब विधायक बनीं करुणा?
करुणा 1993 में पहली बार विधायक चुनी गईं। उन्होंने बलौदाबाजार विधानसभा सीट पर मनिहार साहू को हराकर जीत दर्ज की। वे 1998 तक विधायक रहीं। इस दौरान उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक का अवार्ड भी मिला।पहली बार सांसद कब बनीं?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी को 1998 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी गणेश शंकर बाजपेयी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने जांजगीर-चांपा सीट से चरणदास महंत (वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष) को हराकर जीत दर्ज की।