पीटीआई, रायपुर। साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से भाजपा ने 15 साल तक शासन किया, लेकिन पार्टी कभी भी नौ सीटों पर जीत दर्ज नहीं कर पाई। इस बार भाजपा ने इन नौ में से छह सीटों पर नए चेहरों पर दांव लगाया हैं। बता दें कि छत्तीसगढ़ में दो चरण में क्रमश: सात और 17 नवंबर को वोटिंग होगी।
इन नौ सीटों पर भाजपा ने अबतक दर्ज नहीं की जीत
- सीतापुर
- पाली-तानाखार
- मरवाही
- मोहला-मानपुर
- कोंटा
- खरसिया
- कोरबा
- कोटा
- जैजैपुर
साल 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ का गठन हुआ। इसके बाद भाजपा ने प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन बार सरकार का गठन किया। हालांकि, 2018 में कांग्रेस ने 68 सीटें जीतकर भाजपा को मात दी। विगत चुनाव में भाजपा 90 में से महज 15 सीटें जीतने में भी सफल हो पाई थी।
बकौल एजेंसी, भाजपा सांसद संतोष पांडे ने बताया कि भाजपा ने उन सीटों पर उम्मीदवारों के चयन पर विशेष ध्यान दिया है जिन पर वह कभी नहीं जीती है। सभी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ प्रचार कर रहे हैं और उन्हें लोगों का समर्थन मिल रहा है।
कोंटा से नहीं हारे कवासी लखमा
भूपेश बघेल सरकार में उद्योग मंत्री और पांच बार से विधायक कवासी लखमा नक्सल प्रभावित कोंटा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं और वह 1998 से अजेय हैं। भाजपा ने नए चेहरे सोयम मुक्का पर दांव लगाया है।
इस सीट पर कांग्रेस, भाजपा और भाकपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता रहा है। 2018 के विधानसभा चुनावों में कवासी लखमा को 31,933 वोट मिले थे, जबकि भाजपा के धनीराम बारसे को 25,224 और भाकपा के मनीष कुंजाम को 24,529 मत प्राप्त हुए थे।
सीतापुर सीट
कांग्रेस के प्रभावशाली आदिवासी नेता और भूपेश सरकार में मंत्री अमरजीत भगत सीतापुर से अजेय रहे हैं। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से वह कभी भी सीतापुर सीट से चुनाव नहीं हारे। भाजपा ने हाल ही में सीआरपीएफ से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए राम कुमार टोप्पो को चुनावी मैदान में उतारा है।
राम कुमार टोप्पो ने समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ बातचीत में बताया कि सीतापुर के लोगों ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया। हालांकि, वह अमरजीत भगत को चुनौती के तौर पर नहीं देखते हैं।
खून से लिखा गया था खत
उन्होंने कहा कि मैंने कभी भी राजनेता बनने के बारे में सोचा नहीं था। मुझे सीतापुर के लोगों से तकरीबन 15,000 खत मिले, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर मेरी मदद मांगी गई और मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। इनमें से एक पत्र यौन शोषण की पीड़िता का था, जिसने खून से खत लिखा था और मैं उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सका।
खरसिया सीट
इसी तरह खरसिया सीट से लगातार तीसरी बार भूपेश सरकार में मंत्री उमेश पटेल चुनावी मैदान में हैं। यह सीट कांग्रेस के किले के समान है। छत्तीसगढ़ के गठन से काफी पहले से यहां पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। 2013 में बस्तर में झीरम घाटी नक्सली हमले में मारे गए उमेश पटेल के पिता नंद कुमार पटेल ने इस सीट से पांच बार चुने गए थे। खरसिया सीट से भाजपा ने नए चेहरे महेश साहू पर दांव लगाया है।
मरवाही और कोंटा सीट
मरवाही और कोंटा सीट भी कांग्रेस का गढ़ रही हैं। हालांकि, 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने दोनों सीटों पर कब्जा किया था। साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार का गठन हुआ था। अजीन जोगी 2001 में मरवाही सीट से उपचुनाव जीते थे और बाद में 2003 और 2008 के चुनाव में भी उन्हें सफलता मिली थी।2013 में अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी को मरवाही से सफलता मिली थी। इसके बाद 2018 में अजीत जोगी ने अपने नवगठित संगठन जेसीसीजे से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। हालांकि, 2020 में अजीत जोगी के निधन के बाद सीट खाली हो गई और उपचुनाव में कांग्रेस ने कब्जा किया।
वहीं, अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी 2006 में कांग्रेस विधायक राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के निधन के बाद खाली हुई कोटा सीट से उपचुनाव जीती थीं। इसके बाद उन्होंने 2008, 2013 और 2018 में भी सफलता हासिल की।भाजपा ने क्रमश: मरवाही और कोंटा से नए चेहरों प्रणव कुमार मरपच्ची और प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने क्रमश: केके ध्रुव और अटल श्रीवास्तव पर दांव लगाया।
साल 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आईं कोरबा, पाली-तानाखार, जैजैपुर और मोहला-मानपुर से भी भाजपा ने कभी चुनाव नहीं जीता और इस बार इस सूखे को समाप्त करने के इरादे से नई रणनीति तैयार की है।
पाली-तानाखार सीट
पाली-तानाखार सीट से भाजपा ने राम दयाल उइके को उतारा है। जिन्होंने 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर राम दयाल उइके ने 2003 में तानाखार (जो परिसीमन के बाद पाली-तानाखार बन गया) और फिर 2008 और 2013 में पाली-तानाखार से चुनाव जीता था। हालांकि, 2018 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने उन्हें मात दे दी थी।
कांग्रेस ने इस बार पाली-तानाखार सीट से मौजूदा विधायक मोहित राम का टिकट काट दिया और उनकी जगह पर महिला उम्मीदवार दुलेश्वरी सिदार पर दांव लगाया।
कोरबा सीट
भूपेस सरकार के एक अन्य मंत्री जय सिंह अग्रवाल 2008 से अजेय हैं। वह कोरबा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में भाजपा ने पूर्व विधायक लखनलाल देवांगन को मैदान में उतारा है।
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जैजैपुर सीट
जैजैपुर सीट पर वर्तमान में बसपा का कब्जा है। यहां से कांग्रेस ने जिला युवा पार्टी पार्टी बालेश्वर साहू और भाजपा ने पार्टी जिला इकाई प्रमुख कृष्णकांत चंद्रा को उतारा है।
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मोहला-मानपुर सीट
मोहला-मानपुर सीट पर कांग्रेस ने मौजूदा विधायक इंद्रशाह मंडावी पर भी दांव लगाया है, जबकि भाजपा ने पूर्व विधायक संजीव शाह को उतारा है।