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Chhattisgarh Election 2023: बस्तर में गहरी होती जा रहीं लोकतंत्र की जड़ें, लगातार बढ़ रहा है मतदान प्रतिशत

बस्तर में नक्सलियों की पैठ अब घटती जा रही है। साल-दर-साल यहां मतदान का प्रतिशत बढ़ता ही रहा है। बता दें कि प्रदेश में प्रथम चरण के लिए सात नवंबर को होने वाले मतदान में कुल 20 सीटों में से 12 सीटें बस्तर संभाग की हैं।

By Jagran NewsEdited By: Manish NegiUpdated: Tue, 31 Oct 2023 08:12 PM (IST)
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बस्तर में गहरी होती जा रहीं लोकतंत्र की जड़ें (प्रतीकात्मक तस्वीर)

संदीप तिवारी, रायपुर। नक्सली वारदात के चलते दुनियाभर में सुर्खियों में रहने वाले बस्तर में इस बार भी 'गनतंत्र' के मुकाबले में 'लोकतंत्र' डटकर खड़ा है। लोकतंत्र के प्रति यहां के मतदाताओं की आस्था ही है कि वे नक्सल दहशत को धता बताते हुए जान जोखिम में डालकर मतदान केंद्रों तक पहुंचते हैं और इस महायज्ञ को सफल बनाने में अपनी महती भूमिका निभाते हैं।

लगातार बढ़ रहा मतदान प्रतिशत

यह बात सही है कि वक्त के साथ नक्सलियों की पैठ यहां घटती जा रही है, इसके बावजूद यहां के मतदाताओं के लोकतंत्र के प्रति समर्पण को नकारा नहीं जा सकता। ऐसा नहीं कि इस दौरान यहां नक्सल वारदात नहीं हुई हैं, परंतु साल-दर-साल यहां मतदान का प्रतिशत बढ़ता ही रहा है।

बस्तर संभाग की 12 सीटों में चुनाव

बता दें कि प्रदेश में प्रथम चरण के लिए सात नवंबर को होने वाले मतदान में कुल 20 सीटों में से 12 सीटें बस्तर संभाग की हैं। बस्तर का इतिहास गवाह है कि नक्सली हर बार चुनाव को प्रभावित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं। इनमें हत्या, लूटपाट, अपहरण, आगजनी, बम विस्फोट, बारूदी सुरंग बिछाकर विस्फोट, मतदान दलों पर हमला, मतदान के बहिष्कार की धमकियां, पेड़ों पर बैनर टांगकर मतदान न करने की चेतावनी आदि शामिल हैं।

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पिछले विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने मतदान करने पर अंगुली काट देने की चेतावनी दी थी, लेकिन यहां के निरक्षर और अल्प शिक्षित मतदाताओं ने देश के प्रति अपने कर्तव्य से कभी मुंह नहीं मोड़ा है। बस्तर के अंदरूनी गांवों के मतदान केंद्रों में अलसुबह से ही लगने वाली ग्रामीणों की कतार लोकतंत्र के प्रति उनकी श्रद्धा को बताती है। विशेष बात यह है कि इनमें महिलाओं की संख्या भी काफी होती है। विकास ने बदले हालात दरअसल, वक्त के साथ यहां सुरक्षाबलों की बढ़ती दखल के चलते ग्रामीणों का हौसला बढ़ा है।

पांच सालों में खुले कई कैंप

पिछले पांच वर्षों में यहां सुरक्षाबलों के 65 नए कैंप खोले गए हैं। इसके चलते जवानों के संरक्षण में यहां विकास की गति में तेजी आई है। बंद स्कूल खोले जा रहे हैं। पहुंचविहीन क्षेत्रों में सड़कों का विस्तार हो रहा है। पुल-पुलिये भी बनाए जा रहे हैं। स्वास्थ्य और संचार साधनों का भी विस्तार होता जा रहा है। इन सबके चलते ग्रामीणों की लोकतंत्र के प्रति आस्था और बढ़ी है। इस बार यहां 126 नए मतदान केंद्र खोले गए हैं, ताकि ग्रामीणों को मतदान करने के लिए कम से कम दूरी तय करनी पड़े।

कड़ी सुरक्षा व्यवस्थाइस बार के विधानसभा चुनाव में यहां डिस्टि्रक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी), छत्तीसगढ़ आ‌र्म्ड फोर्स, एसटीएफ, बस्तर फाइटर्स, दंतेश्वरी फाइटर्स, कोबरा जैसे स्पेशल फोर्स की मदद ली जाएगी। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) के जवान भी यहां मोर्चा संभालेंगे। सीआरपीएफ पहले से मौजूद अपनी इकाइयों के अलावा 100 अतिरिक्त कंपनियों को तैनात करेगी। यहां नक्सल विरोधी अभियानों के लिए 25-30 बटालियन को स्थायी रूप से तैनात किया गया है। लगभग 60 हजार जवान चुनाव को शांतिपूर्ण संपन्न कराने के लिए तैनात रहेंगे।

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