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Haryana Election 2024: कैसे कामयाब हुई बीजेपी, क्यों जीतते-जीतते हार गई कांग्रेस, यहां पढ़ें सबकुछ

हरियाणा चुनाव 2024 के परिणाम मंगलवार को घोषित हुए। इन परिणामों में बीजेपी ने जीत ​की हैट्रिक लगाई। वहीं परिणाम से एक दिन पहले तक जीत का बड़ा सपना देखने वाली कांग्रेस के हाथ में हार आई। बीजेपी ने कैसे तीसरी बार लगातार जीत हासिल की किस रणनीति पर काम किया कौनसे फैक्टर बीजेपी की जीत और कांग्रेस की हार में शामिल रहे। यहां पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट।

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Updated: Wed, 09 Oct 2024 03:42 PM (IST)
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Haryana Election 2024 Result Analysis: हरियाणा चुनाव 2024 के परिणाम मंगलवार को घोषित हुए।
दीपक व्यास, डिजिटल डेस्क नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों को हिंदी सिनेमा के चश्मे से देखें तो दो बातें बिल्कुल साफ नजर आती हैं। बीजेपी जो'हार कर जीतने वाली पार्टी' बनी। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए कहें तो 'छम से जो टूटे कोई सपना'। ये दोनों बातें इसलिए, क्यों​कि परिणाम से ठीक एक दिन पहले तक देश के सारे एग्जिट पोल कांग्रेस की जीत के दावे कर रहे थे, लेकिन जब परिणाम सामने आए तो बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाकर जता दिया कि वही असली 'बाजीगर' है। वहीं कांग्रेस जो बड़ी जीत की आस में फूले नहीं समा रही थी, परिणामों ने उसकी जीत के 'बड़े सपने' को तोड़ डाला। बीजेपी की जीत में क्या फैक्टर रहे, कांग्रेस जीत के अनुमानों के बावजूद क्यों हार गई। पढ़िए पूरी रिपोर्ट। इसमें आप जानेंगे कि कैसे सियासी दांवपेच में बीजेपी सिरमौर बनी और कांग्रेस हाथ मलती रह गई।

हुड्डा परिवार के भरोसे चुनाव लड़ा कांग्रेस हाईकमान

जुलाई में संपन्न लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 सीटों पर बीजेपी को महज 5 लोकसभा सीटें मिली थीं। वहीं बीजेपी और कांग्रेस को लगभग बराबर वोट शेयर मिले थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में कहानी बदल गई। हरियाणा में बीजेपी को स्पष्ट जनादेश मिल गया। लोकसभा चुनाव परिणाम से उत्साहित कांग्रेस हाईकमान ने विधानसभा चुनाव में हुड्डा परिवार पर पूरा विश्वास जताया। भूपिंदर हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र ने पूरे चुनाव की कमान संभाली। लेकिन लोकसभा चुनाव के विपरीत विधानसभा चुनाव के नतीजों ने जता दिया कि हुड्डा परिवार पर पूरी तरह से भरोसा कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया।

कांग्रेस के किस कदम से बीजेपी को मिला फायदा?

विधानसभा चुनाव में टिकट का बंटवारा दोनों पार्टियों के लिए आसान नहीं था। इसके बावजूद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद से ही नई स्ट्रैटजी अपनाई। वहीं, हुड्डा ने विधानसभा चुनाव में ज्यादातर पुराने चेहरों और '​सीटिंग एमएलए' को चुनाव लड़ाया। इनमें से कई तो स्थानीय स्तर 'अनपॉपुलर' फेस थे। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला। बीजेपी ने नए चेहरों को मौका दिया।

सैलजा और हुड्डा में सीएम पद की होड़ ने बदला पासा!

कांग्रेस की हर राज्य और हर विधानसभा चुनाव में एक बड़ी दिक्कत है, सीएम फेस के लिए खींचतान। एमपी के 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां कमलनाथ और तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया में सीएम पद को लेकर खींचतान मची थी। वहीं हरियाणा की बात करें ​तो कुमारी सैलजा 90 के दशक में नरसिंहाराव सरकार में मंत्री थीं। तभी से वह हरियाणा की राजनीति में बड़ा दखल रखती हैं। वहीं भूपिंदर हुड्डा 2004 से 2015 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। वे हरियाणा की 'नब्ज' को अच्छी तरह समझते रहे हैं। जमीनी पकड़ सैलजा से ज्यादा मजबूत है। दोनों नेताओं के 'सीएम' पद के ख्वाब ने कांग्रेस के मतदाताओं को भी कन्फ्यूज कर दिया। इसका खामियाजा कांग्रेस को परिणामों में उठाना पड़ा।

छाया रहा जवान, किसान, पहलवान का फैक्टर

हरियाणा की धरती देश को सीमा पर लड़ने वाले जवान भी देती है, धरतीपुत्र भी देती है और खेलों में बड़े बड़े सूरमा पहलवान भी इसी धरती पर जन्मे हैं। ऐसे में जवान, किसान और पहलवान का फैक्टर हरियाणा की राजनीति में अहम भूमिका अदा करता है। किसान आंदोलन और हड़ताली पहलवानों के मुद्दे ने जहां बीजेपी को लोकसभा चुनाव के परिणामों में प्रभावित किया। वहीं विधानसभा चुनाव में पोस्टर गर्ल पहलवान विनेश फोगाट ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। इसके बावजूद जाट वोटों पर कांग्रेस पूरी तरह पकड़ नहीं बना पाई। यही कारण रहा कि जाट बहुल 9 सीटों पर ही कांग्रेस जीत पाई। वहीं जाट बहुल 6 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली।

'खर्ची पर्ची सिस्टम' को बीजेपी ने कैसे फिर भुनाया?

इस बार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने 'खर्ची पर्ची सिस्टम' का जिक्र किया। बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में भी 'खर्ची पर्ची सिस्टम' का जिक्र किया है। दरअसल, बीजेपी हमेशा यह दावे से कहती रही है कि हुड्डा सरकार के दौरान यानी कांग्रेस के शासन में रोजगार व्यवस्था 'पर्ची और खर्ची' के जरिए चली थी। पर्ची का अर्थ सत्ता में बैठे लोगों की सिफारिश और खर्ची का अर्थ नौकरी के लिए रिश्वत देना। इसे बीजेपी ने इस बार भी खूब भुनाया। पीएम मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में कांग्रेस पर हमला बोलते हुए दावा किया कि ये बीजेपी की ही सरकार थी, जिसने कांग्रेस के खर्ची-पर्ची सिस्टम को खत्म कर दिया था।

पिछड़ा वर्ग: 2014 में जीत का फॉर्मूला बीजेपी ने 2024 में भी दोहराया

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 36 पिछड़ी जातियों को साधते हुए कांग्रेस की स्ट्रैटजी को चुनौती दी। ओबीसी सम्मान रैली के जरिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ओबीसी समाज को साधने में काफी हद तक कामयाब रहे। हरियाणा में जाट मतदाताओं का कांग्रेस पर भरोसा इतना मजबूत नहीं दिखा। वहीं गैर जाट पिछड़ी जातियों ने भी गरीबी और आर्थिक परेशानियों के चलते बीजेपी पर ही भरोसा जताया।

हरियाणा के वोटर्स के बीच कैसे फिर काम कर गया मोदी मैजिक?

पीएम नरेंद्र मोदी ने बेहद धुआंधार जनसभाएं नहीं कीं, लेकिन जो भी की, उनमें मोदी का मैजिक स्पष्ट नजर आया। हरियाणा के जाट मतदाताओं और गैर जाट पिछड़े मतदाताओं के बीच पीएम मोदी की छवि भारी पड़ी। हिंदुत्व की भावना से भरे मतदाताओं ने मोदी पर ही विश्वास जताया। जैसा कि कई राज्यों की विधानसभाओं में होता रहा है कि कई बार थोड़े कमजोर कैंडिडेट भी पीएम मोदी की चमकदार छवि के कारण जीत हासिल कर लेते हैं ऐसे में कम मार्जिन वाली सीटों पर मोदी मैजिक ने बीजेपी की जीत में काफी अहम भूमिका अदा की।

युवा नेतृत्व पर भरोसा, नायब सैनी को मिली कमान

चुनाव से पहले बीजेपी का सीएम बदलने का फॉर्मूला हरियाणा में भी असर कर गया। हरियाणा विधानसभा चुनाव से 7 महीने पहले तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर को पद से हटा दिया। खट्टर के नेतृत्व में बीजेपी 2019 में भी चुनाव लड़ी थी, पर बहुमत नहीं मिल पाया था। लिहाजा, मनोहरलाल को हटाकर नायब सिंह सैनी को कमान सौंप दी गई। बड़ी बात यह रही कि मनोहर लाल को केंद्र में अहम मंत्रालय देकर पंजाबी वोटर्स की निराशा को भी दूर किया। वहीं नायब सैनी को मौका देकर पिछड़ी जातियों के बीच बीजेपी ने विश्वास पैदा किया। इसके अलावा खट्टर सरकार के शासन की 'एकरसता' को भी बीजेपी तोड़ने में कामयाब रही।

दलितों और ओबीसी को लुभाने में आगे रही बीजेपी

पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस ने दलितों और ओबीसी को ठगने का काम किया है। हुड्डा शासनकाल को याद दिलाते हुए पीएम मोदी ने रैलियों में कहा कि 'शायद ही कोई साल रहा हो, जब दलितों और ओबीसी के उत्पीड़न की घटनाएं हुड्डा के शासनकाल में न हुई हों। अमित शाह, मनोहर लाल खट्टर और मुख्यमंत्री नायब सैनी ने भी अपनी रैलियों में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। उधर, कांग्रेस का फोकस जाट और ओबीसी की तरफ ज्यादा रहा।

अग्निवीरों को पक्की नौकरी, किसानों को बढ़ी एमएसपी बना 'वरदान'

हरियाणा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। राहुल गांधी ने संसद में अग्निवीरों के समर्थन् में खूब हुंकार भरी थी। इसके बाद बीजेपी ने चुनाव के आखिरी दिनों में हर हरियाणा के अग्निवीर को पक्की नौकरी देने का वादा किया। वहीं किसानों के लिए कृषक सम्मान निधि की धनराशि को 6 हजार रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये करने की घोषणा कर डाली। इससे राज्य के आम मतदाताओं के साथ ही खासतौर पर किसान और जवान परिवार से जुड़े मतदाताओं में ये संदेश गया कि पक्की नौकरी जब मिलेगी ही और एमएसपी बढ़ा ही दी गई तो बीजेपी से अब नाराजगी किस बात की?