Haryana Election 2024: कैसे कामयाब हुई बीजेपी, क्यों जीतते-जीतते हार गई कांग्रेस, यहां पढ़ें सबकुछ
हरियाणा चुनाव 2024 के परिणाम मंगलवार को घोषित हुए। इन परिणामों में बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाई। वहीं परिणाम से एक दिन पहले तक जीत का बड़ा सपना देखने वाली कांग्रेस के हाथ में हार आई। बीजेपी ने कैसे तीसरी बार लगातार जीत हासिल की किस रणनीति पर काम किया कौनसे फैक्टर बीजेपी की जीत और कांग्रेस की हार में शामिल रहे। यहां पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट।
दीपक व्यास, डिजिटल डेस्क नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों को हिंदी सिनेमा के चश्मे से देखें तो दो बातें बिल्कुल साफ नजर आती हैं। बीजेपी जो'हार कर जीतने वाली पार्टी' बनी। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए कहें तो 'छम से जो टूटे कोई सपना'। ये दोनों बातें इसलिए, क्योंकि परिणाम से ठीक एक दिन पहले तक देश के सारे एग्जिट पोल कांग्रेस की जीत के दावे कर रहे थे, लेकिन जब परिणाम सामने आए तो बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाकर जता दिया कि वही असली 'बाजीगर' है। वहीं कांग्रेस जो बड़ी जीत की आस में फूले नहीं समा रही थी, परिणामों ने उसकी जीत के 'बड़े सपने' को तोड़ डाला। बीजेपी की जीत में क्या फैक्टर रहे, कांग्रेस जीत के अनुमानों के बावजूद क्यों हार गई। पढ़िए पूरी रिपोर्ट। इसमें आप जानेंगे कि कैसे सियासी दांवपेच में बीजेपी सिरमौर बनी और कांग्रेस हाथ मलती रह गई।
हुड्डा परिवार के भरोसे चुनाव लड़ा कांग्रेस हाईकमान
जुलाई में संपन्न लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 सीटों पर बीजेपी को महज 5 लोकसभा सीटें मिली थीं। वहीं बीजेपी और कांग्रेस को लगभग बराबर वोट शेयर मिले थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में कहानी बदल गई। हरियाणा में बीजेपी को स्पष्ट जनादेश मिल गया। लोकसभा चुनाव परिणाम से उत्साहित कांग्रेस हाईकमान ने विधानसभा चुनाव में हुड्डा परिवार पर पूरा विश्वास जताया। भूपिंदर हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र ने पूरे चुनाव की कमान संभाली। लेकिन लोकसभा चुनाव के विपरीत विधानसभा चुनाव के नतीजों ने जता दिया कि हुड्डा परिवार पर पूरी तरह से भरोसा कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया।
कांग्रेस के किस कदम से बीजेपी को मिला फायदा?
विधानसभा चुनाव में टिकट का बंटवारा दोनों पार्टियों के लिए आसान नहीं था। इसके बावजूद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद से ही नई स्ट्रैटजी अपनाई। वहीं, हुड्डा ने विधानसभा चुनाव में ज्यादातर पुराने चेहरों और 'सीटिंग एमएलए' को चुनाव लड़ाया। इनमें से कई तो स्थानीय स्तर 'अनपॉपुलर' फेस थे। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला। बीजेपी ने नए चेहरों को मौका दिया।
सैलजा और हुड्डा में सीएम पद की होड़ ने बदला पासा!
कांग्रेस की हर राज्य और हर विधानसभा चुनाव में एक बड़ी दिक्कत है, सीएम फेस के लिए खींचतान। एमपी के 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां कमलनाथ और तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया में सीएम पद को लेकर खींचतान मची थी। वहीं हरियाणा की बात करें तो कुमारी सैलजा 90 के दशक में नरसिंहाराव सरकार में मंत्री थीं। तभी से वह हरियाणा की राजनीति में बड़ा दखल रखती हैं। वहीं भूपिंदर हुड्डा 2004 से 2015 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। वे हरियाणा की 'नब्ज' को अच्छी तरह समझते रहे हैं। जमीनी पकड़ सैलजा से ज्यादा मजबूत है। दोनों नेताओं के 'सीएम' पद के ख्वाब ने कांग्रेस के मतदाताओं को भी कन्फ्यूज कर दिया। इसका खामियाजा कांग्रेस को परिणामों में उठाना पड़ा।