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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024: सभी दलों ने लगाया उत्तर भारतीय उम्‍मीदवारों पर दांव, किस पार्टी ने दिए सबसे अधिक यूपी-बिहार के लोगों को टिकट?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में इस बार बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है। मुंबई और इसके आसपास के क्षेत्रों में 35 लाख से अधिक उत्तर भारतीय मतदाता हैं जिनका कांग्रेस और भाजपा पर प्रभाव देखा जा सकता है। भाजपा ने अमरजीत सिंह संजय उपाध्याय जैसे उत्तर भारतीय उम्मीदवार उतारे हैं जबकि कांग्रेस ने भी कई प्रमुख उत्तर भारतीय चेहरों को टिकट दिए हैं।

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Thu, 14 Nov 2024 02:23 PM (IST)
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में इस बार सभी दलों से भाग्य आजमा रहे हैं उत्तर भारतीय। जागरण ग्राफिक्‍स टीम
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस बार बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। एक दर्जन से अधिक उम्मीदवारों को तो प्रमुख राजनीतिक दलों ने मैदान में उतारा है। इनमें सर्वाधिक टिकट उत्तर भारतीयों को भाजपा से मिले हैं।

उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से मुंबई और उसके आसपास के जिलों में आकर रहने वाले प्रवासी उत्तर भारतीयों की संख्या अच्छी-खासी है। मुंबई और मुंबई उपनगर में ही 35 लाख से अधिक उत्तर भारतीय रहते हैं।

इसके अलावा ठाणे, कल्याण, नई मुंबई, पालघर, वसई और विरार जैसे बृहन्मुंबई के क्षेत्रों में भी हिंदी भाषी राज्यों के प्रवासी बड़ी संख्या में हैं। अब तो राज्य के नागपुर, पुणे, नासिक और औरंगाबाद जैसे बड़े नगरों में भी हिंदीभाषी नागरिक कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।

उत्तर भारतीय अपनी इसी संख्या के कारण महाराष्ट्र की राजनीति पर भी अपना अच्छा-खासा रसूख रखते आए हैं। डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी, चंद्रकांत त्रिपाठी, कृपाशंकर सिंह, मोहम्मद आरिफ नसीम खान, नवाब मलिक, विद्या ठाकुर जैसे उत्तर भारत मूल के नेता महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

विधायकों की संख्या तो और भी अधिक है। साल 2009 के विधानसभा चुनाव में तो मुंबई महानगर की लगभग 25 प्रतिशत यानी नौ सीटों पर उत्तर भारतीय विधायक ही चुनकर महाराष्ट्र विधानसभा में पहुंचे थे।

अब 2024 के विधानसभा चुनाव में दो प्रमुख गठबंधनों में छह दल आमने-सामने चुनाव लड़ रहे हैं, तो सभी दलों ने अपने-अपने कोटे से कई-कई उत्तर भारतीय उम्मीदवारों को टिकट भी दिए हैं।

भाजपा पर आरोप लगते रहे हैं कि वह उत्तर भारतीयों के वोट तो लेती है, लेकिन उन्हें टिकट नहीं देती है, लेकिन इस बार उत्तर भारतीयों को टिकट देने में भाजपा भी कांग्रेस की बराबरी पर रही है। दोनों राष्ट्रीय दलों ने चार-चार उत्तर भारतीय उम्मीदवार दिए हैं।

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार?

भाजपा ने कालीना से अमरजीत सिंह, गोरेगांव से विद्या ठाकुर, बोरीवली से संजय उपाध्याय और वसई से स्नेहा दुबे को उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस ने चांदीवली से मोहम्मद आरिफ नसीम खान, मालाड (पश्चिम) से असलम शेख, चारकोप से यशवंत सिंह और नालासोपारा से संदीप पांडे को टिकट दिया है।

शिवसेना शिंदे गुट ने मुंबई की दिंडोशी सीट से संजय निरुपम को टिकट दिया है। राकांपा अजीत गुट ने अणुशक्ति नगर से सना मलिक, मानखुर्द शिवाजी नगर से नवाब मलिक एवं बांद्रा (पूर्व) से जीशान सिद्दीकी को टिकट दिया है।

समाजवादी पार्टी के टिकट पर मानखुर्द शिवाजी नगर से अबू आसिम आजमी एवं राकांपा (शरदचंद्र पवार) के टिकट पर अणुशक्ति नगर से फहाद अहमद उत्तर भारतीय उम्मीदवार हैं।

किन वोटर्स को माना जाता था, कांग्रेस को प्रतिबद्ध?

मुंबई और उसके आसपास का उत्तर भारतीय समाज लंबे समय तक कांग्रेस का प्रतिबद्ध वोटर रहा है। यहां तक कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी जब आम चुनावों में प्रचार के लिए मुंबई आते थे, तो वह यहां तो उत्तर भारतीयों से कांग्रेस को वोट देने की अपील करते ही थे, उनसे पत्र लिखकर अपने गांव-घर में भी कांग्रेस को वोट देने का आग्रह भी करते थे।

अभी भी जब पार्टियां इतनी बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय उम्मीदवार उतार रही हैं, तो यहां रह रहे उत्तर भारतीयों के बीच प्रचार के लिए भी बहुत बड़ी संख्या में उत्तर भारत के नेताओं को भी बुलाती हैं।

प्रचार के लिए बनाई रणनीति 

मुंबई में जौनपुर, वाराणसी और प्रयाग के मूल निवासियों की संख्या अधिक है। इसलिए इस बार भाजपा वहां के नेताओं को काफी पहले से बुलाकर प्रचार अभियान में जुट गई है।

प्रचार के लिए आए जौनपुर के विधायक रमेश चंद्र मिश्र कहते हैं कि वह दो माह से मुंबई के एक क्षेत्र का काम देख रहे हैं। भाजपा ने एक-एक क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के तीन-तीन, चार-चार विधायकों-सांसदों को काम पर लगा रखा है।

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नागपुर में रहने वाले भाजपा प्रवक्ता अजय पाठक कहते हैं कि बाहर से आकर प्रचार कर रहे नेता अपने-अपने क्षेत्र के लोगों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करते हैं, और उनके मन की बात जानने का प्रयास करते हैं। यदि स्थानीय स्तर पर कोई नाराजगी होती है, तो उसे दूर करने का भी प्रयास किया जाता है।

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