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Jammu kashmir Election 2024: दादा शेख अब्‍दुला लाए थे पीएसए कानून, अब पोते ने किया हटाने का वादा; क्‍या है इसमें सजा का प्रावधान?

Jammu Kashmir Assembly Election 2024 जम्मू-कश्‍मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव है। राज्य की 90 सीटों पर तीन चरणों में 19 सितंबर से 1 अक्टूबर 2024 के बीच चुनाव हो रहे हैं। इस दौरान नेशनल कान्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने अपने दादा दिवंगत शेख मोहम्मद अब्दुल्ला द्वारा लागू किए गए जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) को हटाने का वादा किया है। जानिए क्यों...

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Sat, 31 Aug 2024 12:38 PM (IST)
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Jammu Kashmir Vidhan Sabha election 2024: नेकां के नेता उमर अब्दुल्ला। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। What is PSA Law? जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस अक्सर कश्मीर में अपने विरोधियों का निशाना बनती है। बदलते परिवेश में अब यह नेशनल कॉन्फ्रेंस के राजनीतिक एजेंडे में भी शामिल हो गया है। नेकां के उपाध्यक्ष व गांदरबल से प्रत्याशी उमर अब्दुल्ला ने यकीन दिलाया कि वह सत्ता में लौटने पर इसे जरूर हटाएंगे। पीएसए के तहत बंदी बनाए किसी भी व्यक्ति को बिना किसी सुनवाई और मुकदमे के दो वर्ष कैद में रखा जा सकता है।

पार्टी मुख्यालय में उमर अब्दुल्ला ने पत्रकारों से कहा कि पीएसए एक कठोर कानून है, इसका दुरुपयोग भी हो रहा है। इसलिए जब हम सत्ता में लौटेंगे तो इसे हटाएंगे।

बता दें कि पीएसए उनके दादा दिवंगत शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने ही जम्मू कश्मीर में लागू किया था। उन्होंने इसे कश्मीर में वनों के अवैध कटान में लिप्त तत्वों व अन्य शरारती तत्वों पर काबू पाने के लिए जरूरी बताया था, बाद में इसका इस्तेमाल अन्य अपराधों में लिप्त तत्वों के लिए भी होने लगा।

क्‍या है पीएसए?

जन सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act) यानी पीएसए को जम्मू-कश्मीर में पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने साल 1978 में लागू किया था। इसके तहत सरकार किसी भी शख्‍स को भड़काऊ या राज्य को नुकसान पहुंचाने की मंशा रखने वाला मानकर हिरासत में ले सकती है। इस कानून में आदेश देने वाले अफसर के अधिकार क्षेत्र की सीमा के बाहर व्यक्तियों को हिरासत में लेने की भी अनुमति होती है।

पीएसए के सेक्शन 13 के मुताबिक, हिरासत में लेने का आदेश केवल कमिश्नर या डीएम जारी कर सकता है। इसमें कोई भी यह कहने के लिए बाध्य नहीं है कि कानून जनहित के खिलाफ है।

पीएसए के दो सेक्शन हैं...  

  • पहला- लोगों के लिए खतरा देखते हुए, इसमें बिना ट्रायल के व्यक्ति को तीन महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। और इसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।
  •  दूसरा- राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा, इसमें दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

क्‍यों हो रहा है पीएसए का विरोध?

कई बार सत्ताधारियों ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए भी इसका दुरुपयोग किया। खुद उमर और उनके पिता डॉ. फारूक अब्दुल्ला भी इस कानून के तहत बंदी बनाए जा चुके हैं।

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद उमर अब्दुल्ला को भी कुछ समय के लिए इसी कानून के तहत बंदी बनाया था। उमर ने कहा कि आज कश्मीर में हजारों की तादाद में ऐसे युवक हैं, जो पीएसए के तहत बंदी बनाए जा चुके हैं।

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उमर का दावा- गठबंधन का होने लगा असर

गांदरबल से प्रत्याशी उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को कहा कि कांग्रेस के साथ गठजोड़ का फैसला आसान नहीं था। कांग्रेस से गठबंधन करने के लिए नेकां को त्याग करना पड़ा और हमने उन इलाकों में जहां नेकां काफी मजबूत मानी जाती है, कांग्रेस को सीटें दी हैं।

उमर ने आगे कहा कि इस गठजोड़ का असर नजर आने लगा है। डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के चेयरमैन गुलाम नबी आजाद जो कल तक यहां बड़ी ताकत बनने का दावा कर रहे थे, अब चुनाव प्रचार से हट गए हैं। उन्होंने अपने पार्टी प्रत्याशियों को भी सलाह दी है कि वे चाहें तो चुनाव से हट जाएं या फिर अपने दम पर लड़ लें।

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