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Jammu Kashmir Election result 2024: अब की बार 'अब्दुल्ला' सरकार, जम्मू में बीजेपी का कायम रहा जलवा, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

Jammu Kashmir Election result 2024 अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर में चुनाव हुए। आखिरी बार साल 2014 में चुनाव हुए थे। 2014 तक नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे। फिर बीजेपी और पीडीपी गठबंधन ने सरकार चलाई। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाया उसके बाद अब जाकर 2024 में चुनाव हुए। नेशनल कॉन्फ्रेंस को बहुमत मिला। जम्मू के हिंदुओं ने बीजेपी को जमकर वोट दिया।

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Updated: Wed, 09 Oct 2024 05:26 PM (IST)
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Jammu Kashmir Election result 2024: आतंक के साए के बीच 10 साल बाद फिर जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए।

दीपक व्यास, डिजिटल डेस्क नई दिल्ली। आतंक के साए के बीच 10 साल बाद फिर जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए। 2014 से 2024 के बीच 10 साल में जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर घाटी की राजनीतिक हवा ही बदल गई। केंद्र शासित प्रदेश के नए स्वरूप में आने वाले इस राज्य में आखिरकार 2024 में यानी 10 साल बाद फिर विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा। मंगलवार को हरियाणा के साथ ही जम्मू औरकश्मीर के  चुनाव परिणाम भी आए। इन परिणामों में नेशनल कॉन्फ्रेंस को स्पष्ट जनादेश दिया।

इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने 49 सीटें जीतीं। वहीं, बीजेपी 29 सीटों पर कब्जा किया। महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को सिर्फ 3 सीटें मिलीं। वहीं अन्य छोटी पार्टियों ने 10 सीटें हासिल कीं।

पढ़िए 2014 से 2024 के बीच घाटी की सियासत में कैसे बदलाव आया?

नहीं चल पाया महबूबा और बीजेपी का गठबंधन

साल 2014 में महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद और बीजेपी ने मिलकर पहली बार गठबंधन किया और घाटी में सरकार बनाई। यह वो वक्त था जब 10 साल बाद बीजेपी फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता पर आसीन हुई थी। उसी समय बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन किया और चुनाव के बाद सरकार बनाई। लेकिन ये बेमेल सरकार रही। मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद महबूबा सीएम बनीं।पीडीपी का एजेंडा बीजेपी के एजेंडे से बिल्कुल मेल नहीं खा रहा था। घाटी में पत्थरबाजी आम हो चली थी। ऐसे में बीजेपी ने महबूबा से पीछा छुड़ाना ही उचित समझा।

अनुच्छेद 370 हटने के बाद फारूक लगातार रहे हमलावर

2014 से ही घाटी की राजनीति और जम्हूरियत का हवाला देने वाले बड़े अब्दुल्ला यानी फारूक अब्दुल्ला अपनी विचारधारा पर दृढ़ता से खड़े रहे। भले ही वो अटलजी की सरकार में मंत्री थे, एनडीए में भी शामिल थे, लेकिन इसके बावजूद वे नरेंद्र मोदी की सरकार की नीतियों पर फारूक लगा​तार मुखरित रहे। जब 2019 में अनुच्छेद 370 और 35 (ए) हटाया गया, तो फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने ही इस पर मुखरता से अपनी बात रखी। 2014 में जम्मू कश्मीर चुनाव से पहले अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस का राज था। उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 5 जनवरी 2009 को गठबंधन सरकार बनाई थी।

अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया। साथ ही जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किया और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। ये सब करने के बाद जम्मू-कश्मीर में कई महीनों तक विभिन्न प्रतिबंध लागू रहे। इन सबके बाद जम्मू कश्मीर में आखिरकार 2024 में विधानसभा चुनाव हुए।

पीडीपी का सूपड़ा साफ, लोगों में ​महबूबा के प्रति दिखा भारी रोष

महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी को विधानसभा की 90 सीटों में से केवल 3 सीटें ही मिल पाईं। कश्मीर घाटी में जब युवाओं ने पत्थरबाजी कर आतंक मचा रखा था, तब महबूबा की भाषा ऐसी थी कि किसी को भी हैरान कर दे। उनकी वक्तव्यों में पाकिस्तान के प्रति झुकाव साफ देखने को मिलता था। यही कारण है कि जब चुनाव आए तो मतदाताओं ने उन्हें सिरे से नकार दिया।

अब्दुल्ला परिवार: J&K की राजनीति को मिली 3 पीढ़ियों की विरासत

फारूक अब्दुल्ला के पिता यानी उमर अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला ने घाटी की सियासत में अहम भूमिका अदा की। शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर की राजनीति 'पायोनियर' रहे। वे ऑल जम्मू और कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के संस्थापक रहे। वो भारत में विलय के बाद जम्मू और कश्मीर के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने। फारूक अब्दुल्ला को अपने पिता से राजनीति विरासत में मिली। कश्मीर घाटी की मुखर आवाज दशकों तक ने रहने के बाद उन्होंने अपनी विरासत अपने बेटे उमर अब्दुल्ला को सौंप दी। 2009 से 2014 तक उमर अब्दुल्ला जम्मू- कश्मीर के सीएम रहे।

कांग्रेस का अकेले वजूद नहीं, पर नेकां के साथ गठबंधन

कभी कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर में तूती बोलती थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण गुलाम नबी आजाद है। घाटी में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता गुलाम नबी आजाद ने भी जम्मू-कश्मीर में सरकार चलाई। कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने के बाद गुलाम नबी का राजनीतिक वजूद खत्म हो गया। इसी तरह कांग्रेस का भी स्वतंत्र पार्टी के रूप में वजूद खत्म हो गया। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस की सहयोगी पार्टी बनकर कांग्रेस 6 सीटें पाने में सफल रही। दरअसल, राहुल गांधी की ने जम्मू और कश्मीर में रैलियां की। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अपनी ताकतवर मौजूदगी भी उन्होंने दिखाई थी। इसका असर रहा कि कांग्रेस को 6 सीटें मिल गईं।

बीजेपी का हिंदू बहुल जम्मू में दिखा जलवा

हिंदु बहुल जम्मू में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा। पार्टी ने जम्मू में 29 सीटें जीतीं। इस तरह बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। यहां पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह सहित बड़े नेताओं और मंत्रियों की रैलियां हुईं। हालांकि जम्मू के बाहर बीजेपी को वांछित सफलता नहीं मिल पाई। जम्मू के हिंदुओं ने आतंक का दंश झेला। अनुच्छेद 370 हटने पर पीडीपी और नेकां के बयानों को भी सुना। इन सबके बाद जब चुनाव आए तो हिंदुओं ने बीजेपी के पक्ष में जमकर वोट डाले।

सांसद राशिद इंजीनियर ने भी किया प्रचार

जेल से बाहर आते ही बारामूला सीट से सांसद इंजीनियर राशिद के बयानों ने हलचल मचा दी। वो टेरर फंडिंग के मामले में जेल में बंद थे। लेकिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के प्रचार के लिए उनको 2 अक्टूबर तक अंतरिम जमानत दी गई थी। उन्होंने भी प्रचार किया।

जम्मू कश्मीर: आखिरी चुनाव 2014 में हुआ, क्या थे नतीजे

  • जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे।
  • 87 सीटों में से पीडीपी ने 28 सीटें हासिल की थीं। बीजेपी ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें पाई थीं।
  • बीजेपी और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद सीएम बने थे। जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया।
  • चार महीने तक राज्यपाल शासन लागू रहा। बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं।
  • महबूबा के सीएम बनने के बाद ये गठबंधन ज्यादा नहीं चला। 19 जून 2018 को बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया।
  • इसके बाद जम्मू और कश्मीर राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया। सितंबर 2024 में 10 साल बाद फिर चुनाव हुए।

LG को क्यों मिला है 5 लोगों को नॉमिनेट करने का अधिकार?

विधानसभा रिजल्ट के तुरंत बाद 5 विधायकों को मनोनीत किया जाना है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पास यह खास अधिकार है कि वे 5 लोगों को विधानसभा के लिए नॉमिनेट कर सकते हैंं इस तरह विधायकों की कुल संख्या 95 हो जाएगी। दरअसल, अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 2019 के तहत विधानसभा में 5 विधायकों को एलजी नॉमिनेट कर सकते हैं। यह रूल महिलाओं, कश्मीरी पंडितों और पीओके के प्रतिनिधित्व के लिए लाया गया था। इसे जुलाई 2023 में संशोधित किया गया।