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'न नीति चल पाई...न नैरेटिव', बढ़ी कांग्रेस की मुश्किल; हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में ब्रांड मोदी को नहीं कर पा रहे बेअसर

Assembly Election Result 2023 लुभावने चुनावी वादों से लेकर जातीय जनगणना की पैरोकारी करते हुए ओबीसी सियासत का कांग्रेस का दांव नहीं चल पाना इसका साफ संकेत है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन ने न केवल आइएनडीआइए में उसकी सियासत को कमजोर किया है बल्कि विपक्ष की सियासी चुनौतियां भी बढ़ा दी हैं।

By Jagran NewsEdited By: Babli KumariUpdated: Sun, 03 Dec 2023 07:34 PM (IST)
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कांग्रेस पार्टी की रणनीति और रोडमैप को पूरी तरह उलट-पलट कर रख दिया( फाइल फोटो)

संजय मिश्र, नई दिल्ली। तेलंगाना की जीत भी कांग्रेस को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की बड़ी चुनावी हार की मायूसी से बचा नहीं पाई। हिंदी पट्टी के इन तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस की हार ने 2024 के सियासी संग्राम के लिए पार्टी की रणनीति और रोडमैप को पूरी तरह उलट-पलट कर रख दिया है। पार्टी के लिए इस बड़े झटके से उबरना इसलिए भी मुश्किल चुनौती है, क्योंकि अपनी नीतियों-कार्यक्रमों-वादों के नैरेटिव से ब्रांड मोदी का मुकाबला करने का उसका दांव कामयाब होता नहीं दिख रहा।

लुभावने चुनावी वादों से लेकर जातीय जनगणना की पैरोकारी करते हुए ओबीसी सियासत का कांग्रेस का दांव नहीं चल पाना इसका साफ संकेत है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन ने न केवल आइएनडीआइए में उसकी सियासत को कमजोर किया है, बल्कि विपक्ष की सियासी चुनौतियां भी बढ़ा दी हैं। पूरा विपक्षी खेमा मान रहा था कि कम से कम दो राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कामयाबी हासिल कर आइएनडीआइए की 2024 की सियासत को रफ्तार देगी।

'दोनों राज्यों में ही कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब रहा'

मगर दिलचस्प यह है कि इन दोनों राज्यों में ही कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, राजस्थान में अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश में कमल नाथ जैसे क्षेत्रीय नेताओं का चेहरा भी सामने था। मगर पार्टी इसके बावजूद राज्यों के चुनाव में भी ब्रांड मोदी को बेअसर नहीं कर पाई। इन तीनों राज्यों में भाजपा का मुख्यमंत्री पद का चेहरा सामने नहीं होना उसके लिए चुनौती के रूप में आंका गया। कांग्रेस ने इसे जोर-शोर से मु²द्दा बनाने की कोशिश भी की।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने राज्यों के चुनाव में भी खुद को आगे रखने को लेकर पीएम मोदी पर सियासी हमले भी किए। लेकिन नतीजों के पैटर्न से साफ है कि कांग्रेस राज्यों के चुनाव को भी ब्रांड मोदी के असर से बाहर नहीं निकाल पा रही है।

तेलंगाना के अलावा कांग्रेस का नैरेटिव कहीं नहीं चल पाया 

भाजपा के ध्रुवीकरण-राष्ट्रवाद के सियासी नैरेटव का राजनीतिक मुकाबला करने के लिए कांग्रेस पिछले कई सालों से अलग-अलग प्रयोग करती रही। इसमें नरम हिंदुत्व से लेकर मोहब्बत की दुकान के जरिये नरम धर्मनिरपेक्षता की सियासी वैचारिक धारा को आगे बढ़ाने की ताजा रणनीति भी शामिल है। लेकिन इन चुनावों में तेलंगाना के अलावा कांग्रेस का यह नैरेटिव कहीं नहीं चल पाया है। कांग्रेस ने इसका मुकाबला करने के लिए जवाबी राजनीतिक विमर्श के तौर पर पिछले तीन-चार महीनों के दौरान जातीय जनगणना के साथ ओबीसी को संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी देने की रणनीति को आगे बढ़ाया है।

कांग्रेस की रणनीति पर मोदी की गारंटी पड़ी भारी 

राहुल गांधी ने अपनी चुनावी सभाओं में जातीय जनगणना-ओबीसी के मुद्दे के जरिये भाजपा के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के दोहरे ध्रुवीकरण के प्रभावहीन बनाने की कोशिश की। मगर यह कारगर साबित नहीं हुआ। छत्तीसगढ़-राजस्थान की कांग्रेस की सरकारों ने कई लुभावनी कल्याणकारी योजनाओं से लेकर ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के साथ ऐसे ही कई वादों का दांव चला, तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ भी कुछ इसी राह पर चले। मगर नतीजों से साफ है कि कांग्रेस की इस रणनीति पर भी मोदी की गारंटी भारी पड़ गई।

कांग्रेस के दिग्गजों के बीच आपसी मनमुटाव की दिखी कमजोरी

कांग्रेस के दिग्गजों के बीच आपसी मनमुटाव को काबू करने में भी पार्टी नेतृत्व की कमजोरी साफ नजर आई। राजस्थान में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो पायलट की शांत सक्रियता ने पूर्वी राजस्थान के उनके प्रभाव वाले इलाके में पार्टी का खेल बिगाड़ दिया। टिकट बंटवारे में गहलोत के अड़ जाने का ही नतीजा रहा कि उनके डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्री चुनाव हार गए, जबकि कांग्रेस हाईकमान इन सबका टिकट काटने के पक्ष में था।

छत्तीसगढ़ में CM बघेल और डिप्टी सीएम सिंहदेव के बीच दिखी रस्साकशी

छत्तीसगढ़ में सीएम बघेल और डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की रस्साकशी चुनावों के दौरान भी दिखी। नतीजा यह रहा कि सिंहदेव खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए। कमल नाथ ने तो पूरे चुनाव में कांग्रेस हाईकमान तक को बाउंड्री लाइन के बाहर दर्शक दीर्घा में महज ताली बजाने की भूमिका तक सीमित कर रखा था। इन चुनाव नतीजों का निहितार्थ साफ है कि विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करने की तैयारी कर रही कांग्रेस को इस भूमिका में आने के लिए अपने राजनीतिक विमर्श और रणनीति की नए सिरे से गहन समीक्षा कर तत्काल बदलाव करने होंगे। तभी पार्टी 2024 में आइएनडीआइए को मजबूत विपक्षी विकल्प के रूप में सामने लाने में सक्षम हो पाएगी।