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Jharkhand Election 2019: 2014 में पहली बार बनी पूर्ण बहुमत की सरकार, 2009 में हुआ था सबसे बड़ा उलटफेर

Jharkhand Assembly Election 2019. 2009 में महज 18 सीटों पर सिमट भाजपा गई थी। इस चुनाव में बाबूलाल के साथ मिलकर कांग्रेेस ने 25 सीटें जीती थीं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Sat, 02 Nov 2019 11:22 AM (IST)
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Jharkhand Election 2019: 2014 में पहली बार बनी पूर्ण बहुमत की सरकार, 2009 में हुआ था सबसे बड़ा उलटफेर

रांची, राज्य ब्यूरो। विधानसभा चुनाव से पूर्व सभी राजनीति दल अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि झारखंड की जनता ने कई बार दावों से इतर परिणाम दिए हैं। शीर्ष पर बने राजनीतिक दलों को भी राज्य की जनता ने सबक सिखाने से गुरेज नहीं किया। राज्य की राजनीति पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के मिश्रित प्रभाव पड़ता रहा है। बिहार से अलग होने के पश्चात झारखंड में पहली सरकार एनडीए गठबंधन ने बनाई थी। सदन में भाजपा के सदस्यों की संख्या सर्वाधिक 32 थी और प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी ने शपथ ली थी।

तब से अब तक भाजपा के ग्राफ में उतार-चढ़ाव आता रहा है। कांग्रेस के प्रदर्शन में भी कभी एकरूपता नहीं  रही। हां, झामुमो का ग्राफ लगातार ऊपर बढ़ता रहा है। 2000 में झारखंड विधानसभा में महज 12 विधायकों की हैसियत रखने वाले झामुमो ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। 2005, 2009 और 2014 के चुनाव में उसके विधायकों की संख्या क्रमश: 17, 18 और 19 रही है। झारखंड विधानसभा के चुनाव के परिणाम का ही असर बदलते मुख्यमंत्रियों के रूप में भी देखने को मिलता रहा है।

बाबूलाल मरांडी के बाद भाजपा के अर्जुन मुंडा तीन बार, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन तीन बार, निर्दलीय मधु कोड़ा एक बार, हेमंत सोरेन एक बार और रघुवर दास पहली बार मुख्यमंत्री बनें। रघुवर दास को छोड़कर किसी भी मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। वजह दलगत स्थिति ही रही। किसी भी पार्टी को कभी पूर्ण बहुमत नहीं मिला। 2014 में पहली बार रघुवर दास के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, जो अपना कार्यकाल पूरा करने जा रही है।

ऐसे होता रहा है उलटफेर

वर्ष 2000 में भाजपा ने जदयू, समता पार्टी और निर्दलियों के साथ गठबंधन की सरकार बनाई थी। 2005 के चुनावों में भाजपा के विधायकों की संख्या घटकर 30 रह गई। 17 विधायकों के साथ झामुमो दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरा। जबकि राष्ट्रीय दल कांग्रेस मात्र नौ सीटों पर सिमट गया। इस चुनाव में जदयू को छह सीटें मिली जबकि राजद को सात। 2009 के विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ। कांग्रेस ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और सबसे बड़े गठबंधन के रूप में यह गुट उभरा। कांग्रेस-झाविमो को 25 सीटों पर जीत हासिल हुई।

इसमें कांग्रेस विधायकों की संख्या 14 तो झाविमो की 11 थी। वहीं, भाजपा को जनता ने बड़ा झटका दिया और उसके विधायकों की संख्या महज 18 रह गई। एनडीए गठबंधन को महज 20 सीटों पर ही जीत हासिल हुई। इसमें जदूय विधायकों की संख्या दो रही। इस चुनाव में भाजपा और झामुमो का पलड़ा बराबर का रहा। झामुमो को भी 18 सीटों पर जीत हासिल हुई। राजद और आजसू विधायकों की संख्या 5-5 रही। 2014 का विधानसभा चुनाव बहुत कुछ बदल गया। मोदी लहर में हुए चुनाव में पहली बार राज्य मेें एनडीए की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी।

भाजपा को अकेले बूते 37 सीटों हासिल हुईं। बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो ने भी खराब प्रदर्शन नहीं किया लेकिन आठ सीटों पर जीत दर्ज करने वाली झाविमो के छह विधायक टूटकर भाजपा में चले गए। झामुमो भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरा और पार्टी ने एक सीट की बढ़त बनाते हुए 19 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेेस 2009 की 14 सीटों के मुकाबले 2014 में महज छह सीटों पर सिमट गई। हालांकि उपचुनाव में दो सीटें जीतने के बाद उसके विधायकों की संख्या बढ़कर 8 हो गई।