Jharkhand Assembly Election 2019: खामोशियों की अनदेखी के बाद अब चेहरों को पढऩे की बेताबी Garhwa Ground Report
Jharkhand Assembly Election 2019. उत्तर प्रदेश से लगे गढ़वा जिले के सीमाई कस्बों में अभी चुनाव का वैसा शोर सुनाई नहीं पड़ता है। हां खामोशियों का शोर है।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Mon, 11 Nov 2019 09:09 PM (IST)
मुड़ीसेमर (गढ़वा ) से संदीप कमल। Jharkhand Assembly Election 2019 - गढ़वा जिले के सुदूर पश्चिमी किनारे पर आबाद मुड़ीसेमर कस्बे में धान की लहलहाती फसल बता रही कि बंगाल की खाड़ी से उठा बुलबुल का बुलबुला यहां पहुंचने से पहले ही फूट चुका था। सीमाई कस्बा है। सरपट भागतीं उत्तर प्रदेश की नंबर प्लेट वाली गाडियां इसकी तस्दीक करती हैं। हम खड़े हैं नेशनल हाइवे-75 पर। बगल में ही खेतों में चने बो रहे हलिवंता गांव के किसान 80 साल के सखीचंद राम बताते हैं- इस बार फसल ठीक है।
कटनी चालू है। कब तक काटेंगे? जवाब आता है-अगले दो-चार दिन में। चुनावी फसल कौन काट ले जाएगा, हमारे इस सवाल पर चौंकते हैं। फिर चुप्पी ओढ़ लेते हैं। कुरेदने पर कि अबकी यहां चुनाव में किसका जोर रहेगा, खामोश ही रहते हैं। उनकी खामोशी ने ही सारी दास्तान कह सुनाई। मुड़ीसेमर भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। उत्तर प्रदेश सीमा से जब एनएच- 75 पकड़ श्रीबंशीधरनगर होते हुए जिले के सीमाई इलाकों को छूते भवनाथपुर व केतार होकर जब आप कांडी की ओर बढ़ेंगे तो चार बोलियों-संस्कृतियों से रू-ब-रू होंगे।
तीन राज्यों की सीमा से सटे गढ़वा जिले की यह खासियत है। और इस मामले में झारखंड का यह इकलौता जिला है। इधर गोदरमाना, उधर छत्तीसगढ़ का रामानुजगंज। इधर मुड़ीसेमर, उधर उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले का ङ्क्षवढमगंज, इधर कांडी, उधर सोन के उस पार बिहार के रोहतास जिले का नौहट्टा। सुबह का वक्त। नींद से जागे, अलसाए श्रीबंशीधरनगर की तंग गलियों से होते हम बंशीधर मंदिर पहुंचते हैं। यहां सब सामान्य मिलता है। मंदिर के घंट, पूजा, पुजारी, भक्तों का रेला...।
बाबा बंशीधर के दरबार में अभी नेताओं की आमद बढ़ी हुई है। मंदिर के पुजारी प्रेम प्रकाश मिश्रा मिलते हैं। पूछता हूं कि क्या अयोध्या के फैसले का इस चुनाव पर कोई फर्क पड़ेगा? कहते हैं- हां जरूर फर्क पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जो देश के लिए किया है उसके आधार पर यहां भी वोट पड़ेंगे। यहां से थोड़ा आगे बढऩे पर चितविश्राम गांव के चौराहे पर मुलाकात होती है कुछ युवाओं से। इनसे जानना चाहता हूं कि रोजगार क्या इस बार यहां के चुनाव में मुद्दा है?
वे बताते हैं कि यह एक बड़ा मुद्दा है और इस मामले में राज्य की सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। ब्राह्मणबहुल इस गांव के युवाओं के चेहरे पर गुस्सा साफ पढ़ा जा सकता है। बेरोजगारी का आलम यह है कि इस इलाके से बड़ी संख्या में लोग धनकटनी के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जाते हैं। गढ़वा विधानसभा क्षेत्र के मेराल कस्बे में चौपाल पर बैठे लोग चुनावी चर्चा में व्यस्त हैं। लेकिन वह इससे इत्तफाक नहीं रखते।
उनका मानना है कि पलायन तब तक नहीं रुकेगा, जब तक खेती-किसानी सरकार की प्राथमिकता में नहीं होगी। उधर बिहार की सीमा से लगा कांडी प्रखंड अभी शोक में डूबा हुआ जान पड़ा। प्रखंड कार्यालय में सन्नाटा पसरा था। विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में ऐसे लोग ज्यादा मिले जो कांग्रेस प्रत्याशी ददई दुबे के पुत्र के आकस्मिक निधन से मर्माहत थे। खामोश जुबान और आंखों में आंसू बहुत कुछ कह गया।