Jharkhand Election: जल-जंगल-जमीन और माटी-बेटी-रोटी के नारों संग परवान चढ़ रहा चुनाव, भ्रष्टाचार का मुद्दा भी गर्म
विधानसभा चुनाव में अभी दो सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं की ओर से रोज नए नारे और जुमले गढ़े जा रहे हैं ताकि इनके सहारे लोगों को प्रभावित कर अपने पक्ष में किया जाय। भाजपा ने अभी विधानसभा चुनाव में क्या मिला नारा दिया है। इस नारे के बहाने हेमंत सरकार के पिछले पांच वर्षों के कार्य कसौटी पर कसे जा रहे हैं।
आरपीएन मिश्र, जागरण, रांची। राजनीति में नारों का बड़ा महत्व है। खासकर चुनावों में दमदार नारे पार्टियों और प्रत्याशियों के पक्ष-विपक्ष में माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। भारतीय राजनीति में कई यादगार नारे ऐसे हैं जो वर्षों बाद आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं।
रोज नए नारे और जुमले गढ़े जा रहे
विधानसभा चुनाव में अभी दो सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं की ओर से रोज नए नारे और जुमले गढ़े जा रहे हैं ताकि इनके सहारे लोगों को प्रभावित कर अपने पक्ष में किया जाय।अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के वक्त हुए 2005 के लोकसभा चुनाव में इंडिया शाइनिंग का नारा भाजपा के लिए करिश्माई साबित नहीं हो सका था। तब उसके जवाब में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ''आम आदमी को क्या मिला'' नारा लेकर आई थी।
भाजपा ने सरकार आम आदमी की अनदेखी के आरोप लगाए
इसी तर्ज पर भाजपा ने अभी विधानसभा चुनाव में ''क्या मिला'' नारा दिया है। इस नारे के बहाने हेमंत सरकार के पिछले पांच वर्षों के कार्य कसौटी पर कसे जा रहे हैं। वादों को पूरा नहीं करने के आरोप से लेकर आम आदमी की अनदेखी के आरोप इसमें शामिल हैं।चौराहों पर इसके बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए हैं
भाजपा के ''क्या मिला'' नारे के जवाब में झामुमो ''कब मिलेगा'' का नारा दे रहा है। इसमें झारखंड के कोयला रायल्टी मद के बकाया एक लाख 36 हजार करोड़ रुपये के भुगतान में केंद्र सरकार तथा भाजपा द्वारा रुचि नहीं दिखाने का आरोप है। चौराहों पर इसके बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए हैं और विज्ञापन भी छपवाए जा रहे हैं।
आदिवासियों की संख्या में लगातार कमी आने का मुद्दा उठाया जा रहा
बंगाल में कभी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने ''मां, माटी, मानुष'' के नारे के साथ अपना प्रचार अभियान छेड़कर सत्ता में आई थीं। झारखंड में भाजपा का ''माटी, बेटी, रोटी'' नारा कुछ इसी तर्ज पर है। इस नारे के माध्यम से आदिवासी अस्मिता का सवाल उठाकर बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासी महिलाओं का उत्पीड़न, मतांतरण, जमीन पर कब्जा और धोखा देकर विवाह करने तथा इसके परिणामस्वरूप आदिवासियों की संख्या में लगातार कमी आने का मुद्दा उठाया जा रहा है।ये है झामुमो का प्रभावी नारा
यह झामुमो के अरसे से चले आ रहे प्रभावी नारे '' जल, जंगल, जमीन'' का जवाब भी है। इस नारे के माध्यम से झामुमो आदिवासियत और झारखंडियत के जमीनी सवालों को उभारकर खुद को उसका संरक्षक बताता रहा है। हालांकि इस चुनाव में झामुमो इसका कम इस्तेमाल कर रही है।