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कर्नाटक के चुनाव में मठ करेंगे कांग्रेस या भाजपा की जीत तय, हमेशा रहे हैं हावी!

कर्नाटक में हमेशा से ही मठों की राजनीति काफी हावी रही है। यहां के लोगों पर मठों का खासा प्रभाव है। ऐसा ही इस बार भी हो रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 28 Mar 2018 04:53 PM (IST)
कर्नाटक के चुनाव में मठ करेंगे कांग्रेस या भाजपा की जीत तय, हमेशा रहे हैं हावी!

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्क]। चुनाव आयोग द्वारा कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की घोषणा किए जाने के बाद वहां पर चुनावी बिगुल बज चुका है। हर किसी की इस चुनाव पर पैनी नजर है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि भाजपा का लगातार चुनाव को जीतना और कांग्रेस का हारना दोनों ही मायनों में यह सवाल खड़ा कर रहा है कि यहां पर इस बार क्‍या होगा। क्‍या कांग्रेस अपनी सरकार को यहां बचाए रख पाएगी या फिर भाजपा के हाथों यहां पर उसको हार का सामना करना पड़ेगा। हालांकि इस सवाल का जवाब 15 मई को मिल जाएगा जब मतों की गिनती होगी। बहरहाल, अभी की यदि बात करें तो राजनीतिक विश्‍लेषक मान रहे हैं कि यहां पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्‍कर देखने को मिलेगी।

राज्‍य में कमजोर नहीं कांग्रेस

राजनीतिक विश्‍लेषक शिवाजी सरकार का यहां तक कहना है कि कांग्रेस कर्नाटक में इतनी कमजोर नहीं है जितनी दूसरी जगहों पर थी। लिहाजा यहां पर उसको हराना भाजपा के लिए कुछ मुश्किल जरूर होगा। इसके अलावा कांग्रेस के लिए यह चुनाव करो या मरो वाला भी है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि कांग्रेस लगातार सिमटती जा रही है। ऐसे में उसके लिए इस राज्‍य को बचाकर रखना नाक का सवाल बन गया है। यदि वह यहां पर जीत जाती है तो पार्टी को खड़ा करने के लिए यह संजीवनी भी साबित होगा।

लिंगायत का ट्रंप कार्ड

वह बताते हैं कि कांग्रेस द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देना भी कांग्रेस के लिए एक ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। हालांकि अभी तक इस पर अंतिम मुहर लगना बाकी है क्‍योंकि इसका प्रस्‍ताव फिलहाल केंद्र के पास है। ऐसे में इस पर अंतिम मुहर लगाना भी उसका ही काम है। लेकिन यहां पर भाजपा के लिए धर्म संकट की स्थिति इसलिए है क्‍योंकि यदि वह इस पर राज्‍य सरकार के हक में काम करती है तो यह कांग्रेस के हक में चला जाएगा और यदि ऐसा नहीं करती है तब भी कांग्रेस इसको भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। ऐसे में केंद्र सरकार के लिए इस पर चुप्‍पी साधना ही बेहतर विकल्‍प होगा। लिंगायत समुदाय और चुनाव के संबंध में उनका मानना था कि राज्‍य सरकार ने इसके तहत आने वाले एक समुदाय को जिससे गौरी लंकेश ताल्‍लुक रखती थीं, को अल्‍पसंख्‍यक घोषित किया है। ऐसे में यह कहीं न कहीं कांग्रेस के हक में काम जरूर करेगा।

मठों की राजनीति हावी

आपको यहां पर बता दें कि कर्नाटक में हमेशा से ही मठों की राजनीति काफी हावी रही है। यहां के लोगों पर मठों का खासा प्रभाव है। लिहाजा अब और पहले भी यहां पर राजनीतिक पार्टियां चुनावी समय में मठों के दर्शन कर वहां के मठाधीशों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश करती रही हैं। ऐसा ही इस बार भी हो रहा है। भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह और कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी इस परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे हैं। इस बात से शिवाजी सरकार भी इंकार नहीं करते हैं। उनका कहना है कि यह हमेशा से ही यहां पर रहा है। कर्नाटक की राजनीति में मठों का प्रभाव काफी गहरा है। लोग इनके प्रभाव में आकर हमेशा से वो‍ट करते आए हैं। इस बार भी ऐसा ही होगा। उनके मुताबिक बोकालिंगा और लिंगायत के प्रभाव को कोई नहीं काट सकता है। यह हमेशा से रहा है। हालांकि इन दोनों में आपसी मतभेदों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

जनसंख्‍या कम लेकिन प्रभाव ज्यादा

वह मानते हैं कि यदि जनसंख्‍या के हिसाब से देखें तो इन दोनों की संख्‍या काफी कम है लेकिन राज्‍य के लोगों पर प्रभाव काफी गहरा है। इनसे कई जातियों के लोग गहराई से जुड़े हैं। इनका कुछ क्षेत्रों में जबरदस्‍त प्रभाव है। यह यहां पर भाजपा को मुश्किल में डालने में सहायक साबित हो सकता है। हालांकि वह ये भी मानते हैं कि कर्नाटक में भाजपा ने तैयारी बेहतर की है। यहां पर उन्‍होंने अपना बूथ लेवल काफी मजबूत किया है जिसमें कांग्रेस कुछ पीछे खड़ी दिखाई देती है। लेकिन कांग्रेस ने यहां पर अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। नाथ संप्रदाय को लेकर भी उनका कहना है इसका भी कुछ क्षेत्रों में प्रभाव दिखाई देता है। उनके मुताबिक कर्नाटक की राजनीति में महज दो-चार फीसद वोट ही इधर-उधर खिसकता है और यह काफी अहम भूमिका निभाता है। उनके मुताबिक इस चुनाव में मठों के अलावा कुछ मुस्लिम भी किस ओर झुकते हैं यह देखना काफी दिलचस्‍प होगा।

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