'बार-बार पलटते हैं शरद पवार', एनसीपी तोड़ने से भ्रष्टाचार के आरोपों तक, सभी मुद्दों पर खुलकर बोले अजित पवार, पढ़ें खास बातचीत
Ajit Pawar Interview जागरण नेटवर्क के साथ खास बातचीत में एनसीपी अजीत गुट के प्रमुख अजीत पवार ने शरद पवार का साथ छोड़ने से लेकर भाजपा में शामिल होने एवं खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों समेत तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की है। साथ ही उन्होंने कई बड़े खुलासे भी किए हैं। पढ़ें उनके साथ हुई विशेष बातचीत के प्रमुख अंश...
Ajit Pawar Interview: इन दिनों महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा सीट सुर्खियों में है। यहां मराठा छत्रप एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के अध्यक्ष शरद पवार की बेटी एवं तीन बार की सांसद सुप्रिया सुले का मुकाबला उन्हीं के चचेरे भाई व उप मुख्यमंत्री अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से हो रहा है। सुप्रिया को हराने के लिए अजीत पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजीत गुट) के साथी दल भाजपा एवं शिवसेना (शिंदे गुट) भी जी-जान से लगे हैं।
इससे बारामती की लड़ाई रोचक हो गई है। यहां परिवारों में गुट बन गए हैं। अधिसंख्य परिवारों में बुजुर्ग सीनियर पवार (शरद पवार) के साथ नजर आ रहे हैं, तो युवा अजीत के साथ। लड़ाई कांटे की है। अजीत पवार से उनकी राय जानने के लिए उनसे खास बातचीत की दैनिक जागरण के ओमप्रकाश तिवारी ने। पढ़िए प्रमुख अंशःप्रश्न - बारामती के चुनाव पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं। यहां चुनाव सुप्रिया बनाम सुनेत्रा हो रहा है या अजीत पवार बनाम शरद पवार?
उत्तर - नहीं, नहीं। यहीं नहीं, पूरे देश में चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो रहा है और हम विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं। पिछले 10 वर्ष में मैंने बारामती में जो विकास कार्य किया है, वह राज्य सरकार के फंड से किया है। केंद्र का एक भी पैसा नहीं मिला, क्योंकि हमारे यहां का उम्मीदवार जो चुनकर जाता था, वह वहां केंद्र सरकार का विरोध करता था। अब हम नरेन्द मोदी की विकास नीति का समर्थन कर रहे हैं। उनकी विकास योजनाओं का पैसा हमारे बारामती और महाराष्ट्र में भी आना चाहिए। यदि राज्य और केंद्र, दोनों सरकारों के फंड आएंगे तो राज्य और हमारे क्षेत्र में विकास ज्यादा तेजी से हो सकेगा।
प्रश्न - तो ये मान लिया जाए कि मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है?
उत्तर - आज देश में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विरोधी दलों में तो राहुल गांधी ही हैं। राहुल गांधी का आज तक का सांसद के रूप में काम सभी ने देखा है। मनमोहन सिंह की सरकार में उन्होंने काम नहीं किया। वह सिर्फ एक सांसद भर बने रहे। वहां यदि उन्होंने मंत्री के रूप में कुछ काम किया होता, जैसे लालबहादुर शास्त्री की सरकार में इंदिराजी ने मंत्री के रूप में किया था, तो शायद वह कुछ सीख पाते। लोगों को भी उनकी क्षमता का पता चलता, लेकिन उन्होंने खुद काम किया नहीं, और मनमोहन सिंह ने कोई अच्छा निर्णय किया, तो उसका पेपर फाड़ने का काम करते रहे। 10 साल के मोदीजी के काम आपके सामने हैं, और इनका भी काम आपके सामने है। हालत ये है कि अमेठी और रायबरेली जैसे लगातार गांधी परिवार वाले क्षेत्र में भी वह अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर सके।
प्रश्न - कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में आपको सीटों के मामले में समझौता करना पड़ा है महायुति गठबंधन में।उत्तर - पिछली बार भाजपा-शिवसेना राज्य की 48 में से 41 सीटें जीतकर आई थीं। बचीं सात। उसमें से छह मुझे मिली हैं, और एक सीट के बदले में हमें राज्यसभा की एक सीट का वादा किया गया है। अब मैं उनके मौजूदा सांसदों की सीट तो मांग नहीं सकता था।
प्रश्न - आपका सपना रहा है राज्य का नेतृत्व करने का। वह अब तक पूरा नहीं हो सका है। आगे इसके लिए क्या करेंगे ?उत्तर - जब तक राज्य विधानसभा में 145 सीटों का जादुई आंकड़ा हमारे पास नहीं होता, तब तक तो हम ये लक्ष्य नहीं पा सकते। जैसे एकनाथ शिंदे ने 145 का जादुई आंकड़ा जुटा लिया, उसके लिए उन्होंने साहस जुटाया। पार्टी तोड़कर इतने विधायक और सांसद अपने साथ लेकर वह निकले और भाजपा का समर्थन लिया, जिससे वह मुख्यमंत्री बन सके।
प्रश्न - भ्रष्टाचार के एक मामले में आपको और सुनेत्रा को क्लीन चिट मिल गई है। आपके विरोधी कहते हैं कि यदि आपकी तरह वह भी भाजपा में जाते तो वह भी वाशिंग मशीन में धुलकर साफ हो जाते।उत्तर - मेरे ऊपर जो भी आरोप लगते रहे हैं, उनमें से कोई भी अब तक कई जांच एजेंसियों की जांच में भी साबित नहीं हो सके हैं। यदि मुझपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप सही होते तो उद्धव ठाकरे, पृथ्वीराज चव्हाण, एकनाथ शिंदे जैसे मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट में मुझे साथ क्यों लेते ? और जिस बैंक में भ्रष्टाचार होने का आरोप लग रहा है, वह अब भी 500-600 करोड़ के लाभ में चल रहा है। यदि भ्रष्टाचार हुआ होता तो क्या लोग उसमें अपना पैसा रहने देते। वह बैंक ही डूब गया होता। कई बैंक तो डूब भी चुके हैं। ऐसे बैंकों पर तो रिजर्व बैंक कार्रवाई करती है।
प्रश्न - अभी आप पर यह आरोप भी लग रहे हैं कि आपने अपनी काकी (शरद पवार की पत्नी) पर भी राजनीतिक हमले शुरू कर दिए हैं।उत्तर - ऐसा मैंने तो कभी नहीं किया। कोई कुछ कह रहा है तो उसका मुंह तो मैं नहीं दबा सकता। काकी को हमेशा मैंने मां का ही दर्जा दिया है।प्रश्न - सुप्रिया का गुस्सा मूलतः आप पर ही है। आपके परिवार से भी उन्हें कोई शिकायत नहीं है।
उत्तर - ठीक है। आपको मालूम नहीं होगा, मैंने 15 साल इस क्षेत्र के लिए लगातार काम किया है। वह केवल फॉर्म भरती थीं। पवार साहेब सिर्फ अंत में एक रैली के लिए आते थे। अभी सबको बार-बार फोन कर रहे हैं कि ऐसा करो, वैसा करो। इसको बुलाओ, उसको बुलाओ। मैंने तो इतना ही कहा था कि हमने जो लाइन पकड़ी है (सरकार में शामिल होने की), सब ठीक हो जाएगा। यदि भाजपा गलत है तो उन्होंने 2014 में भाजपा को समर्थन क्यों दिया था बाहर से? हमने तो तब टीवी पर देखा था कि शरद पवार भाजपा सरकार को बाहर से समर्थन देंगे। फिर उनके पास मैं पहुंचा तो बताया कि कुछ दिन रुको। हमें एक महीने के बाद मंत्रिपरिषद में शामिल होना है। फिर दो महीने बाद बोले कि हमें उनके साथ नहीं जाना है। फिर अभी कह रहे हैं कि वो तो मैंने रणनीति के तहत किया था, क्योंकि हमें भाजपा को शिवसेना से अलग करना था।
प्रश्न- ...तो इसका मतलब ये हुआ कि वह अपना निर्णय बार-बार बदलते रहे हैं।उत्तर - उन्होंने 2014 में पहले भाजपा को समर्थन देकर कहा कि भाजपा के साथ नहीं जाना है। फिर 2017 में सुनील तटकरे (अभी अजीत पवार के साथ) और शरद पवार अमित शाह से मिले और राकांपा के सरकार में शामिल होने की बात तय हुई, लेकिन शाह ने उन्हें बता दिया कि हम अपने 25 साल पुराने सहयोगी शिवसेना को नहीं छोड़ेंगे। आप भी साथ आइए, हम मिलकर सरकार चलाएंगे। तब पवार बोले थे कि नहीं, शिवसेना के साथ तो हम बिल्कुल नहीं जा सकते। हम सेक्युलर हैं। लोग हमें क्या कहेंगे। फिर 2019 में भाजपा के साथ सरकार बनाने का फैसला हुआ। उसमें वह शामिल थे। फिर हमारे और देवेंद्र फडणवीस के शपथ लेने के बाद वह पलट गए। तब तो हम लोग मंत्रिपरिषद तक तय कर चुके थे।
ये भी पढ़ें- 'यह भाजपा है, किसी के आने से कांग्रेसयुक्त नहीं होगी', अनुराग ठाकुर ने विशेष बातचीत में दिए सवालों के बेबाक जवाबप्रश्न - यदि उस समय आपकी और देवेंद्र की सरकार न गिराई जाती तो आगे महाराष्ट्र की राजनीति का स्वरूप क्या होता?उत्तर - तो शिवसेना विपक्ष में बैठती और कांग्रेस खत्म हो जाती उत्तर प्रदेश की तरह। तब शिवसेना भी मजबूत नहीं रह पाती। उनके विधायक भी तब उसी समय त्याग-पत्र देकर हमारे साथ आ जाते। कांग्रेस का भी बुरा हाल हो जाता। मैं और देवेंद्र बहुत अच्छी सरकार चला सकते थे। राज्य की नौकरशाही पर हम दोनों की पकड़ अच्छी है।प्रश्न - शिवसेना और राकांपा के टूटने का क्या कारण मानते हैं आप ?उत्तर - यदि उद्धव ठाकरे उस समय एकनाथ शिंदे को अपना मानकर अपने निर्णयों में शामिल करते तो वह शिवसेना से बाहर नहीं जाते। शिंदे के विभाग में उद्धव परिवार का हस्तक्षेप इतना बढ़ गया था कि उन्होंने परेशान होकर शिवसेना तोड़ने का निर्णय कर लिया।प्रश्न - इसी साल महाराष्ट्र में विधानसभा एवं कई बड़े स्थानीय निकायों के भी चुनाव होने हैं। क्या महायुति के तीनों दल उनमें भी साथ रहेंगे?उत्तर - जब हमारा कांग्रेस से गठबंधन था तो वहां भी हम लोकसभा और विधानसभा ही साथ लड़ते थे। स्थानीय निकायों में वहां की हमारी इकाइयां फैसला लेती थीं। हम सबको अपना संगठन भी तो मजबूत करना है। पार्टी बढ़ानी है।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: सत्ता युद्ध का अजेय अभिमन्यु, जिसने कभी नहीं देखी पराजय, लेकिन आज किला बचाने के लिए संघर्ष