'देश में कभी भी नहीं था मुस्लिम वोट बैंक, है तो केवल हिंदू वोट बैंक'; तीखे सवालों पर ओवैसी ने दिए बेबाक जवाब, पढ़ें खास इंटरव्यू
Asaduddin Owaisi Exclusive Interview एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने खास साक्षात्कार में उनकी पार्टी को भाजपा की बी-टीम कहे जाने से लेकर अपने उन पर लगने वाले तमाम आरोपों और महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुलकर बात की। जानिए उन्होंने क्यों कहा कि इस देश में कभी भी मुस्लिम वोट बैंक नहीं था बल्कि केवल हिंदू वोट बैंक है। पढ़िए विस्तृत इंटरव्यू।
वदूद साजिद, नई दिल्ली। मुस्लिम राजनीतिक पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन का नाम आते ही असदुद्दीन ओवैसी की छवि दिमाग में आ जाती है। उन्होंने चार लोकसभा चुनाव जीते हैं। अपनी पार्टी को आंध्र प्रदेश (और अब तेलंगाना) की सीमाओं से बाहर ले जाकर सक्रिय करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकाय चुनावों में भी जीत हासिल की है। वह एक शिक्षित, सक्षम और व्यापक अध्ययन वाले मुस्लिम नेता हैं। मुसलमानों के मुद्दों को संसद के अंदर और बाहर पूरी ताकत और तर्कों के साथ उठाते हैं।
उनकी राजनीतिक शैली से कुछ वर्ग असहमत हो सकते हैं, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम मुद्दों पर उनकी जैसी तर्कपूर्ण आवाज उठाने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं है। उन्होंने सदन का अधिकतम समय मुस्लिम मुद्दों को उठाने में लगाया है।एक अंग्रेजी दैनिक द्वारा भारत के 100 सबसे शक्तिशाली लोगों की सूची में उन्हें 78वां स्थान दिया गया है। जाने-माने वकील हरीश साल्वे, शशि थरूर, शरद पवार और लुलु ग्रुप के चेयरमैन यूसुफ अली और यहां तक कि रामदेव और अमिताभ बच्चन भी इस सूची में उनके बाद हैं।
2024 के आम चुनाव के संदर्भ में दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन उर्दू दैनिक इंकिलाब के संपादक वदूद साजिद ने उन से कई अहम सवालों पर विस्तार बातचीत की है। प्रस्तुत है उस बातचीत के प्रमुख अंशः-प्रश्न- आम धारणा यह है कि आपके मैदान में उतरने से भाजपा को फायदा हो जाता है?
उत्तर- यह कहना सही नहीं है कि भाजपा हमारी वजह से सफल हो रही है या हम उसे रोक सकते हैं। अगर हमें भाजपा को रोकना है तो सबको मिलकर रोकना होगा। लालू प्रसाद ने दो-दो बार भाजपा को बिहार सौंपा। इस पर कोई उंगली नहीं उठाता। कोई उन्हें भाजपा का एजेंट नहीं कहता। मुसलमान उनसे सवाल नहीं करते। भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय (मुसलमानों) को इस तथ्य को समझना होगा कि सत्ता के सदनों में अपनी आवाज उठाने के लिए उन्हें अपना नेतृत्व खड़ा करना होगा। मुसलमानों और दलितों तथा कमजोर वर्गों को निशाना बनाया जा रहा है और इन वर्गों के उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो सोचने-समझने की क्षमता रखते हैं।
प्रश्न - क्या मुसलमानों की अलग राजनीतिक पहचान से धर्मनिरपेक्षता को नुकसान नहीं पहुंचेगा?उत्तर- यह बहुत दुखद है कि केवल चुनाव के समय हमें धर्मनिरपेक्षता को जीवित रखने का संदेश दिया जाता है। मैं राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता को कभी स्वीकार नहीं करता। मैं उस धर्मनिरपेक्षता को मानता हूं जिसका उल्लेख संविधान में है। मुसलमानों को यह समझना चाहिए कि राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमेशा हमें धोखा दिया गया और राजनितिक बंधक बनाकर रखा गया। मौलाना अबुल कलाम आजाद को रामपुर से चुनाव लड़ना पड़ा। आज स्थिति यह है कि कोई मुसलमानों का नाम तक नहीं लेता। जब मुस्लिम नेतृत्व स्थापित करने की बात आती है, तो इसे देश के विभाजन से जोड़ा जाता है। जबकि इतनी बड़ी संख्या में जो मुसलमान भारत में रह गए, उन्होंने जिन्ना के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को ठुकरा दिया। मुसलमानों का पिछड़ापन दूर करने के लिए जरूरी है कि उनका अपना नेतृत्व हो। लोकतंत्र की कड़वी सच्चाई यह है कि जिस वर्ग या जाति या समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व होता है, वहीं विकास करता है।
प्रश्न - लेकिन भाजपा वंचित मुसलमानों के हितों की बात तो करती है?उत्तर- उत्तर प्रदेश में कुरैशी समुदाय का कारोबार तबाह कर दिया गया। एक सजायाफ्ता कैदी (अतीक अहमद) को पुलिस की मौजूदगी में गोली मार दी जाती है। एक सजायाफ्ता विधायक (मुख्तार अंसारी) को जहर दे दिया जाता है। पत्नी के नाम पर बने मकान को सरकार पति से बदला लेने के लिए तोड़ देती है। केवल पिछड़े मुसलमानों पर ही अत्याचार किया जा रहा है। यूएपीए के तहत सब से ज्यादा अल्पसंख्यकों को जेलों में ठूंसा गया। यूपी में मुसलमानों में ड्रापआउट दर सबसे ज्यादा है। उच्च शिक्षा में सबसे अधिक वही नदारद हैं। यह आधिकारिक आंकड़ा है। सरकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को नहीं मानती। जब सीएए को एनआरसी से जोड़ा जाएगा तो इस देश में मुसलमानों का क्या होगा। एनआरसी नियमों के अनुसार स्थानीय वार्ड स्तर पर भी कोई भी व्यक्ति जनसंख्या रजिस्टर में दर्ज किसी भी नाम पर आपत्ति कर सकता है, लेकिन अपनी भारतीय पहचान का सुबूत देने की जिम्मेदारी प्रभावित व्यक्ति की होगी ।
प्रश्न- क्या प्रधानमंत्री आवास योजनाओं से मुसलमानों को फायदा नहीं हुआ?उत्तर- तो क्या मुसलमानों पर कोई उपकार किया गया है? यह एक सरकारी योजना है। मैं उनसे नाम पूछ रहा हूं कि किन-किन मुसलमानों को आवास योजना से लाभ हुआ है, उनकी सूची दीजिए, लेकिन वे जवाब में कहते है कि हमारे पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।प्रश्न - आपने यूएपीए जैसे कानून का जिक्र किया, जब ऐसे कानून बनते हैं तो क्या ये सेक्युलर पार्टियां इसके खिलाफ आवाज नहीं उठातीं?
उत्तर- जब यूएपीए कानून बन रहा था तो सभी सेक्युलर पार्टियों ने इसका समर्थन किया था। मैं चिल्लाता रहा कि इस कानून का निशाना हम ही होंगे, आप देखिए, पांच-पांच साल जेलों में कौन सड़ रहा है। यह कानून इतना क्रूर है कि जमानत पाने के लिए आपको अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी। यह दुनिया का सबसे क्रूर कानून है। दुनिया के सभी प्रमुख देशों में हिरासत की अवधि हमारे देश में (120 दिन) जितनी नहीं है। यह दुखद है कि इसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई जा रही है। मैं फिर कहूंगा कि यह तब तक जारी रहेगा जब तक आप का प्रतिनिधित्व खड़ा नहीं हो जाता ।
प्रश्न- उत्तर प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी होने के बावजूद मुस्लिम नेतृत्व क्यों नहीं उभर पाया?उत्तर- उत्तर प्रदेश में जानबूझकर मुस्लिम नेतृत्व को खत्म किया गया। मुख्तार अंसारी को जेल में 'स्लो पॉइजन' देकर मार दिया गया, वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव ने डॉ. एसटी हसन को भी 'स्लो पॉइजन' दे दिया। उनकी इतनी बेइज्जती की गई कि बी फॉर्म दो लोगों को दे दिया गया। एक तरफ मुस्लिम नेताओं को जहर देकर शारीरिक रूप से मारा जा रहा है और दूसरी तरफ उन्हें जहर देकर राजनीतिक तौर पर मारा जा रहा है। मेरा सवाल है कि क्या सिर्फ मुसलमान ही माफिया हैं? लेकिन क्योंकि सरकार मुसलमानों से नफरत करती है, इसलिए केवल मुसलमान ही उसे अपराधी नजर आते हैं।
प्रश्न- इसमें समस्या कहां है?उत्तर- कठिनाई यह है कि हमने इसके महत्व को नहीं समझा। देश में अब तक हुए 17 संसदीय चुनावों में मुसलमानों ने किसी भी सांप्रदायिक पार्टी या सांप्रदायिक उम्मीदवार को वोट नहीं दिया। फिर भी हमारा आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन बढ़ रहा है। जेलों में हम अपने अनुपात से ज्यादा हैं। इसका सीधा संबंध इस तथ्य से है कि हमारा कोई नेतृत्व नहीं है। अब तो हमारा वोट भी महत्वपूर्ण नहीं है। 2014 में मोदी को 31 प्रतिशत वोट मिले थे, 2019 में 37 प्रतिशत मिले। सीएसडीएस के आंकड़े कहते हैं कि सभी बहुसंख्यक समुदायों में मोदी का वोट प्रतिशत बढ़ा है, केवल मुस्लिम समुदाय का सात प्रतिशत पर ही रहा।
प्रश्न- क्या स्थितियां सचमुच इतनी विकट हैं? क्या मुसलमानों ने किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं की है?उत्तर- इस देश में मुसलमानों के मध्यम और पिछड़े वर्ग ने अगर व्यापार, खेल और शिक्षा में कोई मुकाम हासिल किया है तो वह अपनी मेहनत, खोज और संघर्ष से हासिल किया है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मुसलमानों को आरक्षण मिला लेकिन अन्य राज्यों में क्या हुआ। अन्य वर्गों को वोट के बदले ठेका मिलता है। मुसलमान को क्या मिलता है?
प्रश्न - पिछले दस वर्षों में मजलिस इत्तिहाद-उल-मुस्लिमीन ने कई राज्यों में चुनाव लड़ा, आपको बिहार में भी महत्वपूर्ण सफलता मिली, क्या कोई जमीन विकसित हुई है और क्या आपकी पार्टी को मुसलमानों के बीच कुछ स्वीकार्यता मिल रही है?उत्तर - स्वीकार्यता तो मिल रही है, लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं है कि यह वोट में भी तब्दील होगी, यह हमारे लिए एक चुनौती है। बिहार में हमारे पांच उम्मीदवार उस क्षेत्र से जीते जो भारत का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है।प्रश्न - लेकिन उन्होंने तो आपको छोड़ दिया?उत्तर- हमारी सफलता से भाजपा और सभी तथाकथित सेक्युलर पार्टियों को भी तकलीफ होने लगी, इसलिए उन्होंने हमारे चार आत्महीन लोगों को खरीद लिया। महाराष्ट्र में सरकार गिराई गई तो शोर मचाया गया कि लोकतंत्र की हत्या हो गई है, क्या उन्होंने बिहार में लोकतंत्र को पुनर्जीवित कर दिया?" स्पष्ट है कि राजनीतिक दल मुस्लिम प्रतिनिधियों और उनके नेतृत्व को बर्दाश्त नहीं करते, लेकिन हमारा मनोबल नहीं गिरा। हमने हिम्मत नहीं हारी।प्रश्न - तो फिर इतनी सीटों पर चुनाव लड़ने का क्या फायदा?उत्तर - यह सच है कि हमें सफलता नहीं मिल रही है, लेकिन मजलिस के चुनाव लड़ने से अल्पसंख्यकों को कम से कम एक महत्व तो मिल ही रहा है।प्रश्न - उप्र में पल्लवी पटेल के साथ आपका समझौता हो गया है, क्या व्यापक स्तर पर दलित-मुस्लिम गठबंधन की आपकी कोई योजना है?उत्तर - यह सच है कि उप्र में हमने पल्लवी पटेल के साथ दलितों और मुसलमानों का एक पिछड़ा मोर्चा बनाया है। बड़े पैमाने पर ऐसा मोर्चा बनाना कोई आसान काम नहीं है। यह एक बड़ी चुनौती है। इससे पहले 2019 में भी हमने बाबू सिंह कुशवाहा और प्रकाश अंबेडकर के साथ प्रयास किया था। मैं मानता हूं कि अगर दलित-मुस्लिम गठबंधन होता है तो यह कमजोर लोगों का स्वाभाविक गठबंधन होगा। सारे कमजोर वर्ग एकसाथ आएंगे तो यह इस देश के लिए अच्छा होगा।प्रश्न - आप इन प्रयासों में अब तक सफल क्यों नहीं हो पाए? क्या दलित वर्ग में आपको स्वीकार्यता नहीं मिली?उत्तर - एक कठिनाई यह भी है कि दलित वर्गों का भी कोई राजनीतिक नेतृत्व नहीं है। इन दोनों वर्गों को इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि यदि आप अपने नेतृत्व को अपने हाथों से मजबूत नहीं करते हैं, तो शोषण और उत्पीड़न होगा। इस स्थिति में आपको अपना उचित अधिकार और उचित स्थान कभी नहीं मिलेगा। इस काम के लिए निरंतर प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। निराश होने की जरूरत नहीं है। आज नहीं तो कल यह काम होगा। मैं 2015 से कह रहा हूं कि यह काली रात जल्द खत्म होने वाली नहीं है क्योंकि 'बहुसंख्यक राजनीति' को बढ़ावा दिया गया है। भाजपा इसका फायदा उठा रही है।हमारी अजान, हमारी नमाज और हमारे कपड़े उनके लिए खतरा बन गए हैं। कपड़ों से पहचानने की बात खुद प्रधानमंत्री ने कही है, मुसलमान अब समुद्र की तलहटी में पहुंच गए हैं। अब उन्हें यहां से उठने के लिए कुछ करना होगा। ये तथाकथित सेक्युलर पार्टियां कुछ नहीं करेंगी। इन पार्टियों के नेता अपने और अपने परिवार का ही भला करते है। क्या आपको राजस्थान के जुनैद नासिर को जिंदा जलाने की घटना याद है? तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उनके परिवार से मिलने में 20 दिन लग गए। वे आपका वोट चाहते हैं और बस। चुनाव में हमें बताया जाता है कि यह जीवन और मृत्यु का सवाल है। क्या चुनाव के बाद जीवन और मृत्यु नहीं है।प्रश्न - आप तथाकथित सेक्युलर पार्टियों के साथ राजनीतिक गठबंधन नहीं कर सकते, लेकिन कुछ राज्यों में मुस्लिम नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों से समझौता क्यों नहीं करते?उत्तर- कई लोगों ने मुझसे असम आने के लिए कहा, लेकिन मैंने सार्वजनिक रूप से कहा कि मैं वहां नहीं जाऊंगा क्योंकि मैं वहां बदरुद्दीन अजमल को 'परेशान' नहीं करना चाहता। कई लोगों ने मुझे केरल आने के लिए भी कहा लेकिन मुस्लिम लीग वहां अच्छा काम कर रही है। हमें वहां प्रयास करना चाहिए जहां मुसलमानों का कोई राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं है। जैसे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, कर्नाटक आदि।प्रश्न - अगर मुसलमान एकजुट होकर मजलिस इत्तिहाद-उल-मुस्लिमीन को वोट दें तो कितनी सीटें जीती जा सकती हैं?उत्तर - मैं मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन के लिए ये प्रयास नहीं कर रहा हूं। मेरी लड़ाई मुसलमानों के अधिकारों, उनकी सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन के लिए है। हम एकमात्र समुदाय हैं जिसका चुनाव में कोई मुद्दा नहीं होता। हम बस यही कहते हैं कि हमें जीने दो। मुसलमानों को एक बात समझनी चाहिए कि भाजपा इसलिए सत्ता में आई है क्योंकि वे इस देश में 'सभ्यता परिवर्तन' लाना चाहते है। अब यह मुसलमानों को तय करना है कि वे क्या चाहते हैं।प्रश्न - लेकिन उप्र के स्थानीय और नगर निगम चुनावों में मुसलमानों ने बड़ी संख्या में भाजपा को वोट दिया है?उत्तर - हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह जिसे चाहे वोट दे। लेकिन मुसलमानों को सोचना चाहिए कि मदरसा बोर्ड को खत्म कर दिया गया है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि शरीयत संविधान से ऊपर नहीं है। हम कहते है कि संविधन सबसे ऊपर है और संविधान हमें अपने धर्म का पालन करने की इजाजत देता है। संविधान समानता की बात करता है और मुसलमानों को भी समानता का अधिकार हासिल है।चुनाव से जुड़ी और हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए यहां क्लिक करें
प्रश्न - 2024 के चुनाव के बाद देश के राजनीतिक परिदृश्य को आप कैसे देखते हैं?उत्तर - पिछले दस वर्षों में भाजपा ने 'बहुसंख्यक वर्ग के प्रभुत्व वाले लोकतंत्र' को बढ़ावा दिया है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि मुसलमान राजनीतिक दृश्य से गायब हो गए हैं। रही सही कमी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने पूरी कर दी है। भाजपा को मुस्लिम वोट की जरूरत नहीं, फिर भी दिखाने के लिए वे 'सब का साथ, सबका विकास' का नारा बुलंद कर देते है। तथाकथित सेक्युलर पार्टियां भी समझती हैं कि हम मुसलमानों को जितना अपने से दूर रखेंगे, उतना ही राजनीतिक लाभ होगा। इन दस सालों में मुसलमानों को मांस और हिजाब के नाम पर निशाना बनाया गया। फर्जी मुठभेड़ों और बुलडोजरों से उन्हें नुकसान पहुंचाया गया। ये बात मैंने संसद में भी कही थी कि हिटलर के जर्मनी में जो स्थिति यहूदियों की थी आज के भारत में मुसलमानों की भी वही स्थिति है।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: बिहार में उपलब्धियों की चर्चा नहीं, केवल चेहरों के भरोसे पार्टियां, क्या जनता ले चुकी है निर्णय? प्रश्न - इन हालात में मजलिस-ए- इत्तिहादुल मुस्लिमीन मुसलमानों को क्या संदेश देती है?उत्तर- मजलिस का शुरू से ही यह पक्ष रहा है कि लोकतंत्र तभी मजबूत और सफल हो सकता है जब सभी वर्गों को अपना हिस्सा मिले। इस देश को आजाद कराने वाले वर्गों और नेताओं का यह सपना था और यह वादा था कि हमारा लोकतंत्र साझेदारी का लोकतंत्र होगा, लेकिन इस लोकतंत्र में मुसलमानों को सबसे कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला। लोकसभा में सिर्फ चार प्रतिशत मुस्लिम जीतते हैं। राज्य विधानसभाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। गुजरात से 1984 के बाद से कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी जीत कर नहीं आया है। मुसलमानों के लिए हमारा संदेश है कि उन्हें अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहिए। हमें एक मंच पर एकत्रित होना होगा। जिस दिन हम एकजुट हो जाएंगे वह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।प्रश्न- आजादी को इतना समय बीत गया, अब तक कोई मुस्लिम नेतृत्व खड़ा क्यों नहीं हो सका?उत्तर- कारण स्पष्ट है कि हमने कभी भी मुस्लिम नेतृत्व को वोट नहीं दिया। हमने तथाकथित धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए कभी इंदिरा गांधी को वोट दिया, कभी मोरारजी देसाई को। हमने चरण सिंह, मुलायम सिंह, वीपी सिंह, लालू प्रसाद और नीतीश को वोट दिया। मेरा एकमात्र सवाल यह है कि इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं को वोट देकर मुसलमानों ने क्या हासिल किया। यदि कुछ हासिल किया होता तो क्या सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र कमीशन और कुंडू कमेटी को वह कहना पड़ता जो उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कही। मुसलमानों की स्थिति के बारे में सभी आंकड़े क्या बताते हैं? मैं पूरे विश्वास से कहता हूं कि इस देश में कभी भी मुस्लिम वोट बैंक नहीं था। इस देश में केवल हिंदू वोट बैंक है।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र में गरमा दिया पालघर साधु हत्याकांड का मुद्दा, शिंदे गुट ने भी लगाया ये आरोप
प्रश्न - 2024 के चुनाव के बाद देश के राजनीतिक परिदृश्य को आप कैसे देखते हैं?उत्तर - पिछले दस वर्षों में भाजपा ने 'बहुसंख्यक वर्ग के प्रभुत्व वाले लोकतंत्र' को बढ़ावा दिया है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि मुसलमान राजनीतिक दृश्य से गायब हो गए हैं। रही सही कमी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने पूरी कर दी है। भाजपा को मुस्लिम वोट की जरूरत नहीं, फिर भी दिखाने के लिए वे 'सब का साथ, सबका विकास' का नारा बुलंद कर देते है। तथाकथित सेक्युलर पार्टियां भी समझती हैं कि हम मुसलमानों को जितना अपने से दूर रखेंगे, उतना ही राजनीतिक लाभ होगा। इन दस सालों में मुसलमानों को मांस और हिजाब के नाम पर निशाना बनाया गया। फर्जी मुठभेड़ों और बुलडोजरों से उन्हें नुकसान पहुंचाया गया। ये बात मैंने संसद में भी कही थी कि हिटलर के जर्मनी में जो स्थिति यहूदियों की थी आज के भारत में मुसलमानों की भी वही स्थिति है।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: बिहार में उपलब्धियों की चर्चा नहीं, केवल चेहरों के भरोसे पार्टियां, क्या जनता ले चुकी है निर्णय? प्रश्न - इन हालात में मजलिस-ए- इत्तिहादुल मुस्लिमीन मुसलमानों को क्या संदेश देती है?उत्तर- मजलिस का शुरू से ही यह पक्ष रहा है कि लोकतंत्र तभी मजबूत और सफल हो सकता है जब सभी वर्गों को अपना हिस्सा मिले। इस देश को आजाद कराने वाले वर्गों और नेताओं का यह सपना था और यह वादा था कि हमारा लोकतंत्र साझेदारी का लोकतंत्र होगा, लेकिन इस लोकतंत्र में मुसलमानों को सबसे कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला। लोकसभा में सिर्फ चार प्रतिशत मुस्लिम जीतते हैं। राज्य विधानसभाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। गुजरात से 1984 के बाद से कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी जीत कर नहीं आया है। मुसलमानों के लिए हमारा संदेश है कि उन्हें अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहिए। हमें एक मंच पर एकत्रित होना होगा। जिस दिन हम एकजुट हो जाएंगे वह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।प्रश्न- आजादी को इतना समय बीत गया, अब तक कोई मुस्लिम नेतृत्व खड़ा क्यों नहीं हो सका?उत्तर- कारण स्पष्ट है कि हमने कभी भी मुस्लिम नेतृत्व को वोट नहीं दिया। हमने तथाकथित धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए कभी इंदिरा गांधी को वोट दिया, कभी मोरारजी देसाई को। हमने चरण सिंह, मुलायम सिंह, वीपी सिंह, लालू प्रसाद और नीतीश को वोट दिया। मेरा एकमात्र सवाल यह है कि इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं को वोट देकर मुसलमानों ने क्या हासिल किया। यदि कुछ हासिल किया होता तो क्या सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र कमीशन और कुंडू कमेटी को वह कहना पड़ता जो उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कही। मुसलमानों की स्थिति के बारे में सभी आंकड़े क्या बताते हैं? मैं पूरे विश्वास से कहता हूं कि इस देश में कभी भी मुस्लिम वोट बैंक नहीं था। इस देश में केवल हिंदू वोट बैंक है।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र में गरमा दिया पालघर साधु हत्याकांड का मुद्दा, शिंदे गुट ने भी लगाया ये आरोप