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Lok Sabha Election 2024: क्या मधेपुरा की राजनिति में खत्म हो रहा है शरद यादव का अस्तित्व? जानिए सीट का पूरा चुनावी इतिहास

Madhepura Lok Sabha Election बिहार के मधेपुरा की धरती समाजवादी विचारधारा के अखाड़े के रूप में जानी जाती है। यादवों के वर्चस्व वाली यह सीट स्व. शरद यादव की भी राजनीतिक गढ़ रही है। यहां से वह कई बार सांसद चुनकर आ चुके हैं लेकिन उनकी मृत्यु के बाद अब आगामी लोकसभा चुनाव में उनका राजनीतिक अस्तित्व यहां नहीं देखने को मिल रहा है। जानें सीट का पूरा चुनावी इतिहास।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 30 Apr 2024 02:25 PM (IST)
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Madhepura Lok Sabha Election: 1991 में शरद यादव ने पहली बार मधेपुरा से जीत दर्ज की थी।
संजय सिंह, भागलपुर। Madhepura Lok Sabha Election: इस बार आमसभा चुनाव में राजनीतिक रूप से शरद यादव का अस्तित्व मधेपुरा में देखने को नहीं मिल रहा है। मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया। यह धरती कई कारणों से समाजवादी विचारधारा के अखाड़े के रूप में जानी जाती है।

मध्य प्रदेश के शरद यादव 2019 के चुनाव तक सशक्त तरीके से लड़े थे। उनके पुत्र शांतनु बुंदेला का कहना है कि जिस उम्मीद से अपने पिता की विरासत को संभालने वे मधेपुरा में राजनीति की उर्वर जमीन को तैयार कर रहे थे, टिकट काटकर उसपर पानी फेर दिया गया। इसके बावजूद, वे दो-तीन दिनों बाद मधेपुरा आएंगे और अपनी आगे की रणनीति को तैयार करेंगे। पिता की विरासत से उनका मोह कभी ना छूटा है और ना छूटेगा।

मधेपुरा सीट का इतिहास

मधेपुरा जब 1967 में लोकसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आया तो यहां के पहले सांसद बीपी मंडल बने। एक बार इस सीट से 1971 में कांग्रेस के उम्मीदवार राजेंद्र यादव की जीत हुई। 1980 और 1984 में राजेंद्र यादव और महावीर प्रसाद यादव कांग्रेस के टिकट से जीते। 1989 में रमेंद्र कुमार यादव रवि यहां जनता दल के टिकट पर विजयी हुए।

1991 और 1996 में जनता दल के टिकट पर शरद यादव ने जीत दर्ज कराई। 1998 में यह लोकसभा सीट तब चर्चा में आई, जब जनता दल के टिकट पर शरद यादव और राजद के टिकट पर लालू प्रसाद यादव आमने-सामने हुए। इस चुनाव में जीत लालू प्रसाद की हुई। 1999 में शरद ने जदयू का दामन थामा। 1999 के चुनाव में लालू और शरद दोनों आमने-सामने हुए। शरद यादव ने चुनावी बाजी पलटते हुए लालू यादव को हरा दिया।

लालू यादव की वापसी

साल 2004 के चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने यहां से फिर जीत दर्ज कराई, लेकिन 2005 में यहां से राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव राजद के टिकट पर निर्वाचित हुए। 2009 में फिर शरद यादव की वापसी हुई। इसके बाद वे कभी मधेपुरा के सांसद नहीं बन पाए। उन्होंने अपना अंतिम चुनाव 2019 में लड़ा और दिनेशचंद्र यादव के हाथों पराजित हो गए।

इस बीच कांग्रेस के टिकट पर बिहारीगंज विधानसभा क्षेत्र से उनकी पुत्री सुभाषिणी बुंदेला ने 2020 में विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वह जीत नहीं पाईं। बिहारीगंज विधानसभा सीट से निरंजन मेहता को जीत पाने में सफलता मिली। इधर, शांतनु बुंदेला ने बताया कि उनके पिता के निधन के बाद वे लगातार मधेपुरा से जुड़े रहे। मधेपुरा में उनका आवास भी है। यहां रहकर वे अपनी राजनीतिक जमीन को उर्वर बनाने में लगे थे।

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पिता के विरासत के लाभ की उम्मीद

उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि पिता की राजनीतिक विरासत का लाभ उन्हें मिलेगा। पार्टी के नेताओं ने भी इस बात के संकेत दिए थे कि मधेपुरा पर अपना ध्यान पूरी तरह फोकस करें। टिकट बंटवारे के समय उनकी उम्मीद पर पानी फिर गया, जब राजद का टिकट प्रो. चंद्रदीप यादव को मिल गया। अब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है। वे दो-तीन दिनों बाद मधेपुरा आ रहे हैं। उसके बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी।

शरद की नहीं बन पाई प्रतिमा

शरद यादव की मृत्यु के बाद इस बात की घोषणा की गई थी कि उनकी याद में शहर में एक प्रतिमा का निर्माण करवाया जाएगा। समाजवादी नेता के रूप में शरद की पहचान सिर्फ मधेपुरा स्तर पर ही नहीं, बल्कि देश स्तर पर थी। उनके कई राजनीतिक शिष्य आज राजनीति में मजबूत दखल रखते हैं। विडंबना यह है कि घोषणा के बावजूद शरद यादव की कोई प्रतिमा अब तक मधेपुरा में नहीं बन पाई है।

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