Election 2024: बदल गई राजस्थान की सियासी तस्वीर, अपनी ही 10 सीटों पर क्यों हारी भाजपा? कई वजहें आईं सामने
Lok Sabha Election 2024 राजस्थान की सियासी तस्वीर बदल चुकी है। भाजपा को लोकसभा चुनाव में 10 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। कांग्रेस को आठ सीटों पर जीत मिली है। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गृह जिले भरतपुर में भी भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा ने चुनाव नतीजों पर विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया है।
नरेंद्र शर्मा, जागरण, जयपुर। राजस्थान में भाजपा की अपेक्षा के अनुरूप नतीजे नहीं आए हैं। प्रदेश की 25 में 14 सीटें ही भाजपा जीत सकी है। शेष 11 सीटों पर कांग्रेस और आईएनडीआईए के प्रत्याशी जीते हैं। इनमें आठ सीटों पर कांग्रेस, एक-एक सीट पर माकपा, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) और भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के प्रत्याशियों ने विजय पाई है।
सीएम के गृह जिले में हारी भाजपा
2014 में यहां सभी 25 सीटों पर भाजपा गठबंधन की जीत हुई थी। 2019 में 24 सीटों पर भाजपा और एक सीट पर एनडीए के घटक दल आरएलपी का प्रत्याशी जीता था। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गृह संसदीय क्षेत्र भरतपुर में ही भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप कोली की हार हुई है। यहां कांग्रेस की संजना जाटव जीती हैं। बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे। यहां कांग्रेस के उम्मेदाराम बेनीवाल ने निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी को हराया है।
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भाजपा में विचार-विमर्श शुरू
चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में कुछ नेताओं ने विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। ये नेता संगठन और सरकार के नेतृत्व की कार्यप्रणाली को लेकर पार्टी आलाकमान तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं। विधानसभा चुनाव में प्रदेश में सरकार बनाने के करीब पांच महीने बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा की ऐसी स्थिति होना प्रदेश सत्ता और संगठन के लिए परेशानी का कारण हो सकता है।कहीं इसलिए तो नहीं हुआ भाजपा को नुकसान
भाजपा के अपेक्षा अनुरूप सीटें नहीं जीतने का प्रमुख कारण जाट और मीणा समाज की नाराजगी को माना जा रहा है। जाट वोट बैंक के प्रभाव वाली सीकर, नागौर, चूरू, झुंझुनूं व बाड़मेर-जैसलमेर जिलों में भाजपा की हार हुई है। राज्य मंत्रिमंडल में जाट विधायकों को उम्मीद से कम महत्व मिलने, चूरू से मौजदा सांसद राहुल कस्वा टिकट कटने सहित कई कारणों से जाट समाज भाजपा से नाराज माना जा रहा है।
भारी पड़ी जाटों की नाराजगी
पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का कस्वा का टिकट कटना भी कारण रहा। हालांकि, कस्वा टिकट कटने पर भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। किसान आंदोलन व अग्निपथ योजना भी जाटों की नाराजगी का कारण माना जा रहा है।जाट मतदाताओं का कांग्रेस को समर्थन मिलने का कारण प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा का होना है। मीणा समाज में भी असंतोष है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक रहा मीणा समाज दिग्गज नेता किरोड़ी लाल मीणा के कारण भाजपा के साथ आया था, लेकिन मीणा को सरकार में महत्व कम मिला।भाजपा का मत प्रतिशत गिरा तो कांग्रेस का बढ़ा
2014 में नरेन्द्र मोदी लहर के कारण भाजपा के पक्ष में 55.6 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था। कांग्रेस को 30.7 प्रतिशत मत मिले थे। 2019 में भाजपा को 58.14 तो कांग्रेस को 34.2 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार भाजपा ने 49.59 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं, जो 2019 की तुलना में 8.55 प्रतिशत कम हैं। कांग्रेस ने 42.35 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं।सबसे बड़ी जीत
सबसे बड़ी जीत राजसमंद सीट पर भाजपा की विश्वराज कुमारी की हुई है। उन्होंने कांग्रेस के देवराम गुर्जर को तीन लाख, 92 हजार 877 वोटों से हराया है। सबसे छोटी जीत जयपुर ग्रामीण सीट से भाजपा के राव राजेंद्र सिंह 1615 वोटों से जीते हैं। उन्होंने कांग्रेस के अनिल चौपड़ा को हराया है।ये दिग्गज जीते
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला कोटा, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर व गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर सीट व भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी चित्तीड़गढ़ से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत गए हैं।ये दिग्गज हारे
केंद्रीय कृषि मंत्री कैलाश चौधरी बाड़मेर-जैसलमेर सीट से कांग्रेस के उम्मेदाराम से हार गए। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत जालौर-सिरोही सीट से भाजपा के लूम्बाराम से चुनाव हार गए। वैभव पिछला चुनाव जोधपुर से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से हारे थे।दुष्यंत सबसे वरिष्ठ सांसद
पूर्व मुख्यमत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह झालावाड़ सीट से लगातार पांचवीं बार चुनाव जीते हैं। वह प्रदेश के सबसे वरिष्ठ सांसद हो गए हैं। वसुंधरा भी पूर्व में पांच बार सांसद रह चुकी हैं। दुष्यंत ने कांग्रेस की उर्मिला जैन को तीन लाख, 70 हजार 989 से अधिक वोटों से हराया है।दल बदलने वालों को कहीं नकारा तो कहीं गले लगाया
प्रदेश की जनता ने इस बार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले दे वरिष्ठ नेताओं को नकार दिया है। इनमे प्रमुख आदिवासी नेता महेंद्र मालवीय बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट से चुनाव हार गए। उन्हें बाप के युवा नेता राजकुमार रोत ने हराया है। मालवीय अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य रहे थे।चुनाव से ठीक पहले वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई ज्योति मिर्धा नागौर सीट से आरएलपी के हनुमान बेनीवाल से हार गईं। वहीं दो बार सांसद रहे राहुल कस्वा टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया और वह चुनाव जीत भी गए। कस्वा ने भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र झाझड़िया को हराया है। प्रत्येक सीट की हार-जीत की समीक्षा की जाएगी। जनता का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति विश्वास जताने पर आभार। -सीपी जोशी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष।उपचुनाव में भी लगा झटका
भाजपा को बागीदौरा विस सीट पर हुए उपचुनाव में झटका लगा है। यहां से बाप के जयकृष्ण पटेल चुनाव जीते हैं। उन्होंने भाजपा के संतोष तांबोलिया को 52 हजार वोटों से हराया है। कांग्रेस ने यहां बाप प्रत्याशी को समर्थन दिया था।यह भी पढ़ें: नीतीश कुमार के पुराने दोस्त ने बता दिया- अब कौन होगा देश का प्रधानमंत्री?समूचा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी तरह अपने ऊपर केंद्रित किया। मोदी की गारंटी, फिर से मोरी सरकार जैसे जुमले भाजपा शब्द से ज्यादा सुनाई दिए। - अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री।