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जिसे पार्टी के कार्यकर्ता तक नहीं जानते थे उसे बना दिया प्रत्‍याशी, हासिल हुई एेतिहासिक जीत

राजनीति में कब कौन फर्श से अर्श और कब अर्श से फर्श तक पहुंच जाए कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही वाकया 1991 के आम चुनाव में अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र का।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 24 Mar 2019 10:50 AM (IST)
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जिसे पार्टी के कार्यकर्ता तक नहीं जानते थे उसे बना दिया प्रत्‍याशी, हासिल हुई एेतिहासिक जीत
पिथौरागढ़, ओपी अवस्‍थी : राजनीति में कब कौन फर्श से अर्श और कब अर्श से फर्श तक पहुंच जाए कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही वाकया 1991 के आम चुनाव में हुआ था, जब अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र से एक अनाम और अनजान प्रत्याशी चुनाव जीत गए। उन्होंने तीन बार के सांसद और क्षेत्र के सबसे धुरंधर माने जाने वाले हरीश रावत को पराजित किया। इस जीत के बाद तो अल्मोड़ा सीट पर कांग्रेस का ग्राफ गिरता ही गया। 2009 में सीट के सुरक्षित घोषित होने के बाद ही कांग्रेस को जीत का स्वाद चखने को मिला।
1991 में लोकसभा चुनाव के वक्त देश में रामलहर थी। भाजपा के पास जिताऊ प्रत्याशियों का अभाव था।  क्षेत्र से जिन भाजपाइयों के नाम भेजे गए थे हाईकमान उन पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। भाजपा ने एक दिल्ली में रहने वाले प्रवासी उत्त्तराखंडी अल्मोड़ा निवासी जीवन शर्मा पर दांव खेला। हाईकमान ने जीवन शर्मा को प्रत्याशी घोषित कर दिया था। प्रत्याशी के बारे में पूरे संसदीय क्षेत्र के लोग अपरिचित थे। जनता तो दूर, स्वयं स्थानीय भाजपा नेता और कार्यकर्ता भी प्रत्याशी के बारे में कुछ नहीं जानते थे। प्रचार होने लगा था और चुनावी कार्यालय खुल चुके थे। चुनाव कार्यालयों में प्रत्याशी जीवन शर्मा के बारे में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता एक दूसरे से पूछ कर जानकारी हासिल करते थे। एक अनजान व अपरिचित को प्रत्याशी बनाए जाने से कांग्रेस भी खुश थी। कांग्रेस से तीन बार के सांसद और पूरे अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में पकड़ रखने वाले चिरपरिचित हरीश रावत मैदान में थे। आम चर्चा यही थी कि हरीश रावत के सामने जीवन शर्मा कहीं नहीं टिक सकते हैं।
पिथौरागढ़ में भाजपा का चुनावी कार्यालय केमू स्टेशन के पास था। कार्यकर्ता कार्यालय में बैठकर प्रत्याशी के बारे में चर्चा कर रहे थे। इसी दौरान एक स्थानीय नेता के साथ और व्यक्ति कार्यालय पहुंचे। इस दौरान कार्यकर्ता प्रत्याशी को लेकर ही चर्चा कर रहे थे। बात आगे बढ़ती इससे पहले ही स्थानीय भाजपा नेता ने बताया कि उनके साथ आए व्यक्ति ही प्रत्याशी जीवन शर्मा हैं। मतदान तक स्थिति यह रही कि कार्यकर्ता अंत तक जीत को लेकर आशंकित ही रहे। जब चुनाव के परिणाम आया तो अनजान चेहरे ने जीत दर्ज कर ली थी और कांग्रेस के धुरंधर हरीश रावत चित हो गए। इससे पूर्व अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में एक बार छोड़ कर हमेशा कांग्रेस जीतती रही थी। 1977 में मात्र डॉ. मुरली मनोहर जोशी जीते। बाद में वह भी हरीश रावत से पराजित हो गए थे। 1991 की जीत के बाद इस सीट पर भाजपा मजबूत होती गई। हालांकि भाजपा की जीत की नींव रखने वाला अनजान चेहरा 1996 के बाद फिर गुम हो गया।

फूट-फूट कर रोए थे हरीश रावत समर्थक
1991 का चुनाव हरीश रावत का चौथा चुनाव था। इस चुनाव में जीतने के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रीमंडल में स्थान मिलना तय माना जाता था। संयोग से पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार भी बनी। मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह का कार्यक्रम टीवी के देखते समय हरीश रावत के कई समर्थक रोते हुए देखे गए। उनका कहना था कि हरीश रावत जीते होते तो उन्हें भी मंत्री पद मिला होता।

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