Lok Sabha Election: भाजपा ने पुराने चेहरों पर खेला सुरक्षित दांव
भाजपा ने राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम फाइनल कर दिए। बगैर कोई जोखिम मोल लिए पार्टी ने पुराने आजमाए चेहरों पर ही दांव खेला।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 23 Mar 2019 08:57 AM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। आखिरकार लंबी चली मशक्कत के बाद भाजपा ने राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम फाइनल कर दिए।
बगैर कोई जोखिम मोल लिए पार्टी ने पुराने आजमाए चेहरों पर ही दांव खेला। जिन दो उम्रदराज सांसदों को टिकट नहीं दिया गया, उनके उत्तराधिकारी का चयन भी उन्हीं की सहमति से किया गया।
हरिद्वार संसदीय सीटबुधवार को भाजपा ने उत्तराखंड की पांचों सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया। हरिद्वार सीट से भाजपा ने एक बार फिर सिटिंग सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक पर ही भरोसा जताया है। हालांकि इस सीट पर प्रदेश महामंत्री नरेश बंसल और प्रदेश सरकार में मंत्री मदन कौशिक का भी दावा था, लेकिन निशंक का सियासी तजुर्बा और सक्रियता सब पर भारी पड़ी। निशंक न केवल अविभाजित उत्तर प्रदेश में मंत्री रह चुके हैं, बल्कि उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद पहली अंतरिम सरकार और बाद में वर्ष 2007 में भुवन चंद्र खंडूड़ी की सरकार में भी वरिष्ठ मंत्री के रूप में शामिल रहे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की पांचों सीटों पर करारी शिकस्त के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री खंडूड़ी को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी तो निशंक ही उनके उत्तराधिकारी बने। वह लगभग सवा दो साल तक मुख्यमंत्री रहे।
अल्मोड़ा संसदीय सीट
प्रदेश की एकमात्र अनुसूचित जाति सुरक्षित सीट अल्मोड़ा पर भाजपा ने सिटिंग सांसद अजय टम्टा को ही रिपीट किया है। अजय टम्टा पूर्व में प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं। मोदी सरकार में भी केवल उन्हें ही उत्तराखंड के प्रतिनिधि के तौर पर काम करने का अवसर मिला। सिटिंग सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री होने के अलावा किसी तरह के विवाद से न जुड़े होने के कारण अच्छी छवि को देखते हुए पार्टी ने दोबारा उन्हीं पर दांव खेलना मुनासिब समझा। हालांकि इस सीट पर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रेखा आर्य और विधायक चंदन रामदास का भी दावा था लेकिन आखिर में आलाकमान ने अजय टम्टा को ही फिर मैदान में उतारना बेहतर समझा।
टिहरी संसदीय सीट टिहरी संसदीय सीट पर भी भाजपा ने सिटिंग सांसद महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह को ही फिर से मौका दिया है। दरअसल, टिहरी सीट इस राजपरिवार की परंपरागत सीट रही है और कुछेक अवसरों को छोड़ दिया जाए तो इसकी नुमांइदगी राज परिवार ही करता आया है। यह बात दीगर है कि राज परिवार के सदस्यों ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही पार्टियों से चुनाव लड़ा और जनता ने लगभग हमेशा ही उनका साथ दिया। महारानी को फिर से प्रत्याशी बनाए जाने के पीछे एक बड़ा कारण उनकी राज परिवार से अब तक आए अन्य सांसदों के मुकाबले ज्यादा सक्रियता भी रही। आम जनता के बीच भी वे पिछले पांच सालों से बराबर सक्रिय दिखी हैं। इसके अलावा महारानी को प्रत्याशी बना भाजपा ने एक तरह के महिला कोटा भी पूरा कर लिया।
पौड़ी गढ़वाल सीट
पौड़ी गढ़वाल सीट पर भाजपा ने राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत को सिटिंग सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री भुवन खंडूड़ी का उत्तराधिकार सौंपा है। तीरथ उत्तराखंड की पहली अंतरिम सरकार में मंत्री रहे हैं। उन्हें सांगठनिक कार्यो का खासा तजुर्बा रहा है। यह बात दीगर है कि पिछले विधानसभा चुनाव में प्रबल दावेदारी के बावजूद उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया था। तब नाराज तीरथ को मनाने के लिए उन्हें केंद्रीय संगठन में अहम जिम्मेदारी दी गई। खंडूड़ी के अधिक उम्र के कारण चुनाव लड़ने से इन्कार कर देने के बाद इस सीट से टिकट के कई दावेदार थे लेकिन आलाकमान ने खंडूड़ी के नजदीकी माने जाने वाले तीरथ को ही मैदान में उतारा। इसके अलावा इस सीट से सिटिंग सांसद खंडूड़ी के पुत्र मनीष खंडूड़ी को कांग्रेस प्रत्याशी बनाया जाना तय है, लिहाजा भाजपा ने पुत्र के मुकाबले में पिता के नजदीकी को ला खड़ाकर सियासी समर को दिलचस्प बना दिया है।
नैनीताल संसदीय सीट नैनीताल संसदीय सीट के सिटिंग सांसद पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने भी स्वयं ही चुनाव लड़ने की अनिच्छा जाहिर की थी। अब यह बात दीगर है कि बाद में कोश्यारी के ही मैदान में उतरने की चर्चा भी उठी। पार्टी ने उनकी सहमति से ही इस सीट पर दावेदारों का पैनल तैयार किया, जिसमें कोश्यारी के अलावा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट व खटीमा से पार्टी विधायक पुष्कर सिंह धामी का नाम शामिल किया गया। अजय भट्ट भाजपा की अंतरिम सरकार में मंत्री रहे लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उनके हाथ पराजय लगी। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान ही भाजपा को विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल हुई। माना जा रहा है कि सांगठनिक तजुर्बे के आधार पर ही वह बाजी मारने में सफल रहे।
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