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Chunavi किस्सा: जब रिकॉर्ड जीत के बाद भी पार्टी की साख पर लगा बट्टा, आज भी उठता है मुद्दा, जानिए क्या था पूरा मामला

Lok Sabha Election 2024 Special चुनावी किस्सों में आज जानिए उस चुनाव के बारे में जब झारखंड मुक्ति मोर्चा ने लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी। हालांकि इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिसने जीत के बावजूद पार्टी की साख पर बड़ा बट्टा लगाया। आज भी उस मुद्दे को लेकर पार्टी पर सवाल उठते रहते हैं. . . .

By Mritunjay Pathak Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 30 Apr 2024 05:37 PM (IST)
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Chunavi किस्सा: उस चुनाव में झामुमो ने झारखंड क्षेत्र की आठ में से छह सीटों पर जीत दर्ज की थी।
मृत्युंजय पाठक, रांची। वर्ष 1991 का 10वां लोकसभा चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा की सफलता का चुनाव रहा। अविभाजित बिहार में झारखंड क्षेत्र की 14 में आठ सीटों पर चुनाव लड़कर छह सीटों पर झामुमो ने जीत दर्ज की थी।

राजमहल से साइमन मरांडी, दुमका से शिबू सोरेन, गोड्डा से सूरज मंडल, गिरिडीह से बिनोद बिहारी महतो, जमशेदपुर से शैलेंद्र महतो और सिंहभूम से कृष्णा मार्डी लोकसभा पहुंचे थे। हारने वाले दो प्रत्याशियों में खूंटी से रमेश सिंह मुंडा और धनबाद से अकलू राम महतो थे।

झामुमो ने जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। जनता दल ने चतरा और कोडरमा सीट पर जीत दर्ज की थी। हालांकि सफलता के साथ ही झामुमो के लिए झंझावतों का दौर भी शुरू हुआ। झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन समेत पार्टी के चार सांसद 1993 में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के लिए घूस लेने में फंसे। यह सांसद घूसकांड के नाम से जाना जाता है।

आज भी उठता है मुद्दा

झामुमो पर जो घूस लेने के आरोप लगे उसके दाग कभी नहीं धुले। यह घूसकांड भारत की राजनीति के इतिहास के पन्नों में अंकित है। इसे लेकर भाजपा ने झामुमो पर झारखंड आंदोलन को बेचने का आरोप लगाया था। हालांकि बाद में अदालत से सांसद घूसकांड के आरोपित बरी हो गए लेकिन यह मुद्दा आज भी उठता रहता है।

सांसद घूसकांड में फंसने के साथ ही झामुमो को विभाजन का भी सामना करना पड़ा। सिंहभूम के सांसद कृष्णा मार्डी और गिरिडीह के सांसद राज किशोर महतो ने शिबू सोरेन को चुनौती दी। झामुमो के विभाजन के बाद झामुमो (मार्डी) नाम से एक अलग पार्टी बनी। इसका नेतृत्व कृष्णा मार्डी ने किया।

शहरी क्षेत्र में भाजपा का परचम

1991 का चुनाव झारखंड के शहरी क्षेत्र में भाजपा के विस्तार का चुनाव था। भाजपा ने पहली बार झारखंड के सभी लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ा। 14 में पांच सीटों पर जीत मिली और सात पर दूसरे नंबर पर रही। तीन शहरी क्षेत्र-रांची, धनबाद और जमशेदपुर में दो-रांची और धनबाद में पहली बार भाजपा का परचम लहराया। रांची से रामटहल चौधरी निर्वाचित हुए। धनबाद से प्रो. रीता वर्मा को सफलता मिली।

प्रो. वर्मा धनबाद के एसपी रह चुके शहीद रणधीर प्रसाद वर्मा की पत्नी थीं। 3 जनवरी, 1991 को धनबाद में बैंक लूट रहे पंजाब के आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे। यहां पर भाजपा ने सत्यनारायण दुदानी को प्रत्याशी बनाया था। अंतिम समय में दुदानी के स्थान पर रीता वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया गया। पति की शहादत की सहानुभूति लहर में रीता वर्मा ने मार्क्सवादी चिंतक मासस नेता एके राय को पराजित कर धनबाद को लाल से भगवा कर दिया।

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खूब जमी शिबू-सूरज की जोड़ी

राजनीति में समय-समय पर नेताओं की जोड़ी जमती रही है। कभी अटल-आडवाणी की जोड़ी थी तो आज मोदी-शाह की चल रही है। 1991 के लोकसभा चुनाव के बाद बिहार-झारखंड की राजनीति में झामुमो नेता शिबू सोरेन और सूरज मंडल की जोड़ी खूब जमी थी। झामुमो और शिबू सोरेन के हर निर्णय में सूरज मंडल की निर्णायक भूमिका होती थी।

1993 में केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार को बचाने के लिए झामुमो ने कांग्रेस का समर्थन किया था। अलग झारखंड राज्य की शर्त पर झामुमो ने समर्थन किया था। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तैयार नहीं थे। उन्होंने साफ कहा था-झारखंड मेरी लाश पर बनेगा। इसके बाद अगस्त, 1995 में झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद (जैक) का गठन हुआ। शिबू सोरेन अध्यक्ष और सूरज मंडल उपाध्यक्ष बनाए गए थे।

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