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Lok Sabha Election 2019: चढ़ते पारे के आशा और आशंका में झूलती सियासत

एग्जिट पोल के अनुमानों पर गौर करें तो उत्तराखंड में भाजपा इस बार इतिहास रचने जा रही है लेकिन कांग्रेस इसे मानने को कतई तैयार नहीं है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 22 May 2019 09:29 AM (IST)
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Lok Sabha Election 2019: चढ़ते पारे के आशा और आशंका में झूलती सियासत
देहरादून, जेएनएन। एग्जिट पोल के अनुमानों पर गौर करें तो उत्तराखंड में भाजपा इस बार इतिहास रचने जा रही है, लेकिन कांग्रेस इसे मानने को कतई तैयार नहीं है। वहीं,  बसपा की निगाहें जीत से अधिक वोट प्रतिशत पर टिकी हैं। 23 मई को ईवीएम खुलने के बाद तस्वीर साफ हो जाएगी, मगर तब तक राजनीतिक विश्लेषक इसे लेकर माथापच्ची में जरूर जुट गए हैं। 

क्या पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी भाजपा

विभिन्न एजेंसियों के एग्जिट पोल के अनुमानों पर गौर करें तो उत्तराखंड में भाजपा इस बार इतिहास रचने जा रही है। भाजपा भी यहां की पांचों लोकसभा सीटों पर जीत को लेकर आश्वस्त दिख रही है। बावजूद इसके सियासी गलियारों में यह सवाल तैर रहा है कि क्या भाजपा पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी। ये भी सवाल फिजां में है कि यदि वह पांचों सीटें जीतती है तो उसके प्रत्याशियों की जीत का अंतर क्या रहेगा। हालांकि, इसे लेकर 23 मई को ईवीएम खुलने के बाद तस्वीर साफ हो जाएगी, मगर तब तक राजनीतिक विश्लेषक इसे लेकर माथापच्ची में जरूर जुट गए हैं। 

मोदी लहर पर सवार भाजपा ने 2014 में प्रदेश में लोकसभा की सभी पांचों सीटें अपनी झोली में डालकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था। भाजपा ने सभी सीटें बड़े अंतर से जीती थीं। ऐसे में इस बार के लोकसभा चुनाव में उसके सामने ऐसा ही प्रदर्शन दोहराने की चुनौती थी। पिछली बार की भांति इस मर्तबा राज्य में लोस चुनाव में मोदी फैक्टर हावी रहा। चुनाव की लड़ाई मोदी बनाम अन्य के बीच सिमटी नजर आई। हालांकि, भाजपा और कांग्रेस दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वी लगातार जीत के दावे कर रहे हैं। अलबत्ता, सियासी गलियारों के साथ ही आम लोगों की जुबां पर यही सवाल मुख्य रूप से है कि क्या भाजपा इस बार भी पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी। 

इसे लेकर सबके अपने दावे और अपने तर्क हैं। कुछ का कहना है कि देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां मोदी फैक्टर हावी रहा। इसे लेकर अंडर करंट था। वहीं, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मतदाताओं ने केंद्र सरकार के कार्यों के साथ ही प्रदेश सरकार के कामकाज को भी कसौटी पर परखा। अब जबकि मतगणना के लिए महज एक दिन का वक्त शेष है तो भाजपा के प्रदर्शन को लेकर बहस-मुबाहिसों का दौर अधिक तेज हो गया है। इसमें विभिन्न एजेंसियों के एग्जिट पोल के अनुमानों को भी आधार बनाया जा रहा है।

कांग्रेस को आम चुनाव में अच्छे प्रदर्शन का भरोसा

लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल के अनुमानों में राज्य की पांचों सीटें भाजपा की झोली में डाली गई हों, लेकिन कांग्रेस इसे मानने को कतई तैयार नहीं है। करीब पांच महीने पहले ही नगर निकाय चुनाव में अपने प्रदर्शन से उत्साहित कांग्रेस का दावा है कि लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन बेहतर रहेगा ही, साथ में सत्तापक्ष को चौंकाने जा रहा है। दो साल पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों बुरी तरह पराजित हो चुकी कांग्रेस अब प्रदेश के सियासी हालात में बदलाव तय मान रही है। 

हालांकि मुख्य प्रतिपक्षी पार्टी को प्रदेश की सियासत में दमदार तरीके से वापसी की चुनौती भी है। पहले वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने लोकसभा की पांचों सीटें गवां दी थी। इसके बाद पार्टी वर्ष 2017 में भी विधानसभा चुनाव में अब तक का सबसे कमजोर प्रदर्शन करते हुए विधानसभा में महज 11 सीटों तक सिमट गई थी। अब वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने में सिर्फ एक दिन शेष है, लेकिन इससे पहले ही एग्जिट पोल के अनुमानों ने जिसतरह कांग्रेस को बड़ी पराजय के संकेत दिए हैं, उससे पार्टी इत्तेफाक रखने को तैयार नहीं है। 

कांग्रेस को नगर निकाय चुनाव की तर्ज पर ही लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की आस है। निकाय चुनाव में दो नगर निगमों और अधिकतर जिला मुख्यालयों की नगरपालिका परिषदों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही कांग्रेस मतदाताओं के बीच अपने आधार में बड़ी वृद्धि को लेकर आशान्वित है। निकाय चुनावों में शहरी क्षेत्रों में मतदाताओं का समर्थन लोकसभा चुनाव में भी अधिक संख्या में मिलने का भरोसा जताया जा रहा है। 

पार्टी प्रदेश में मोदी लहर को नकार रही है, साथ ही केंद्र और प्रदेश की सरकारों के खिलाफ जनता में रोष को अपने पक्ष में मतदान के रूप में देख रही है। हालांकि, एग्जिट पोल के अनुमानों ने अंदरखाने पार्टी के आत्मविश्वास को हिलाया भी है। बावजूद इसके पार्टी की नजरें 23 मई को सामने आने वाले जनादेश पर टिकी हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि एग्जिट पोल कुछ भी कहें, कांग्रेस को अपना प्रदर्शन बेहतर रहने की पूरी उम्मीद है। चुनाव नतीजे सत्तापक्ष के गणित को गड़बड़ाने जा रहे हैं।

जीत से ज्यादा वोट प्रतिशत पर टिकी बसपा की निगाहें

प्रदेश में लोकसभा चुनावों में पांच में से चार सीटों पर ताल ठोक रही बसपा की निगाहें जीत से अधिक वोट प्रतिशत पर टिकी हैं। यह वोट प्रतिशत पार्टी की प्रदेश में स्थिति को तय करेगा। विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट प्रतिशत तकरीबन 6.5 था। इस बार बसपा प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है, इसलिए वह इस वोट प्रतिशत के बढ़ने की उम्मीद भी जता रही है। उत्तराखंड बनने के बाद बसपा तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। प्रदेश में यदि राजनीतिक दलों के आंकड़ों पर नजर डालें तो भाजपा और काग्रेस के बाद बसपा के ही सर्वाधिक विधायक चुने गए हैं। वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में बसपा के सात विधायक चुने गए और तब उसे 10.93 प्रतिशत मत मिले थे। वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा के आठ विधायक बने और मत प्रतिशत बढ़कर 11.76 तक पहुंचा। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को केवल तीन सीटों पर जीत मिली, जबकि उसे 12.19 प्रतिशत वोट मिले। 

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा 6.98 प्रतिशत मत ही हासिल पाई, जबकि उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। ऐसे में बसपा के सामने चुनौती मत प्रतिशत बढ़ाने की भी है। उम्मीद इसलिए की जा रही है क्योंकि प्रदेश में सपा और बसपा का वोट बैंक काफी हद तक एक जैसा ही रहा है। इस बार सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो बसपा उम्मीद कर रही है कि पूरा वोट बैंक उनके पाले में ही जाएगा। हालांकि एग्जिट पोल के बाद जिस तरह से प्रदेश के परिणामों का अनुमान दिखाया जा रहा है, उससे बसपा नेताओं की पेशानी पर बल जरूर पड़े हैं। बावजूद इसके बसपा उम्मीद जता रही है कि नैनीताल और हरिद्वार सीट पर पार्टी को अच्छे वोट मिलेंगे।

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